Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 28
________________ देनेके लिए कियाहुआ नेत्रविकार आदिको ब्रह्मचारी साधु कदापि याद न करे । क्योंकि याद करनेसे कामोत्पत्ति होती है और उसके उत्पन्न होनेसे ब्रह्मचर्यभंग होता है। सातवाँ-जिस आहारमेंसे घीकी बूंदें टपकती हो उसे प्रणीतआहार कहते हैं । ऐसा प्रणीत आहार और जल्दी कामवृद्धि करे ऐसा आहार साधुओंको सर्वथा वर्च्य है। ___जरा सोचनेकी बात है कि-व्यापारी देश छोड़ परदेश जाते हैं, तब वे वहाँ अनेक कष्टोंका सामना करते हैं। खाने पीनेमेंभी वे बहुत कुछ विवेक रखते हैं, और अपने मनोमंदिर में ऐसी भावना करते हैं कि किस तरहसे हम खूब द्रव्य उपार्जन कर स्वदेश वापिस लोट जायें । इसी तरह सच्चे साधु भी गृहस्थवेष त्यागकर साधुवेष धारण करते हैं, देश छोड़कर विदेशोंमें विचरते हैं, अनेक प्रकारके परिषह सहन करते हैं और “ आत्म · लक्ष्मीको किस तरहसे प्रकट करें " इसी विचारसे रसकसका त्यागकर ब्रह्मचर्यरूपी रत्नचिंतामणिकी रक्षा करनेके लिए मिष्टान्नपानकी इच्छाको दूर कर केवल पेटरूपी गढेको पूरनेके लिए निर्दोष आहार लेते हैं, और अपना लक्ष्य साधनेको हमेशा सावधान रह फिरते हैं । साधु होनेका उद्देश्य क्या है ? इन्द्रियनिग्रह और शुद्ध ब्रह्मचर्यका पालन । जो साधु ऐसा वर्ताव नहीं करते उनके लिए समझना चाहिए कि वे दिन दुपहरे ही भरी हाटमें लुट गये हैं। ब्रह्मचर्यव्रत पालनेवाले साधुओंपर आहारका असर जल्दी होता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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