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अन्त उनके बाद ही होता है। वे रोगी बनते हैं, शोकी-चिन्ताप्रस्त-बनते हैं और सर्वथा नष्ट भी हो जाते हैं; किन्तु वे परवाह नहीं करते। वे तो आयुष्यके अन्ततक उसीमें आसक्त रहते हैं। योड़े वीर्यकी क्षति भी बहुत ज्यादा नुकसान करती है।
आजकलके मनुष्योंको देखो। वे प्रायः शारीरिक बलके साथ ही मानसिक बलमें भी बहुत कमजोर होते हैं। इतने कमजोर होते हैं कि, छोटेसे छोटा काम करनेकी भी उनकी हिम्मत नहीं पड़ती। इसका कारण अधिक विषयसेवन करना है। जिसका थोडासा वीर्य नष्ट हो जाता है-थोड़ासा भी ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है, वह अपने कार्यमें प्रायः विजय नहीं पाता है । जब ऐसे कई दृष्टांत हमारे सामने मौजूद हैं, तब जिन्होंने अपने ब्रह्मचर्यका भंग करनेमें कुछ विचार नहीं किया, जिन्होंने विषयसेवनकी कुछ मर्यादा नहीं रक्खी, अथवा नहीं रखते हैं, वे किसी कार्यमें सफलता कैसे पा सकते है ? वे यदि प्रत्येक कार्यमें पिछड़े रहते हैं तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? कौन नहीं जानता कि, नेपोलियन बोनापार्ट सारे यूरोपको धुनानेवाला व्यक्ति था; तो भी वह अपने स्थानसे नीचे गिर गया; बल होने पर भी वह हार गया । उसका क्या कारण है ? इसका स्पष्ट कारण इतिहास बताता है कि, संग्राममें जानेके पहिले रात्रिमें उसने स्त्रीसेवन किया था। अभिमन्यु जैसा महा बलशाली योद्धा कुरुक्षेत्रकी रणभूमिमें नष्ट
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