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भूधरजैनयतक वर्ष अर्थात् रंग जिनका ऐसे कौन च'नाम प्रभु स्वामी तिनको प्रभा मरता
श्री शान्तिनाथ स्वामी को स्तुति
मत्तगयन्द छन्द शान्ति जनेश जयो जगतेश ह, रै अघ ताम नि शश कि नाई। सेवत पाय सुरासुर आय न, मैं सिर नाय महौतल ताई। मौलि बिम णिनौ .ल दिपै प्रभु, के चरणों झलकै बहु भाई। सं.
धन पाय सरोज सुगन्धि कि, धों चल के पलि पङ्गति आई ॥६॥
शब्दार्थ टोका (शान्ति शान्तनाथ स्वामी जनेश]जनोंकामालिक [जगलेश जगतका मालिक [हरे] दूरकर (अघ] पाप [ताप]गरमो निशेय) चंद्रमा [मां ६) तुल्य शिवती सेवाकर सिरदेवता [असुर राक्षस [महीतल भूमि (nit) तक (मौलि)मुकट (विर्षे] बीच (मपिनोल] नीलम बाहर दि प] धमके (भरोज) वामन (सुगन्धिासुबास (अलि भवरा (पतौ] पाती मएरवी