Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 47
________________ वीर्यका नाश करता है उसके शरीरको केशरिया दूध या ताँवेकी मस्म आदि क्या फायदा पहुंचा सकते हैं ? बाल्यावस्थामें विषय-सेवनकी मर्यादाको नहीं समझनेवाले और स्त्रीको देखकर पागल हो जानेवाले बालकों को क्या विवाह होनेके पश्चात् अल्प समयमें ही अपने आयुष्यकी 'इतिश्री' करते हुए हम नहीं देखते हैं ? क्या हमने ऐसे पुरुष नहीं देखे हैं कि शरीरमेंसे वीर्यका नाश हो जानेके कारण इधर उधर मासिक और साप्ताहिक पत्रोंमें वीर्य-वर्धक दवाइयों के विज्ञापन पढते फिरते हैं। क्या हमने ऐसे युवक नहीं देखे हैं जो विषय-सेवनकी मर्यादाको तिलांजली दे; अपनी स्त्रीसे भी असंतोष हो नशेवाजोंकी तरह इधर उधर भटकते फिरते हैं । अंतमें उनकी स्थिति बहुत खराब हो जाती है । वे किसीके अंकुशमें नहीं रहते हैं; और वे निरंकुश होकर धीरे धीरे मांस मदिरादि तक भी पहुँच जाते हैं। यह तो हमने विवाहित युवकोंकी कथा कही, मगर अविवाहित युवकोंकी दशा तो इनसे भी बहुत ज्यादा खराब है। अविवाहित युवकोंके शरीर बहुत मजबूत होने चाहिए, जिससे कि वे अपना अभ्यास भली प्रकार कर सकें; परंतु वर्तमान स्थिति इससे बिल्कुल ही उलटी है । किसी कॉलेज या हाईस्कूलमें अथवा गुजराती-हिन्दीकी उँची क्ललसोंमें जाकर यदि हम विद्यार्थियोंकी शकले देखेंगे तो मालूम होगा कि उनके चेहरे पीले पड़ गये हैं; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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