Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 76
________________ इस तरह अठारह मास तक विवाहित गृहस्थको ब्रह्मचर्य पालना ही चाहिए । एक अंग्रेज विद्वान् भी यही बात जोर देकर कहता है। इतना ही नहीं, परन्तु वह तो आगे बढ़कर यहाँ तक कहता है कि,-"अठारह महीनेकी मुद्दत तक वह स्त्री बहुत अशक्त हो जाती है। इस लिए वह स्त्री जब तक संपूर्णतया सशक्त और तंदुरुस्त न हों जाय, तब तक पुरुषको उसके पास न जाना चाहिए।" ऐसी संपूर्ण शक्ति आनेके लिए वह विद्वान् अठारह महीनेके उपरांत भी बारह या पंद्रह महीने तक स्त्रीके पास नहीं जाना बताता है । उसका मत है कि, ढाई या पौने तीन सालतक पुरुषोंको अवश्यमेव ब्रह्मचर्य पालना चाहिए । इस तरह ब्रह्मचर्य पालनपूर्वक वीर्यकी रक्षापूर्वक संसार-सेवन करनेवाला पुरुष यदि महान् तेनस्वी विशाल छातीवाला और प्रतापी पुत्र उत्पन्न करे तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? और वह पुत्र यदि भविष्यमें अपने ही समान संतति उत्पन्न करे और इसके परिणाममें सारा आर्य संसार सुधर जाय तो इसमें न बनने योग्य बात कौनसी है ? क्या ज्यादा विषयसेवनसे कामकी तृप्ति होती है ? इस समय हमें इसका उत्तर दे देना भी जरूरी है । वह यह है-कई लोग ऐसा समझकर विषयसेवन करते हैं कि, यदि अमुक समय तक हम विषय-सेवन करते रहेंगे तो तबीअत भर जायगी और फिर विषय-सेवन करनेकी इच्छा नहीं रहेगी। परन्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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