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भूधरजैनशतक आप बोला॥८६॥
शब्दार्थटीका (जानमय) ज्ञान का बना हुया (रूप) मूरति ( रूडो ) सुन्दर (जेइन ) जिसको ( लखें ) देखें (न) नहीं ( २ ) अरे ( पिण्ड ) गोला (भोला ) सीधा सादा (बेगलो) जुदी (नेह) प्यार ( एहनो) इस को ( टेव ) स्वभाष ( मेह) हमने ( बोला ) कही ( मेरनै मान ) अप नो मत माग [ पाम्या ] पाकर ( पर्छ ) पछतावै (लाधो पायोनिथी] नहीं ( तोला ) तोल का नाम (बली ) बलवान् (बावै ) वोवे ( तमैं आपथी ) तम पापही (पापने ) आपसे ( आपबोला ) हमनें कहा ।
सरलार्थ टौका परे सुख पिण्ड सीधे सादे तू पाप ज्ञान मूति सुन्दर बना है सी अपने ज्ञानमय स्वरूप को किस वासौ नहीं देखता देह तेरे से अर्थात् आमा से न्यारीथी तेरेसे नेह कर लिया इसका यही स्वभाव है जो हमने कहा इस देहको अपनी मत मानै भव दुःख पाकर पछतावैगा एकतोला भर भी चैन नहीं मिलेगा बड़े दुःखके पक्षका वीज तू भापही मतबोवै अ.पसे हमने कहा।
द्रव्यलिङ्गो मुनि निरूपण कथन
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मत्तगयंद छंद