Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 54
________________ रोग उत्पन्न हो जाते हैं, कि जिनके कारण मनुष्यका सब कुछ नाश हो जाता है । एक अनुभवी वैद्यने कहा है कि:-"जिसको जीतेनी मुर्दा बनना हो; जिसको तन्दुरस्तसे रोगी बनना हो जिसको स्वास्थ्य, सुंदरता, लावण्य और नीतिको अपने अपने अंतःकरणसे हटा देना हो; जिसको रोगी, कुरूप और प्रमादी बनना हो; उसके लिए हथलस एक उत्तम मित्र है ।" अपने ही हाथसे अपना नाश करनेके लिए इसके सिवाय और कौनसा उत्तम उपाय मिल सकता है ? कई विद्वान कहते हैं कि इस बुरी आदतके कारण कई पुरुष पागल भी हो गये हैं। इसका वे प्रमाण भी देते हैं। कहने का मतलब यह है कि यह कुटेव सर्वनाशकी जड़ है । जो लड़के और युवक इस कुचालमें फँसकर अनिष्ट रोगोंके भोग हो जाने पर भी अपनी खराब आदत नहीं छोड़ते हैं; उनका सर्वनाश जरूर होता है। सार बात यह है कि, वर्तमान कालके युवक वीर्यका अनादर करते हैं और उसका नाश करते हैं । इसी लिये वे अनेक व्याधियों से पीडित और बलहीन नजर आते हैं । एक विद्वान् वैद्यके मतानुसार-मनुष्य १३ वर्षकी अवस्थासे वीर्यका नाश करनेकी चेष्टा करता है । और १६ वर्षकी अवस्थासे २५ वर्षकी जवस्था तकके युवक ऊपर बताएहुए रोगोंसे आक्रांत दिखाई देते हैं । पाठकोंको सखेद आश्चर्य हुए बिना नहीं रहेगा कि यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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