Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 69
________________ उनको भी यम नियम पालनकर्ता बनाना चाहिए और उनको भी ज्ञानी बनाना चाहिए । जो कृतियोंके कारण हमसे हलके गिने जाते हों उनको सुधारना हमारा मुख्य कर्तव्य होना चाहिए अस्तु । ___अभी हम जो कुछ कहना चाहते हैं, वह यही है कि, नहाँ कुल-आचरण समान हों वहीं ब्याह करना चाहिए । विरुद्ध-आचरण करनेवालोंके साथ लग्न करने से उनके प्रकारके झगड़े ओर केश खडे होनेका भय रहता है। जहाँ झगड़ा है, जहाँ क्लेश है बहाँ प्रेमका अभाव होता है; वहाँ इच्छित-धर्मकार्य नहीं सधते हैं और वहाँ संसारका सुख भी प्राप्त नहीं होता है । इसके साथ ही लग्न करनेमें गोत्रका भी विचार करना चाहिए अर्थात् शास्त्रकारोंने सगोत्रीय-जिनका एक ही गोत्र हो-के साथ लग्न करना मना किया है। कारण यह है कि, समान गोत्रवाले संबंधी गिने जाते हैं सगे गिने जाते हैं और ऐसे सगोंमें लग्न करना यह व्यवहारसे भी निषिद्ध है । वैद्यकशास्त्रकार भी कहते हैं कि, सगोत्रीय मनुष्योंका रक्त समान होता है । क्योंकि वंशपरंपराका मूल एक ही होता है । इसलिए उन एकरक्तके दम्पतिसे जो संतति उत्पन्न होती है वह अंधी, बहरी, मूक, मूर्ख तथा शरीर और मनकी दुसरी शक्तियोंसे हीन होती है । इसलिए लग्न करनेमें गोत्रका भी खास तरहसे विचार करना चाहिए । यानी सगोत्रियोंको परस्परमें ब्याह नहीं करना चाहिए। इसके सिवा अवस्था-उम्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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