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हसे भी योग्य नहीं है । अर्थात्-पुत्रके न होनेसे सद्गति नहीं होती है, ऐसी इच्छासे जो मनुष्य ब्रह्मचर्यभंग करनेको तत्पर होता है, वह वास्तवमें बड़ी भारी भूल करता है और ऐसे झूठे भ्रमसे वह मनुष्य-जीवनके महत्त्वको खो बैठता है । इसके सिवा कई मनुष्य एक दो पुत्र होते हुए भी ज्यादा पुत्र उत्पन्न करनेकी भ्रांतिमें पड़ जाते हैं । उनकी उस भ्रांत कृतिसे शरीरको और देशकी आर्थिक स्थितिको कितना नुकसान पहुंचता है, इसका विचार हम आगे करेंगे । यहाँ इतना ही कह देते हैं कि, बहुत ज्यादह नुकसान पहुंचता हैं । जो सर्वथा यावज्जीवनब्रह्मचर्य पालनमें असमर्थ होते हैं; उन पुरुषोंको कमसे कम २५ वर्षके पीछे और स्त्रियोंको कमसे कम १६ वर्ष बाद लग्न करना चाहिए। जैसा कि हम पहिले बता चुके हैं। लग्न किसके साथ करना चाहिए ? ___लग्न करनेवालोंको पहिले लग्न करनेका मुख्य हेतु समझना चाहिए । यह बात सच है कि, संसारमें गृहस्थोंके लिए तीन पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ और काम-की साधना करना कहा गया है और चौथे पुरुषार्थ-मोक्षके अधिकारी मुमुक्षु-साधु बताये गये हैं। कई लोग यह भी नहीं जानते कि- 'काम' पुरुषार्थ किसे कहते हैं और उसकी साधना कैसे करनी चाहिए। इससे वे अनजान मनुष्य काम पुरुषार्थ-साधनाकी चेष्टामें अपने जीवनको नष्ट करते हैं। वर्तमानमें जो मनुष्य काम पुरुषार्थकी साधना
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