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कोई ठंडी चीन दीजिए । डॉक्टर साहेब कॉलनवॉटर लगानेके लिये अथवा तो बरफका टुकड़ा सिरपर रखनेके लिये कह देते हैं । चलो छुट्टी हुई ! पाता-पिता समझ लेते हैं कि अब रोग गया । लड़कोंके लिये माता-पिताका यह कैसा अच्छा आशीर्वाद है ! सुज्ञ पाठको ! आप अब यह तो अच्छी तरह समझ गये होंगे कि माता-पिता मूल रोगकी खोज करने में बिलकुल ध्यान नहीं देते हैं । ऐसी स्थितिमें युवक चलने में यदि अस्सी वर्षके बूढेके सदृश चलें; बोलनेमें मरने पड़ीहुई बुढ़ियाकी तरह बोलें, और शरीरमें सुदामा जैसे दिखाईदें, तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात है ? और वे बिचारे शरीरका किञ्चित् मात्र भी सुख अनुभव न कर सकें तो इसमें किसका अपराध है ? और उनके अमूल्य जीवनका अल्प समयमें ही पूर्ण हो जाना भी कोई आश्चर्योत्पादक घटना नहीं है ! पेटमें दर्द होना; दाँतों का सड़ जाना; बालोंका सफेद होजाना; शरीरका पीला पड़ जाना; आँखोंका अंदर घुस जाना; दिनभर उदासीनताका रहना और चहरे पर झुर्रियोंका पड़ जाना वगैरा रोग तो ऐसे युवकोंके साधारण तौरसे हमेशाके लिए ही रहते हैं । इस कुटेवके कारण कई धीरे २ पुरुषत्वविहीन होकर नपुंसक भी हो जाते हैं। ऐमा होने पर भी जो अपनी कुचालोंको नहीं छोड़ते हैं और उसीमें अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वे धीरे धीरे क्षयरोगके ग्रास बन जाते हैं । देखिए हथलसकी बुरी आदतसे ऐसे कितने ही अनिष्ट
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