Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 17
________________ ब्रह्मचर्य क्या है ? ___ अब यह बताना जरूरी है कि-'ब्रह्मचर्य' क्या चीज़ है ? अर्थात् 'ब्रह्मचर्य' किसे कहते हैं ? यदि ब्रह्मचर्यका उसकी शब्दव्युत्पत्तिसे अर्थ किया जाय तो उसका यह अर्थ होगा कि: __'ब्रह्मणि चरणमिति ब्रह्मचर्यम्' आत्मामें विचरण करनेका नाम ' ब्रह्मचर्य' है । परन्तु आत्मामें विचरण करनेका कार्य तभी हो सकता है जब कि वीर्यकी रक्षा की जाती है। अतएव हम 'ब्रह्मचर्य' शब्दका अर्थ यहाँ पर 'वीर्यकी रक्षा' यही करेंगे । अर्थात् वीर्यकी रक्षा करनेका नाम ही 'ब्रह्मचर्य है । 'पातञ्जलयोगसूत्र' के साधनपादके ३८ वे सूत्र में कहा है कि"ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभः" अर्थात् ब्रह्मचर्यकी प्रतिष्ठारक्षा-से वीर्यका लाभ होता है । इसकी टीकामें भोजदेवने कहा. है कि:__“यः किल ब्रह्मचर्यमभ्यस्यति तस्य तत्प्रकर्षानिरतिशयं वीर्य सामर्थ्यमाविर्भवति । वीर्य निरोधो हि ब्रह्मचर्य, तस्य प्रकर्षाच्छरोरेन्द्रियमनःसु वीर्य प्रकर्षमागच्छति" ___ अर्थात्-जो मनुष्य ब्रह्मचर्यकी रक्षा करता है उसको ब्रह्मचर्यकी विशेषतासे निरतिशय वीर्यका-सामर्थ्यका लाभ होता है । और वीर्यका लाभ होना ही ब्रह्मचर्य है । उसके बढ़ानेसे शरीर, इन्द्रियाँ और मनमें विशेष शक्ति बढ़ती है । इस कथनसे भी यही सिद्ध होता है कि-वीर्यकी रक्षा करनेका नाम ही ब्रह्मचर्य है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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