Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 73
________________ ५९ तो यह है कि, ' ब्रह्मचर्यके ' नियमोंके विरुद्ध वर्ताव करना ही ' ब्रह्मचर्य ' का भंग या ' व्यभिचार ' है। ___गृहस्थोंके लिए खास तरहसे कहा गया है कि-'पुत्रकामः स्वदारेष्वधिकारी' अर्थात्-पुत्रकी इच्छावाला अपनी स्त्रीका अधिकारी है। परन्तु वह भी उम्र लायक होनेके बाद । हमेशाके लिए नहीं । परन्तु जो मनुष्य उन नियमोंका पालन नहीं करते हैं और अनियमित रीतिसे रहते हैं; वे वैसा करनेवाले तिर्यंचोंसे भी हलकी पंक्तिके समझे जाते हैं। तुलसीदासनीने सच कहा है कि, "कार्तिक मासके कूतरे तजे अन्न और प्यास । __ तुलसी वांकी क्या गति जिनके बारे मास" ॥ १॥ कुत्ते एक मासके विषयसेवनसे हड़काये हो जाते हैं, उनके बाल खिर जाते हैं, उनके शरीरपर घाव पड़ जाते हैं, उनके कानोंमें कीड़े पड़नाते हैं और कई तो मर भी जाते हैं, तब हमेशा विषयमें तल्लीन रहनेवालोंकी क्या गति-स्थिति होनी चाहिए ? पाठक स्वयं इसका विचार कर सकते हैं। परस्त्रीसेवन और वेश्यागमनसे जो मनुष्य अपने ब्रह्मचर्यका भंग करते हैं, उनकी बात हम छोड़ देंगे । क्योंकि ऐसे काम करनेवाले केवल ब्रह्मचर्यका भंग ही नही बल्के दुराचरणका संवन भी करते हैं । ऐसे दुराचारियों के लिए शास्त्रोंमें बहुत कुछ कहा गया है। ऐसे लोगोंके लिए तो हम यहाँ तक कह सकते हैं कि, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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