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गसे जो संतति उत्पन्न होती है वही बलिष्ठ होती है । (इस वाक्यसे बालविवाह और वृद्धविवाहका भी निषेध होजाता है।)
इस नियम पर ध्यान देनेवालेको यह तो निश्चित रूपसे मालूम हो जायगा कि शरीरका संगठन २५ वर्ष तक होता रहता है। इस अवस्थाके बीचमें यदि कोई शरीरके नाशका उपाय करे तो कहना पड़ेगा कि वह नियमको ही नहीं तोड़ रहा है, बल्के वह कुदरतसे युद्ध करनेको तैयार हुआ है । जिस समय तालाबमें एक तरफसे पानी आता हो उसी समय दूसरी ओरसे यदि कोई पानीको निकाल दे तो क्या वह तालाब कभी निर्मल जलसे भरा हुआ देखनको मिलेगा ? आम खानेकी इच्छासे कोई उसका दरख्त लगावे और जिप्त समय उसकी जड़ मजबूत होने लगे उस समय यदि वह उस पर कुल्हाड़ी मारने लगे तो क्या वह उस आमका फल खा सकता है ? नरा देखो कि वर्तमानमें ब्रह्मचर्य की कैसी बुरी हालत हो रही है । बच्चे आठ दश वर्षकी आयुमें ही वीर्यका क्षय करने लग जाते हैं । कितने ही माता पिता अपने बच्चोंको छोटीसी उमरमें ही लग्नकी गाँठमें बाँध देते हैं । उन्हें किसी बिचारी गुडिया जैसी जरासी लड़कीका पति बननेका सौभाग्य प्राप्त करा देते हैं । फिर इन गुडियोंके खेलका परिणाम यह होता है कि, वह लड़का पंद्रह वर्षकी उम्रमें तो कुत्तेके पिल्ले जैसे बच्चेका बाप बन बैठता है और वह कच्चीकलीके सदृश ११-१२ वर्षकी कोमल बालिका बच्चेकी माँ
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