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आदिका विचार करना भी जरूरी है । परन्तु इन सब बातोंका यहाँ विवेचन करना अस्थल होगा, इसलिए अब हम फिर अपने विषयपर-कामपुरुषार्थ की साधना किस तरह करना चाहिए ?-आते हैं। ___हम पहिले बता चुके हैं कि, गृहस्थोंको तीन पुरुषार्थ साधन करनेकी आवश्यकता होती है। उनमेंसे तीसरा पुरुषार्थ है काम। गृहस्थोंको यह भली प्रकार जानना चाहिए कि, 'काम' पुरुषार्थकी साधना कैसे करना, परन्तु इसके पहिले कामपुरुषार्थ किसे कहते हैं ? यह समझ लेना अत्यंत आवश्यक है। ___ 'कामका सामान्य लक्षण है:-'आभिमानिकरसानुविद्धा सर्वेन्द्रियप्रीतिः कामः' अर्थात् काल्पनिक रसयुक्त प्रत्येक इन्द्रियमें प्रीति होनेका नाम काम है । यदि शास्त्र - मर्यादाका उलंघन करके अनीतिपूर्वक काम सेवन किया जाय तो वह काम 'काम' नहीं है परन्तु कुकर्म है । जो मनुष्य अपनी स्त्रीके साथ भी मर्यादापूर्वक वैद्यकशास्त्रों और धर्मशास्त्रोंके नियमानुसार संसार-सेवन करता है वही 'काम' पुरुषार्थको साध सकता है। बाकी, जो मर्यादाका भंग करते हैं, वे पशुओंसे भी गये बीते है । क्योंकि कई पशु भी अपनी नियमितताका भंग नहीं करते हैं। यानी जब उन्हें संतति पैदा करनी होती है तभी वे नरमादा मिलते हैं। परन्तु यह दुःखकी बात है कि, मनुष्योंमें सारासार समझनेकी, हित अहित पहचाननेकी शक्ति होते हुए
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