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स्पष्ट शब्दोंमें वर्णन करना सभ्य संसारमें असभ्यताका अवतार धारण करना है । यह दुराचार पापीमें पापी है और मनुष्य जीवनका सर्वनाश करने में कुशल है। यह जिस पर एक दफा अधिकार प्राप्त कर लेता है, उसकी थोड़े ही समयमें बरबादी हो जाती है । जिस अवस्थामें सारे जीवनके सुखका पाया वीर्यकी रक्षा करके मजबूत करना होता है, उसी अवस्थामें यदि मनुष्य उसकी रक्षा न कर उसका नाश कर देता है, तो उसके जैसा दुर्बुद्धिपूर्ण दूसरा कौनसा कार्य हो सकता है ! क्या मातापिताका यह खास कर्तव्य नहीं है कि वे ऐसी नादानी करनेवाले अपने नादान और मूर्ख लड़कोंको समझावे ? ऐसे कुचालसे उन्हें बचावे ? परन्तु खेद है कि, माता-पिता इस बातकी तरफ बहुत ही कम ध्यान देते हैं । लड़के और युवक, सच्ची बात लज्जाके मारे माता-पिताको कह नहीं सकते; परन्तु जव वे छातीका दुखना, चक्कर आना या सिरमें दर्द होना वगैरा बातें उनके आगे (माता-पिताके आगे) कहते हैं, तब माता-पिता, ऐसे रोगोंका कारण ज्यादा अभ्यास करना समझ, या तो अमुक समय तकके लिए उनका पढ़ना बंद कर देते हैं या बिलकुल ही उनका पढ़ना छुड़ा देते हैं । औटा औटाकर उन्हें दूध पिलाते हैं। कई इससे भी ज्यादा स्नेह बताते हैं । लड़कोंकी डॉक्टरके पाससे चिकित्सा करवाते हैं; और डॉक्टरको कहते हैं कि बहुत अभ्यास करनेसे इसके दिमागमें गरमी चढ़ गई है इसलिए इसे
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