Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 35
________________ "न तथाऽस्य भवेत् क्लेशो बन्धश्चान्यप्रसङ्गतः । योषित्संगाद्यथा पुंसो यथा तत्संगिसङ्गतः " ॥३०॥ अर्थात्-स्त्रियों की संगतिसे और उनके साथियोंके संसजैसे जितना क्लेश और बंध होता है उतना अन्यपुरुषोंके संस से नहीं होता । ऊपरकी बातोंसे यह समझ में आगया है, कि हिन्दु शास्त्रोमें भी ब्रह्मचर्यकी रक्षाके लिए माधुओंको अमुक २ नियम पालनेकी आज्ञा दी गई है । इनके सिवा अन्य भी कई नियम हैं जो लगभग उक्त नियमोंसे मिलते जुलते हैं। इसलिए उन्हीं बातोंका पिष्ट पेषण करना हम निरर्थक समझते हैं। बौद्धधर्मशास्त्र क्या कहते हैं ? इसीतरह बौद्धधर्मग्रंथोंमेंभी बौद्ध साधुओंको ब्रह्मचर्यकी रक्षाके लिए ऐसे ही नियम बताए गये हैं। कहाहै कि:६ यो पन भिक्खु मातुगामेन सहसेय्यं कप्पेय्य पाचित्तियं । ७ यो पन भिक्खु मातुगामस्स उत्तरि छपञ्चवाचाहिं धम्म देसेय्य अञ्बुना पुरिसविग्गहेन, पाचित्तियं । ( भिक्खु पातिमोक्खं, पाचित्तिया, धम्मा पृ. २५) __ अर्थात्-जो कोई भिक्षु, स्त्रीके साथ एक स्थानमें शयन करता है, वह प्रायश्चित्तका भागी बनता है, और किसी विज्ञ पुरुषकी अनुपस्थितिमें भी यदि कोई साधु किसी स्त्रीको पांच-छ: वाक्योंसे ज्यादा वाक्य कहकर धर्मोपदेश देता है, तो उसे भी प्रायश्चित्तका भागी बनना पड़ता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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