Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 15
________________ ॥ अहम् ॥ शान्तमूर्तिश्रीवृद्धिचंद्रेभ्यो नमः । ब्रह्मचर्यदिग्दर्शन । उपक्रम । बहुधा जब हम मनुष्योंके अगाध शरीर-बल और अतितीव्र मानसिक बलकी कथाएँ सुनते हैं, तब हमें इतना आश्चर्य होता है कि जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । भीष्मके महान् पराक्रमी कार्योका वृत्तान्त बाँचनेवाले और द्रौपदीके चीरहरण करनेकी कथा सुनकर सचमुच आश्चर्यसागरमें डूब जानेवाले बहुत हैं परन्तु भीष्म ऐसे पराक्रमी कार्य कैसे कर सकता था ? और द्रौपदी के वस्त्रहरण करनेपर भी, वह नग्न क्यों नहीं दिखाई देती थी ? इन बातोंका विचार करनेवाले मनुष्य बहुत थोड़े हैं। भीष्म और द्रौपदीके दृष्टांत बहुत प्राचीन समयके हैं, मगर आजकल भी अपनी दृष्टिमर्यादामें ऐसे अनेक अद्भुत कार्य हो रहे हैं कि जो कार्य भीष्म और द्रौपदीके कार्योंके समान ही हमारे हृदयमें आश्चर्य उत्पन्न करते हैं। प्रॉफेसर राममूर्ति यद्यपि साढ़े तीन हाथका सामान्य मनुष्य है। तो भी वह तीव्रवेगसे चलती हुई मोटरको अपने बलसे रोक सकता है । लोहेफी मजबूत साँकलको झटकेसे तोड़ सकता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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