________________
মুখলিয়ন पानत स्वर्ग में इन्द्रहुये १० भव में जिनवर पार्शप्रभु ने अवतारहुये।
राजा यशोधर के भवों का कथन
.
मत्तगयंद छंद राय यशोधर चन्द्रमतो पह' ले भव मण्डल मोर कहायै । जाहक सर्प नदी मधमच्छ अनाअन मैंस अना फिर जाये । फेर भये कुकडा कुकडी इस' सात भवान्तर मैं दुख पायै । चून मईचरणाय ध मारक' था मुन सन्त हिये नरमाये ॥ ८७ ॥
शब्दार्थ टोका ( यशीधर ) राजा का नाम ( चन्द्रमति ) राणो का नाम ( मण्डल ) देश ( मोर) पक्षीविशेष (जाइक सर्प) सर्प विशेष (अजा) बकरी (पन ) बकरा (क्षाकहा-इकड़ी) मुरगा-मुरगी (चूनमई) जून अर्था व भाटिया (परमायुध) मुरगा-कुकड़ा ।।
सरलार्थ टौंका