Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 26
________________ पर मनुष्य खड़े हैं इस लिए हमें विषय-सेवन नहीं करना चाहिए । अतएव जो साधु ऐसे स्थानोंमें रहते हैं; पशुओंका विषयभोग वारंवार उनके देखने में आता है और उससे उनकी मनोवृत्ति विकारी होने लगती है। इसलिए उनको चाहिए कि वे पशुरहित स्थानमें रहें, और नपुंसकयुक्त स्थानतो प्रत्यक्ष सिद्ध खराब है ही, इसलिए इन तीनों स्थानों में साधुओंको रहना अनुचित है। दूसरा समाधिस्थान कथाके विषयमें है। यानी मनको आह्लाद उत्पन्न करनेवाली और कामरागको बढ़ानेवाली, ऐसी स्त्रीकथा ब्रह्मय॑में लीन साधुओको नहीं करनी चाहिए और न सुननी ही चाहिए। स्त्रियोंकी कथाएँ-बार्ताएँ भी इतनी आकर्षक होती हैं कि वे पुरुषोंके मनपर प्रभाव डाले विना नहीं रहती। इस बातको सब अच्छीतरह समझते हैं, कि वैराग्यकी कथा सुननेसे मनुष्यके मनमें वैराग्य उत्पन्न होता है और कामोत्तेजक कथाके सुननेसे दुर्विचार। इस लिये सदा स्त्रियों के रुप लावण्यवेषादिकी कथा करने और सुननेसे साधुओंको दूर रहना चाहिए । तीसरा स्थान स्त्रियोंके साथ व्यवहारसंबंधका है। स्त्रीके साथ परिचय करना। अर्थात्-स्त्रीके साथ एकही आसन पर बैठना नहीं चाहिए। अकेली स्त्रीसे वार्तालाप नहीं करना चाहिए, और स्त्रियोंके साथ वारंवार बोलनेका प्रसंग भी नहीं आने देना चाहिए । इस तरहका व्यवहार रखनेवाले साधु अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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