Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ ११० ... भूधरजनशतक ( पक्ष ) तफंदारी (निश्चे) विखास निर्णय (ब्योहार) संसारी रीत ' ( लहै ) देखे ( हंस ) जीव ( सरवर ) तलाव (पार) पाल १ (सोझ) पक चुके ( सोमें ) पकेंगे ( सीमहि ) पकते हैं २ (महिमा) बडाई (जि नवर ) श्रोजिन ( अगम ) अयाह जहां ना न सके ( पोखे .) पाल (म तवान) मतवाले ४ (असार) पोला थोथा ( सरण ) सहारा [उपाय] यत्न ५। . . सरलार्थ टौका जिनमत विषे दो पक्ष मानीगई हैं निश्चनय १ व्योहारनय २ इन दोनी पक्ष मानेबिन जीव मोक्ष नहीं होगा १ जोपुरुष तीनलोक तीनकाल में पक जाचुके अर्थात् मोक्ष जाचुके वा जायगे वा जाते हैं यह सब जि नमतका उपकार है भीदयाल इस बात में मेरा वित्तमम मत कर २ जिनवर धर्म की बडाई कथनके वलसे नहीं होसकती जैसे भुज के बल सो अगम्य सागर को कोई भापतिरसके और न दूसरे को तिरा सके । अपने अपने पन्थको सारा जहान पालता है तैसे जैन मत पालना भो मतवान मत समझ ४ इस थोथे संसार में और कोई सहायक नहीं है। जन्मजन्म जिनदेव का धर्म हमें सहायक इजो ५। घनाक्षरी छन्द . आगर,धर्मबुद्धि' भूधरखंडेरवाल; बालककैख्यालसोंक' वित्तकरजानहै। ऐसे होकहतभयो' सिंघसवाई सूबा; हाकिमगुलावचन्द; रहैतिहिथान है। हरौसिंघसाहकसु' बंशधर्मरागौनर' तिनकैकईसे जोड़कौनौएकहानैहै। फि

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129