Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 61
________________ ४७ जीके कयानानु सार यावज्जीव ब्रह्मचर्य पालनेवाले हनारों ब्रह्मचारी स्वर्गमें न जाते । इतना ही नहीं परन्तु नियोग करके पुत्रकी उत्पत्ति करनेकी अपेक्षा सर्वथा ब्रह्मचर्य पालन मनुनी ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि नियोग अनेक प्रकारके अनर्थ उत्पन्न करता है । मनुनी मनुस्मृतिके पाँचवें अध्यायमें कहते हैं किः "पाणिग्राहस्य साध्वी स्त्री जीवतो वा मृतस्य वा । पतिलोकमभीप्सन्ती नाचरेकिंचिदप्रियम् ॥१५६॥ कामं तु क्षपयेद्देई पुष्पमूलफलैः शुभैः ।। न तु नामापि गृह्णीयात् पत्यो प्रेते परस्य तु ॥१५७॥ आसीताऽऽमरणाक्षान्ता नियता ब्रह्मचारिणी । यो धर्म एकपवानां काक्षन्ति तमनुत्तमम् ॥१५८॥ मृते भर्तरि साध्वी स्त्री ब्रह्मचर्य व्यवस्थिता । स्वर्ग गच्छन्त्यपुत्रापि यथा ते ब्रह्मचारिणः ।।१६०॥ अपत्यलोभाद् या तु स्त्री भर्तारमतिवर्तते । सेह निन्दामवानोति पतिलोकाश्च हीयते ॥१६१॥ नान्योत्पन्ना प्रजास्तीह न चाप्यन्यपरिग्रहे । न द्वितीयश्च साध्वीनां कचिद्गोपदिश्यते ॥१६२॥ पति हित्वापकृष्टं स्वमुत्कृष्टं या निषेवते । निन्द्यैव सा भवेल्लोके परपूर्वेति चोच्यते ॥१६३॥ व्यभिचारात्तु भर्तुः स्त्री लोके प्रामोति निन्द्यताम् । शृगालयोनि पामोति पापरोगैश्च पीड्यते ॥ १६४ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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