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अपनी छातीपर हाथीको चढ़ा उसका बोझ सह सकता है और मनुष्योंसे भरी हुई गाडीको अपनी जाँघ पर चला सकता है। ये क्या कम आश्चर्यकी बातें हैं ? केवल प्रॉफेसर राममूर्ति जैसे पुरुष ही क्यों ? कुमारी ताराबाई जैसी भारतवर्षकी महिला भी इसी तरह के काम कर बताती है। परन्तु ये सब बातें वे किसके प्रतापसे कर सकते हैं ? इसका कारण जाननेकी हम लोगोंको गरज ही क्या पडी है ? जिन्होंने इन कार्योके मूलको खोजा होगा; अर्थात् जिन्होंने प्रॉफेसर राममूर्तिको पूछा है वे तो निश्चयतः समझ गये होंगे कि ऐसे महान् पुरुषार्थके कार्य करनेका सामर्थ्य उनको मात्र एक ब्रह्मचर्यके प्रतापसे प्राप्त हुआ है। प्राचीन समयमें भी महान् पुरुषार्थ के जो कार्य किये गये थे वे सब केवल ब्रह्मचर्यके प्रतापसे ही किये गये थे । इसका विशेष वर्णन तो हम आगे करेंगे । मगर यहाँ इतना समझलेना जरूरी है कि-संसारका प्रत्येक मनुष्य ब्रह्मचर्यके प्रतापसे छोटे बड़े सब तरह के कार्य करनेको सशक्त बन सकता है। जितने अंशोंमें मनुष्य ब्रह्मचर्यकी विशेष रक्षा करता है, उतने ही अंशोंमें वह महत्त्वपूर्ण कार्य करनेको विशेषरूपसे शक्तिवान बन सकता है। क्या संसारमें ऐसे भी मनुष्य दृष्टिगोचर नहीं होते, जो बिवारे अपने मुँह पर बैठी हुई मक्खीको भी उड़ानेमें असमर्थ होते हैं ! इसका कारण क्या है ? इसका कारण यही है कि वे ब्रह्मचर्यकी बिलकुल रक्षा नहीं करते हैं।
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