Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 58
________________ निसको वह सिद्ध न कर सके ! मतलब कहनेका यह है, कि अखंड ब्रह्मचर्य पालनेके प्रभावसे वह इतना बलवान् हो जाता है, कि कठिनसे कठिन काम भी कर सकता है। कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यने पाँचवर्षकी उम्रमें दीक्षा ग्रहण की थी और गुरुसेवामें मन लगा यावज्जीवन ब्रह्मचर्यका पालन किया था; इसीलिए वे राजा कुमारपालको उपदेश देकर अपना शिष्य बना सके थे और इसी लिए वे अपने अल्पजीवनमें साढ़े तीन कगेड श्लोकोंकी रचना कर सके थे। जगद्गुरू श्रीहरविजयसूरिने तेरह वर्षकी उम्रमें ही दीक्षा लेकर यावज्जीवन ब्रह्मचर्यका पालन किया था, इसीलिये वे अकबर जैसे बलवान् मुसलमान बादशाहको भी प्रतिबोध देकर •अपना भक्त बना सके थे। सुप्रसिद्ध शंकराचार्यके जीवनचरित्रको जानवाले यह बात अवश्य जानते हैं, कि उन्होंने जीवनभर ब्रह्मचर्य पाला था इसी कारण वे सारे भरतखंडमें प्रख्यात हुए थे। ऐसे सैंकड़ों उदाहरणोंसे इतिहासोंके और पुराणोंके बड़े बड़े ग्रंथ भरे पड़े हैं । आर्यावर्तमें ऐसा कौनसा मनुष्य है जो भीष्मकी भीष्मप्रतिज्ञा और उसके अलौकिक कार्योंको नहीं जानता है ? इस बातसे यह न समझना चाहिए कि संसारके सब मनुष्य कँवारे ही रहेंगे और सभी ब्रह्मचर्य पालेंगे । यदि ऐसी स्थिति हो जाय तो संसारमें मनुष्यकी उत्पत्ति ही कैसे हो और संसार का व्यवहार भी कैसे चले ? परन्तु ऐसा कभी न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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