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देखकर मनुष्य स्वर्गमें जाता है। इसका कारण क्या है ? अर्थात जब पुत्ररहित पुरुषकी सद्गति ही नहीं होती है तो फिर लग्न न कर केवल ब्रह्मचर्य पालनेसे क्या लाभ है ? क्योंकि ब्याह किए विना पुत्र नहीं हो सकता है, और पुत्रके विना सद्गति नहीं हो सकती है।
इस शंकामें कुछ भी तथ्य नहीं। इसके लिए हम जरासा गूढ विचार करेंगे तो ज्ञात होगा कि इस वाक्यके तात्पर्य को नहीं समझकर चलनेवालोंने बड़ा अँधेर मचा रक्खा है। इस वाक्यकी दुहाई देकर वे आर्थिक विचारोंको भी तिलांजलि दे, विषयासक्त बने रहते हैं; और मुर्गो, कत्तों और सुअरोंकी तरह संतति बढ़ाते ही रहते हैं । परन्तु ऐसे मनुष्योंको उपर्युक्त वाक्यके साथ ही साथ मनुस्मृतिके पाँचवें अध्यायका यह श्लोक भी ध्यानमें रख लेना चाहिए किः
"अनेकानि सहस्राणि कुमारब्रह्मचारिणाम् ।
दिवं गतानि विप्राणामकृत्वा कुलसंततिम्"॥१५६।।
अर्थात्-कुलसंतति नहीं होने पर भी, ब्राह्मणोंके अनेक ब्रह्मचारी कुमार स्वर्ग गये ।-~यानी यावज्जीवन ब्रह्मचर्यवस्था पालन करके स्वर्ग गये।
सनक, वालखिली-वगैरा अनेक महानुभावोंके स्वर्गमें जानेकी बातें हिन्दुधर्मके प्राचीन इतिहास साबित करते हैं । यदि “अपुस्य गतिर्नास्ति'' यह नियम सर्वथा सच्चा होता तो मनु
न गया
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