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उन पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं; उनकी कमरमें टेढापन आगया है
और उनकी आँखोंपर चष्मे लगे हुए हैं । कई पुस्तक आँखोंके नजदीक रखकर पढ़ रहे हैं और कई जरामे परिश्रमसे घबराकर सिर पकड़े हुए बैठे हैं। यदि कोई उनके आंतरिक जीवनकी
ओर दृष्टि डालेगा तो मालूम होगा कि किसीको प्रमेह रोग हो रहा है, किसीकी धातु दुर्बल हो गई है, किसीको स्वप्नदोषकी बीमारी है, किसीकी छातीमें दर्द होता है, किसीके दिमागमें कीड़ा घुस गया है; किसीको गर्मी हो रही है और किसीको विस्फोटक हो रहा है । वे एकाध रोगसे अवश्य घिरे हुए नजर आयँगे । हम सबके लिए ऐसी व्यवस्था नहीं देते, तो भी इतना जरूर है कि ९५ ३ प्रतिशतक ऐसे ही हैं। अफसोस ! पहाडोको भी लात मारने की ताकात रखनेवाली युवावस्थामें हमारे अविवाहित और शिक्षाके कीड़े युवकोंकी यह दशा ! जिन पर देशके उद्धारकी आशा है; जो हिन्दुस्तानके भविष्यके झगमगाते हुए हीरे गिने जाते हैं, उनकी ऐसी दशा ! ऐसे उनके हाड़पिंजर! ऐसे उनके शरीर! स्टेशनसे पाँच शेर वनन लेकर आधमीलके फासलेवाले घरपर जाना होता है, तो विना गाड़ीके घर तक पहुंचना ही जिनके लिए मुश्किल हो जाता है; और जो जरासी दूर चलकर श्वासोच्छ्रासकी धौंकनी चलाने लग जाते है हॉफने लग जाते हैं । ऐसे क्या भारतवर्षका उद्धार करेंगे ? एक अनुभवी ने कहा है कि:-" जिन युवकोंने शिक्षा प्राप्त
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