Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ जहाँ तक बन सके स्त्रियोंके संसर्गमें बहुत कम आना । मातापिताको इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिए कि सन्तान प्रायः निर्मल वातावरणमें रहे । विषयी वातावरणमें नहीं। वारंवार विषयकी बातें सुननेसे और देखनेसे उनके निर्मल अंतःकरणमें विषयरूपी जहर उत्पन्न हो जाता है । इस बात पर मात-पिताको तो ध्यान देना ही चाहिए, परन्तु बालकोंकोभी-जो कुछ समझदार हो गये हैं और जो जीवन को सुखसे व्यतीत करना चाहते हैं-इस बातपर ध्यान देना चाहिए । मैं अपने हाथसे अपना सुख क्यों नष्ट करूँ ? अपनी ही कुल्हाड़ी अपने हाथसे अपने पैरों पर क्यों मारूँ ? ऐसे विचार जिन लड़कोंके हृदयमें उत्पन्न नहीं होते वे अपने जीवनमें कभी सुख नहीं पाते । वे ही सुख पाते हैं जो ऐसे विचार करते हैं और साथ ही तदनुसार वर्ताव भी करते हैं । उपर्युक्त कथनानुसार पुरुष २५ वर्ष तक और स्त्रियाँ १६ वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालनेके पश्चात् ही शास्त्रोक्त मर्यादानुसार गृहस्थ बननेके अधिकारी हो सकते हैं, अन्यथा नहीं। समाजकी झूठी मान्यता। ___आजकल लोगोंकी मान्यताएँ और रूढियाँ बहुत बुरी हो गई हैं । वे कहते हैं कि विवाहके पहिले यदि कन्या रजस्वला हो जाती है, तो बड़ा भारी घोर पाप लगता है। परन्तु ऐसी झुठी मान्यता रखनेवालोंके और कहने वालोंके लिए हम कहेंगे कि वे शास्त्रमर्यादा क्या चीज है सो जानते ही नहीं हैं। हिन्दु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108