Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুঘললঘন भूधरदासजी आगरा निवासी छत जिस्को मुन्शी अमनसिंह सुनपत निवासी अर्जी नवीस दर्जा अब्बल जिला दिल्लौ नैं शब्दार्थ बा सरलार्थ टीका से सुभूषित और सरल बा संशोधन कर दिल्ली [भारतदर्पण ] प्रेस महल्ला आमिली मैं पण्डित । काशीनाथ शर्मा के प्रबन्ध से छपाकर प्रकाश किया - बैक्रमीय सम्वत् १८४७ । फाल्गु णे शक्लपक्षे प्रथमबार १००० मूल्य प्रतिपुस्तक जिल्दसहित । बार इसको कानूनसे रजिष्टरी हुई है कोई छापने का प्रयास न करें । .. भारतदर्पण प्रेस दिलों में परिडत काशीनाथ शमा के प्रवन्ध से छापागया Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतकः . भूधरदासजी आगरा निवासी कृत . . जिस्को ...... हाल मुन्शी अमनसिंह सुनपत निवासी अर्जी नवौस - दर्जा अब्बल जिला दिल्लौ नैं शब्दार्थ बा. सरलार्थ टौंका से सुभूषित और सरल बा संशोधन कर । दिल्ली [ भारतदर्पण ] प्रेस महल्ला आमिली मैं पण्डित काशीनाथ शर्मा के प्रबन्ध से छपाकर प्रकाश किया. : बैक्रमीय सम्बत् १८४७ । फाल्गु णे शुक्लपक्षे .. र प्रथमबार १००० मूल्यं प्रतिपुस्तक जिल्दसहित ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचना परमसुहृद जैनमतावलम्वी भाइयों को विदित हो कि कविवर भूधरदासजोंने बडे परिश्रमसे शास्त्रका सारभू धरबिलास नाम ग्रन्थ भाषा ललितं अनेक छन्दोंसे सर्व साधारण के उपकारार्थ बनाया किञ्च इसमें जहाँ तहाँ संस्कृत प्राकृत गुजराती आदि भाषा होने के कारण प्र त्येकके समझमैं आना कठिनथा अतः इसी परमउपका • रौ ग्रन्थ मैसे एक शतक सुन्शी अमनसिंह जी ने महाज श्रम और उत्साहसे अनेक कोश वा छन्दरचना के अन्य एकत्रित करके शब्दार्थ बा सरलार्थ टोकासे अति सरल कर दिया पुनः विनाछप सलभ कैप्तिहो और छापखानों मैं यवनादि कर्मचारियों के हाथ मैं जाने से धर्म को हानि होने के कारण हमारे भाई कोई भी पुस्तक नहीं छपाते क्या किया जावे इस विचारमैं दैवयोगसे भारत दर्पण यन्वाधिपति मिलगया इस यन्त्र मैं सब कर्मचारी ब्राह्मण पानौवालाभौ भिश्ती नहीं इत्यादि परम सादर, से छापकर पूर्ण किया अब समस्त धर्मावलम्वो इस को कौडियोंके मूल्यमैं ग्रहण कर अनशीजी के परिश्रम की सफलकर और उत्साह बढ़ावै जिससे ये शेष भूधरविला स कोभी इसी क्रमसे पूर्ण कर आपलोगोंकी समर्पणकरें। पंण्डित काशीनाथ शर्मा भारतदर्पगा यन्लाध्यच महल्ला आमिजौ ( दियौ) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका अङ्गकानाम इन्दनया अनकानाम छन्दसङ्घना १ ऋषभदेवकीस्तुति १ ता ४ २१कर्तव्यशिक्षाकथन ४४ता ४५ २ चन्द्राभप्रभुकीस्तुति ५ २२देवलक्षणकथन ४६ ३ शान्तनाथकीस्तुति २३यन्नविष जीव होम ४ नेमिनाथकोस्तुति ७ निषेध ४७ ५ पार्श्वनाथकीस्तुति ८ २४सातीवारगर्मितषट् के ६ महाबारवीति । ता १० मा उपदेश ४प्ताह ७ सिहोंकोस्तांत ११ ता १२ २५सप्त विसन कथन ५०ताहर ८ सा परमेष्टी १३ २६कुकवि नन्दा कथन ६ ता६५ - जिनवाणीकोनम विधाता सों तक कर स्कार . १४ ता१५ कुकविनिन्दा ६६ . १० जिनमाणोभौरपरबा २८मनरूप इस्ती वर्णन ६७ णोअन्तरकथन १६ ২াল এন ११ भानी की भावना ३०चारी कषाय जोतन उपाय ६८ १२ रोग बैराग अन्तर ३१ मष्टवचनबोजनउपदेश ७० कथन १८ ३२ध र्य धारण प्रिया ७१ १३ भोगनिषेधवायन १८ ३३होनहारदुर्तिवारकथन ७२ १४ देहनिरूपणकथन २० ३४काल सामर्थ कथन ७३ १५ संसारदशानिरुपण २१ ता २४ ३५मज्ञानीज.बकेदुः ख का १६ शिषउपदेशकथन २५ ता ३१ कायन ७४ १७ संसारोज वकथन ३२ ता ३३ ३६धोर्यधारणशिक्षा ७५ १८ अभिमाननिषेध २४ ता ३६ ३७प्राशानाममदोवर्णन ७६ ८ निजव्योहारअवस्था महामूढवर्णन ता०८ ३७ ३९ कुष्ट जीव वर्णन ७८ २० बादशाकथन ३८ ता३३ ४० विधातासोवितककथन८० कथन कथन Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका अङ्ग कानाम छन्दसजना अङ्गकानाम छन्दसहया ४१ चौबोसों तीर्थधरों के ४८ सुबुद्धिसखीप्रतिबचन ८८ चिन्हवर्णन १ ४८ गुजरातीभाषामै शिक्षा ८e ५२ ऋषभदेव के पूर्वभव ५. दृश्यलिङ्गीमुनिनिरूपण. कथन र ५१ अनुभव प्रशमा २१ ४३ चन्दाप्रभुस्खामोके पूर्व ५२ भगवानसों वीनतो २ भवकथन ३ ५३ जनमतप्रशसा ३ता१०५ ४४ शान्तिनाथ के पूर्व भव ५४ जैन शतक रचने वा कथन कवि का हाल १०६ ४५ नेमिनाथ के पूर्व भव ५५ जैन शतक के संपूर्ण कथन ८५ होने का सम्बत् सही ४६ पार्श्वनाथ के पूर्व भव ना तिथि बार कथन ४७ राजायशोधरकैपूर्वभव कथन निवेदन बिजनों को विदितहो कि जेमशतक की काव्यों में जो ऐसा . चिन्ह देखोगे वह पिङ्गल की रोतिसे जहांजहां वर्ण वा मात्राओं की गिन्ती पर विश्राम है तह तहां कर दिया है। यह चिन्ह छन्द बांचने में प्रति सहायक होगा पद वा शब्द वा बाक्य के अनुकूल नहीं किया है जैसा अङ्ग जो में होता है। अमनसिंह Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका श्री बीतरागायनमः অন্তু মুখৰ জল জল লহ্ম স্বসন্ধাঙ্গলী टीका प्रारंभः ---: + : दोहाछन्द बन्टू शी जिन कमलपद; निराधार आधार भव सागर सो भी प्रभू, कर सम भौका पार ? जिन बाणो बन्दनकाह, अति प्रिय बारम्बार जिन मुजसे निर्बुद्धि को, दिया बुद्धिफलसार २ अब मैं अन बुद्धि अवगुणधाम धममसिंह नाम विण सिंहाज सैनी अग्रवाल सुनपत नगर निवासी विद्यजनों के प्रति निवेदन करता कि मु झ को याज्ञ अवस्था सों अबतक (जो बांवम ५२ वर्ष की प्रायु भई) भाषाए न्दोबन्ध ग्रन्थों के अवलोकन का अति प्रेम रहा अब मैं मैं भी भूधर दास जे नो खंडेस वाल सागरा नगर निवासी शत जन शतक को [जो धर्म नीति मैं उत्तम वा उत्कृष्ट कविताकर अति प्रिय अन्य है] देखा और अपने परम दयालु सकलगुण आवास पण्डित मेहरचन्द्र दास सुमपत नगर निवासो की सहायता चे विचारा तब तत्काल मेरी यह अभिलाषा भई कि इस ग्रन्थली बाल बोध हेतु शब्दार्थ सरलो टीका करदीजिये सो मैंने यह विचार कर के दौएकाति भूधर जैनशतक और कतिपय संस्थत या भाषा कोश मञ्चय क • र देखे । बहुधा शष्टों का निर्णय बुद्धिमानों से कर के अपनो तुच्छ बुषि के Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुत्य प्रथम शतका को जो लेखकों की अज्ञानता से अशुद्ध होरहा था शुद्ध कार शब्दार्थ वा सरला टीका प्रत्येक मूल छन्द भूधर कृत के तले लिख क र अर्थप्रकाशिनी नामा टीका बनादई और जो छन्द नाम गण अक्षर मा नाकर बिगड़ रहे थे यूपदीप नाम पिङ्गल को सहायता से ठ क कर दिये . विदित हो कि इस जैन शतक विर्षे दश प्रकार के सर्व १०७ छन्द है जिनके नाम और गिन्तो नीचे लिखी जाता है पोमावतौ छन्द ५ छप्पै १४ मत्तगयन्द २३ घनाशरी ३३ दोहा २२ सो रठा २ दुर्मिला ४ गीता १ सवैया एकतीसा २ कडपा १ और अनुकमणिका पत्र जिस से जैन शतक के सब शङ्गों के नाम छ न्दि संख्या सहित प्रकट होंगे आदि मैं लिखदई है- मेरा विचार था कि शो भूधर दास जी का कुछ जीवन चरित्र लिखू परन्तु कुछ हाल मालूम न हीं हो सका श्री पाच पुराण भाषा इनका बनाया हुवा अति सुन्दर कमि तोकर प्रसिद्ध है दोहाछल्ट उन्निस सौ चालीस पद, विक्रम बर्ष प्रदीन माघ शुक्ल तिथि पञ्चमी, टोका पूरण कौन ३ अव पण्डित जनों से प्रार्थना है कि यदि कहीं शब्द गत वा अर्थ गत दोष अवलोकन करें तो मुझको निपट अनजान जानकर उपहास्य न करें अपना दयालुता हेतु क्षमा रूप वन सौं ढांकलें दोहा छन्द है सज्जान प्रति प्रार्थना; जो इस टीका माह सर्प दोष तो शुध कार; अवगुग्ण पकरें नाह ४ आपकाकृय पात्र अमन सिंह Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जिनायनमः भूधर जैन शतक लिखाते . श्री पम देव की स्तुति पोमावती छन्द a nce ज्ञान जिहाज वैठ गणधरसे, गुण पयोधि जिस नांहि ती हैं। अमर समूह आन अवनी सों; घस घस सोस प्रणाम की हैं। किधौं भाल कु कर्म की रेखा; दूर करन को बुद्धिं धरे हैं। . ऐसे आदि नाथ के अहनिशि; हाथ जोर हम पाव पर हैं ॥ १॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুঘলন प्रदार्थ टीका (ज्ञान ) उत्तम बुद्धि (जिहाज ) बोहित अर्थात् बडी नौका जो समुद्र में चलतो है (गणधर) सुनि बिशेप नो भगवान् को निरक्षर रूप बांणो को सुन कर अक्षर रूप करता है (से) जैसे (गुग्ण) सुभाव प्रबोगता ( पयोधि) समुद्र (निस) जिस के (अमर) देवता (समूह) मराइलो (भान ) पान कर (अवनो) पृथो (सोस) सिर ( प्रणाम) नमस्कार (किधौं ) काहों शायद (भाल) माथा (कुकर्म ) खोटे कम्म (रेखा) लकीर (अह) दि न (निश) रात्रि सरलार्थ टीका गणधर जैसे पण्डित मति १ श्रुत २ अवधि ३ मनः पय॑य ४ 1 चार ज्ञान के धारी ज्ञान रूप निहाज मैं बैठ कर उप्त के गुण रूप ससुटू को नहीं तिर सके भावार्थ उस के गुणों को नहीं पा सके और देवताओं की मण्डली में जिसके भागे सिर रगड़ रगड़ कर नमस्कोर करी है देवता ओंके माधि प्रर कहीं खोटे कर्म की लकीर बाकी यो जिस के मिटा ने हेतु ऐमो बुद्धि धार ण करी है ऐसे कौन आदि नाथ खोमो जिन के आगे हाथ जोर हम पांय पोमावती छंद का उत्सर्ग सुद्रा धर बनमैं; ठाडे ऋषम रिद्धि तज दौनौ । निश्चल अङ्ग मेल हि मानौं; दोनों सुजा छोर जिन लौनी। फसे अनन्त जन्तु जग चहला, दुखौ देख करुणा चित चौलौ । काढ न कान तिन्हें समरथ प्रभु, किधौं बांह दौरघ यह कौनौ ॥२ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুঘলঘন । शब्दार्थ टीका (का उत्सर्ग सुद्रा ) ( काय उत्सर्ग मुद्रा) शरीर छोडना जोग की रीति का नाम ( का उत्सर्ग सुद्रा) जोग माधन को एक रीति का नाम है जो योगी पुरुष अपना शरीर ख स्वभाव पर अर्थात् असली हालत पर छोड़ देते हैं (ठाडे ) खड़े हुए (ऋषभ ) आदि नाथ स्वामा (हि ) संपत्ति (तन) छोड (दोनो) दई (नियल) नहीं हिन्नने चलने वाला (अङ्ग) शरीर (मैक) पहार (मानी) तुन्य (भुजा) वाइ अर्थात् बाजू (अनन्त ) जिस का अन्त न हो (जन्तु ) जीव (जग) संसार ( चहला) कीचड़ ( करुणा) दया (चित ) मन ( समरथ ) सामर्थ बलवान् (प्रभु) खामो (बांद) भु जा (दोरघ) लम्बी सरला टीका थी आदि नाय स्वामी अपनी संपत्ति राज धन आदि को छोड कायोत्सर्ग सु ट्रा धारन कर पन में जा खड़े हुए आपका अचल शरीर मानों पहार है के सा पहार निम ने दोनों भुजा कोड लई हो कवि भूधर दास जी में खामी के प्रवल अरोर दोनों हाथ लटकते हुए को उस पहार से उपमा दई है जि स पहार ने दोनों भुजा छोड दई हो संसार रूप कीचड़ में अनन्त जीव फ से हुण् दुःखो देख कर सामर्थ स्वामी ने अपने मन में दया को उन जीवन को भव रूप कोचड़ से निकाल ने अर्थ कहीं अपने हाथ लवे कर है यह ভবা স্মাৰ पोमावती छंद करनों कछु ह न करते कारज, ताते पाणि प्र लम्व करे हैं। रहो न कछ पायन ते पोबो, . ताहो से पद नाहि टरे हैं। निरख चुके नैनन Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक सब याते, नेत्र नासिका अनी धरे हैं। कहासुने काननकाननयों, जोग लौन जिन राज खरे हैं । ३ शब्दार्थ टोना (कर) हाथ ( कार्य) मास (तातं तिमयर्थ (पाणि ) हाथ ( प्रलंच लंबे (पैबो) चलनो (पद) पैर (निरख) देख (नैन) नेत्र (नेत्र ) श्राद (नोसिका) नांक (अनो) नोक ( कोमन) कानो मे ( कहा ) क्या (क नन) बन (लीन) डुबाहुवा अशक्तों (जिन राज ) त्रादि नाथ स्वामी सरलार्थ टीका हाथ से कछु काम करनो बाकी न था इस कारण हाथ न्तं वे कर दि पायों से चलना न था इस कारण पांय नहीं डिगे आंखों से सब कुछ देर चुके थे इस कारण प्रांखों को पाक को नौक पर लगादई ( नाक की नोट पर दृष्टि डोलकर ध्यान लगाना एक रीति जोग को है ) कोनों से क्या सुन कुछ सुन्ना बाकी न था इस कारण आदिनाथ खाली जोग मैं लीन होक बन मैं ध्यान लगाये खर है छप्प छंद जयो नाभि भूपाल बाल, सुकुमाल सुलक्षण । जयो खर्ग पीताल, पाल गुमामाल प्रतिक्षण । हगविशाल बराल, लालनखचरणबिरजहि । रूप रसाल मराल, चाल सुन्दर लख लज्जहि । रिपुजालकालरिसद्देशहम,फसेजन्मजबालदह । यातनिकाल बेहालअति,भोदयालदुखटालयह४ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूधरजनशतक शब्दार्थ टोका (नयो ) औदन्ते अर्थात् फने वाले (नामि ) आदि नाथ खामी के पि तो या नाम है (भूपाल) राजा ( बाल ) बालक (सकुमाल) नरम कोम ल (सुलक्षणा ) मले लक्षण वालो (वर्ग) जपर का लोक (पाताल ) नीचे का लोया (पाल ) मोम इद पालगे याला (माल) माला समूह (प्रतक्ष ण) सनसख चौडेचपाट नाहर (द्रग) अाँख (विशाल ) बडो (बर) प्या रा उत्तर ( नख) नाखून ( चरण ) पाय (बिरजहिं ) शोभित हैं (रूप) स नो नूरत (रसान्त ) रस भरा (मराल ) हंस (लख ) देख (लनहिं) सफाचे (रिपु ) बैरो (काल) मरना ( रिसहेश ) आदि नाय खामो का ना म (जन्म) पैदा होना ( जनाल) कोचड़ काई सिवाल ( दह) पानी का गहराध भयर (वक्षात ) बुरा हाल (अति) बहुत (भो) अव्यय संबोधन अर्यमें (दयाल ) जपावन्त सरलार्थ टीका नाभि गमा वा बालक कोग श्री प्रादिनाथ खामी जो कोमल और भले लबग वाले हैं जेनते रहो और स्वर्ग पाताल लोया के पालने वाले पुनः प्र सपा गुणों को माला काग धादि माय साम्रो सेवन्ते थो ओर कमे हैं आ दिनाथ स्वामी बड़ी प्रांगण श्रेष्ट माथे वाले है जिन के लालं नाखून चरणों पर शोभायमोग के रमसरी सूरत है और जिन को सुन्दर चाल देख कर है समा में सजा, मो रिमोश हम अपने बैरी काल रूप जाल और जन्म रूप भयर को कोचड़ में फसे है भावार्थ जन्म मरण के दुःख भोग रहे हैं इस टुप मे प्रति बुरा हाल है भो दयास इस से निकाल ओर ये दुख हमारे दूर कर श्री चंद्राभप्रभुस्वामी को स्तुति Anemprogram Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक पोमावति छन्द चितवत बदन अमलचंट्रोपम' तजचिन्ताचिवहोय अकामौ ॥ भवन चन्द्र पाम तप चन्दन' नमतच रण चन्द्रादिक नामौ ॥ तिहुं जगछर्दू चन्द्रका की रति' चिहनचन्द्र चिन्ततशिवगामी ॥ बन्दूचतुर च कोर चन्द्रमा चन्द्रबरण चन्द्रा प्रमुखामौ ॥ ५ ॥ शादार्थ टोका (चितवत) ध्यान करना (बदन) सुख (अमल) उजला ( चन्द्रोपम) चनमाको तुल्य (चिन्ताचित) मगको शोच (अकोमी) निरिशा साध (नभवन चन्द्र) तीनलौक की चन्द्रमा (तप) गरमी (नमत ) प्रणाम का (चन्द्रादिकनामी) चांद से श्रादि लेकर जो जो कोरतिमान हैं (तिह) तीन (जग) जगत (छई ) छाई-पौला (चन्द्रका) चांदनी (कोरति) य॥ (चिहन ) चिन्ह निशान (चिन्तत) चितवन करना (शिव) मोच ( गानो, चलनेवाला (बन्दू ) प्रणाम करू (चतुर ) पण्डित (चकोर) पक्षो विशे जो चन्द्रमापर श्राशता है सरलार्थ टीका - जिनका उजलामुख चन्द्रवत चितवन करके मनको विकल्पता : निरिच्छक होजा कैसे हैं स्वामो तौन लाया के चन्द्रमा पापरूपगरमी के दू करने के लिये चन्दन हैं जिनके चरणों को चाँद सै आदि लेकर जो " ग्रह नक्षत्र तारा गण हैं तिन को नमस्कार करें है तीनों जगत में जिनको यशरूप चांदनी फैली हुई है जिनके चन्द्रमा का चिहन है जिसको । गामी पुरुष चितवन करै हैं चतुर रूप चकोर के. चन्द्रमा चंद्रमा कैसा Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनयतक वर्ष अर्थात् रंग जिनका ऐसे कौन च'नाम प्रभु स्वामी तिनको प्रभा मरता श्री शान्तिनाथ स्वामी को स्तुति मत्तगयन्द छन्द शान्ति जनेश जयो जगतेश ह, रै अघ ताम नि शश कि नाई। सेवत पाय सुरासुर आय न, मैं सिर नाय महौतल ताई। मौलि बिम णिनौ .ल दिपै प्रभु, के चरणों झलकै बहु भाई। सं. धन पाय सरोज सुगन्धि कि, धों चल के पलि पङ्गति आई ॥६॥ शब्दार्थ टोका (शान्ति शान्तनाथ स्वामी जनेश]जनोंकामालिक [जगलेश जगतका मालिक [हरे] दूरकर (अघ] पाप [ताप]गरमो निशेय) चंद्रमा [मां ६) तुल्य शिवती सेवाकर सिरदेवता [असुर राक्षस [महीतल भूमि (nit) तक (मौलि)मुकट (विर्षे] बीच (मपिनोल] नीलम बाहर दि प] धमके (भरोज) वामन (सुगन्धिासुबास (अलि भवरा (पतौ] पाती मएरवी Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूवरजैनशतक सरलार्थ टीका . पान्तिनाथ जनेखर जगतके ईश जैवन्ते रहो पापरूप गरमौंको चंद्रमा मो समॉन हरैहैं देवता और राक्षस आकरआप के पैरों को सेवाकरे है भौर धरती तक सिर निवाकर नकस्कार करें हैं आपके कटसे जोनीलम जवाहरचमक रहा है उस्काप्रतिबिम्ब जोचरणों परभलके है मानों पाप भी कमत रूप चरणों की सुगन्धीलेने को भीरोंको मण्डलीमाई है... -~~ohtoश्री नेमिनाथ सामी को स्तुति NA . घनाक्षरी छन्द . .. : शोभित प्रियंग अंग, देखे दुख होय भंग लाज त धनंग जैसे, दीप भानु भास तैं। बाल ब्रह्म चारी उग्र, सेन को कुमारी जादों, नाथ से नि कारौ कर्म, कादो दुखरास तैं। भीम भव का नन मैं, मानन सहाय खामी, अहो नेमिनामी तक, आयो तुम्हे तासते । जैसे कमाकन्द बन,. नौवन को बन्द छोडि, योहि दास को खला 'स, कौजे भव फांस ॥ ७ ॥ शब्दार्थ टीका Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक (शोभित) शोभाकारी [प्रियङ्ग)पाराअंग (भङ्ग) शरीर (भङ्ग)दूरहोना टू टना (लाजत) लजायमान होना (अन)कामदेव (दोप]दिवला (भा न) सूर्य [भास] चमक[ब्रह्मचारो। ब्रह्मका विचार करने वाला अर्थात् शे,लवान् [उग्रसेन राजलजीके पिताकानाम है 'कुमारी) पुत्री (जा दोनाथ) जादो कुल के स्वामी अर्थात् नेमनाथजी महाराज कादो) . कीचड़ (रास)समूह [भीम) भयानक आनन अाननसहाय) और म 'सहाय(अहो) संवोधनार्थ वा बहु हर्ष में बाअद्भुत बस्तु निरख करयह शब्द बोलते है (तक) तककर ( रास ) समूह (तास) त्रास दुःख (कपा) दयालुता (कन्द) गांठ-जड़ ( दास ) सेवग ( खलास ) छुड़ाबो (फांस)कोटा सरलार्थ टोका पापका शोभा मान प्रिय अंग देख कर दुःख दूर होजाता है और शोमा कारी शरीरको देख कर कामदेव लजायमान होजाता हनैसे दि वला सूर्य के प्रकाशते बालअवस्थासे ब्रह्मचारी अर्थात् नमनाथ खामी ने विवाहनहीं करायाराजाउग्रसेनकीपुत्रीकोनराजलजोकोभीजादीनाथ तेने भवरूप कोचड़ दुखराससे बाहरनिकाला ससार रूप भयानक वनमें भोखामों मेराौरकोईसहायकनहींहै अहोनेमनाथस्वामो दुःख कारण तुमतककर आयाह.भो कपाकन्द आपने जैसे जीवों कोबन्धसे छुड़ाया है ऐसेहो मुझसेबग को संसार रूप काटेसेछुटावो पाच नाथ सामी की स्तति Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. भूधर जैनशतंत्र $ सिंहावलोकन अलङ्कार छपैकन्द जन्म जलधि जलयान, ज्ञान जन हंस मानसर । सर्व इन्द्र मिल आन, चान जिस धरें सौंस पर । पर उपकारौ वान, वान उत्थप्य कुनय गणं । गणसरोज वन भान, भान मम मोह तिमरघन । घन वर्ण देह दुख दाहहर, हर्षत हेत मयूरमन । मन मतमतंग हरि पास जिन जिन विसरहु छि न जगत जन ॥ ८ ॥ शब्दार्थ टीका (जन्म) उत्पत्ति (जल) समुद्र (जलवान) निहान ( जानजन) जान वान मानसर) तालाव विशेष नहंस रहते है (सर्व) सारे (इन्द्र) देवता वोकेराजा (आन) आनकर (आन) दुहाईसोमन्द आशा (पर) पराये (ठ पकारी) भलाकरने वाले (वान) जहनसुभाव (बान) तीर (उत्यपर) उ खेड़नेवाले ( कुनय) खोटायुक्ति (गण) समूह ( गण ) मुनियोंको मण्ड ली ( सरोज) कमल (भान) सूर्य (भान) तोड़ (मम) मेरा ( तिमिर) अन्धे रा (धन) समूह ( घन) बादल (वर्ण) रंग (देह) शरीर (दाह) जलन(हर) झरनेशले ( हरवतर्हेत ) चानन्दर्य ( मयूर ) मोर मनमघ) कामदेव [ मतंग ] हाथी ( हरि सिंह ( पास जन) पार्श्वनाथ जिनदेव (जि) जिसे ( भविसरड ) मभूलो ( छिन ) पल ( जगतजन) ससारोजीव सरलार्थ टोका Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুনমন্ধ जन्मरूप समुद्र के पार वास्ते श्राप जिहाज हो और ज्ञानी पुरुषों रूप इसको पाप मानसरोवर हो देवतावों के सारे राजा मिल आन करा पको आज्ञा सिर पर धरैहै आपकासुभाव परायाभला करने का भी र खोटीयुक्तियोंके समूहका उखेड़न के लिये आपबाणवतहो मुनियोंकी मएडली कहिये कमलवन तिस्क प्रफुमितकरने के वास्ते आपसूर्यहो मे रेमोड रूप अन्धेरे के समूह को तोड़ो अर्थात् भित्रकरो आपकीदेह या म बादलवत श्याम वरण है सोदुख खरूप जलनकी हरनेवाली मेरेम मरूप मोर के आनन्द के लिये हेतु है कामदेव हाथो के जीतने को श्री पार्श्वनाथ स्वामो सिक्के समान है परससारीपुरुषो मिरे किम भरम भूतो श्री वर्धमान अर्थात् महावीर खामी की स्तुति दोहा छन्द दिढ कर्माचल दलन पबि, भवि सरोज रबिराय । कञ्चनछबि करजोर कवि, नमतबौर जिनपाय॥८॥ शब्दार्थ टीका (दिड) ट्रह प्रचल(कर्माचन) कीकापहाइदिसन) दोदूक करनेवारी Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HTTE १२ भूधरजैनशतक (पवि) व बिजली(भवि) भलेपुरुषारविराय] सूर्य कंचन सोना [छवि] । शोभा(कवि) कवित्त कर्ता बीरजिना महावीरखामी भरलार्थ टीका कम्मरूप टूढ पहाड़ के तोड़ने के वास्ते आप वजहो और कमसरूप भले पुरुषों के लियेसूर्य हो सौने कोसोभापकीशोभा है मैं कवि हाव जोड़ कर महाबीरखाभी के पायों को नमस्कार करू हो पोमावति छन्द रहो दूर अन्तर को महिमां, वाहय गुण वर्णन बल कापै । एक्ष हजार आठ लक्षण तन; तेज कोट रबि किर्ण न तापै । सुरपति सहप्त आंख प्रचलि सौं, रूपामृत पौवत नहिँ धापै। तुमति न कौन समर्थ दौर जिन, जगसौं काढ मोख मैं थापै ॥ १० ॥ . शब्दार्थ टोका .. (अन्तर) अंदर (म हमा) वड़ाई (बाहय) शहर (का)किसपै(लक्षणचि नह(तेज) चमक (कोट).करोड़ (तापै). तिसपर (कुरपति) इंद्र (सहस) हजारअनलौदोनोहायोंकेपंजों को आपस में मिलाना ऐसी तरह जिसमैपानी भादि बस्तुलेते है. [मोख) मोक्ष [चाय स्थापन करे। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक . . सरलार्थ टीका, .. . . . . भापकेन'तर की बड़ाईदूर रहो उस्का कुछ कथन नहीं केवल बाहरके 'गुणों के बरपन का भी जोप्रत्यक्ष हैं किस पै बल है भावारथ किसी नहीं एकहनार आठशम चिन्ह आप के शरीर पर है और क रोड़ रवि को किरणोंका तेज आपके शरीर में है इंद्र हजार प्रांख की प्रश्नली सोंभो पापका रूप अमृत रस पोवताहुआ नहीं धाप ता भोवीर जि न तुम बिन कौन ऐसा सामर्थ है जो हमसे संसारी नीबों कोसंसार निकालकर मोक्षमें स्थापन करे श्रो सिद्धों की स्तुति मत्तगयन्द छन्द ध्यान हुताशन मैं अरि ईंधन, भोक दिया । रोक निवारी। शोक हरा भबिलोकन काबर, . केवल भोम मयूख उघारौ । लोक अलोक बि लोक भये शिव, जन्म जरा मृत पंक पखारो। सिहन थोक बसै शिव लोकति, होपग धोकत्र काल इमारो॥ ११ ॥ ... शब्दार्थ टीका .. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ থে সময় (ध्यान) पासमविचार (हुताशन) अगनों (रि) बरी (रोक) घटक ( निवारो) बरजदई अर्थात् रोकदई [ शोक] दुख (इरा) किया (लाकनका) लोगोंका (केवल) ज्ञानविशेष (मयूप) सूर्य को किरण (उधारो) खोली फैलाई (लोक) उर्धलोक मधालोक. पाताल लोक येतीनों लोक स्थान है (अलोक) जोलोककेगुष्यसै रहित है (विलोक ) देख (शिव) मोक्ष (जन्म )पंदा होना (जरा) झापा (मृत) मौत (पंक ) कोच (पखारी ) धोई (सिह) जिनकी कोई विकार बाको नहीं रहा मोक्ष में चले गये (योक) म इली (भिवशोक ) मोच जोक (धोक) ममना (कास) तौं শীৱন্তু মার সম বয়া सरलार्थ टीका धामरुप पग्निमें बैरी रुप इन्धन सों कौन इन्दियन के मुख जी मोच मार्ग को रोक थे झोक दिये अर्थात् जलादिये दूर करदिये भवि तो गोके दुख को हर लिया उत्तम केवल मान रूप सय्य की किरणों को बोलदिया लोक अलोकको देखकर मोक्षहोगये जन्म जरा मृतरूप को पड़ को धो दिया सिङ्गों का थोक जो शिवचोक में बसे हैं उनको तीन कालामारीपग धोको मत्तगयन्द छन्द । तौरथ नाघ प्रणाम करें जिन; के गुण वर्णन मैं बुधि हारी। मोम गयो गल मोष मझाररहा Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक तिहि व्योम तदाकृत धारी । जन्म गहौर नदी पति नीर ग; ए तिर तोर भये अविकारी । सिद्धन थोक बमै शिव लोक ति, हौं पग धोक जकाल हमारी ॥ १२ ॥ शब्दार्थ टीका (तीरथनाथ) तीर्थंकर ( मोख ) छिद्र साँचा (मझार ) बिच (तिहि तिस जगह (व्योम ) आकाश थोथ पोल ( तदाकत ) तिस रुप (ग हीर.) अथाह गहरा (नदी पति ) समुद्र ( नोर ) जल (तोर) तट किनरा ( अवकारी) विना विकार वाले सरलार्थ टोका सिओंको तीर्थ कर प्रणामकरै हैं तिन केगुणों के वर्णन करने में वृद्धि हारगई साँचेका मोमतोगलगया केवल तिस जगह आकाश अर्यात्यो थ तिसरूप रहगर्द इस प्रकार सिद्धों का स्वरुप शास्त्रमैं कहाहै जवरुप | गहरे समुद्र के जलकोतिर कर किनारे पहुंचकर अविकारी होगये भा । वार्थ भवरुप समुद को तिर मोक्ष चले गये और कोई बिकार वाकीन हौं रहा सिद्धी का थोक जो शिव लोक मैं बसे हैं उन सिद्धों को तीन कालहमारो पगधीक है - श्रीसाधू परमेस्टो को नमस्कार Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RepSTE HP.. १६ भूधरजैनशतक -PR घनाक्षरी छन्द शोत क्तु जोरै तहाँ, सबही सकोरे अङ्ग, तन को नमोरै नदि, धोरै धौर जे खरे । जेठ की भकोरे जहाँ, अण्डा चौर छोरै पशु, पचौ छ। हलोरें गिर, कोरै तप ये धरे । घोर धन घो रै घटा, चहीं ओर डोरे ज्यौं व्यौं, चलत हि लोरें लौं त्यौ, फोरें वल वे अरे । देह नेह तो पर, मारथ से प्रीत जोरे, ऐसे गुरु गोरें हम, ाथ अञ्जलि करे ॥ १३ ॥ . शब्दार्थ टीका रशीत ) जाडा (ऋतु ) फासल मौसस समय (जोरै) जोरपर (सको है) समेटें (धीर) साहस संतोष (जे) साधू (जेठ) गरीपम 'महीनेकानाम (भाकोरे) लू - झकड़ (भण्डाचीलछोरे) यह बातप्रसिद्ध है के अति गरसीमैं चीलअण्डा छोड़ती है (पशू)चतुष्पदजीव (पक्षी) पर उड़ने वाले जीव (लोरै) चाहैं (गिर) पहाड़ (कोर.) सिरा प हाड़ को चोटी (धोर) वड़ा-भयानक (धन) बादल मेघ (धोरै) गरज (चहुओर डोरे) च्यारों तरफ चलें ( हिलोर) बादल की ल हर ( फोरे बल) बल खोले अर्थात प्रगट करे (ये ) साध । अरे ) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ भूधरजैनशतक ... अड़े (नेह ) राग (परमार्थ] उत्तम कार्य ( ओरे) दिशा __ सरलार्थ टौका जाड़े की समय में जब सर्व मनुष्य अपने शरीर कोसकोड़ ते हैं साधू जन अपने तनको नही मोड़ते और ऐसो सरदीमे नदीकेतट पर धैर्य कीसाथ ध्यानलगाये खड़े है जेठके महीने को लूओमैं जब चौल अण्डे छोड़ तीहै और पशु पक्षी जीव सरब छाह की चाह ना कर ते हैं ऐसी गरमी मैं ये साधू पहाड़ की चोटी पर तप रहे हैं भयानक बाद ल गरजे और च्या रों ओर घटा चले ज्यों ज्यों बादल की लहर उडैहै त्यो त्यों ये साधू अपने धीर्य के बल को खोल कर सन्मुख अड़े हुवे हैं डिग मिगाते नहीं हैं देह केनेह को तोड़ ते हैं और परमार्थं से प्रीत जोड़ते हैं ऐसे साधू गुरों की ओर हम हाथ जोड़ते हैं . श्री जिन-बाणी को नमस्कार मत्तगयंद छंद बौर हिमाचल तें निकसी गुरु, गौत्तम के मुख । . .. कुण्ड ठरी है। मोह महाचल भेद चली जग, की जड़तातप दूर करी है। ज्ञान पयोनिधि माह रलो बहु, भङ्ग तरङ्गन सूं, उछली है। ता , Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरलैनशतक शुचि सारद गङ्गनदी प्रति; मैं अञ्जली निज सौस धरो है ॥ १४ ॥ . . शब्दार्थ टोका (बोर) महावीर खामों ( हिमाचल ) हिमाला पहार (गौत्तम) एकमुनि का नाम है जो महाबीर स्वामी के गणधर थे (मोह) चा हत (महा चल) बड़ा परवत (भेद) छेद भिन्न अर्थात जुदा क रना (जड़ता तप) मूर्खता रूप-तप ( पयो निधि) ससुद (बहु) बहुत (भा) तोड़ने वाली (तरंग ) लहर (ता) तिस (शुचि) पवित्र (सारद) बाणी (प्रति ) तुल्य नकल सरलार्थ टीका जिन बाणी गंगा नदी के तुल्य है अर्थात् बग बर है जैसे गंगा जी हिं माचल परबत से निक सो है ऐसे जिन बाणी महाबीर स्वामीमेखि री है जैसे गंगा जी गज मुख कुण्ड मैं ढली है ऐसेजिन बाणी गौत्तम रिषिके मुखौं आई है अर्थात गौतम मुनिने उस बाणी को अक्षर रू पबनाकर शास्त्र रचे जैसे गंगाजी पहाड़ों को तोड़ कर चली है ऐसे जिन बाणी मोहरूप बड़े पहाड़ को तोड़ चलो है जैसे गंगाजीने गर मो दूर करी है ऐसे जिन बाणों ने संसार की मूर्खता का गरमी दूरक रो है जैसे गंगानी समुद्र मे मिल. है ऐसे जिन वाणी ज्ञान रुप समु दुमे मिली है जैसे अंगाजीमेलहर मारती हैं जिनवाणीम सप्त भग बाणी कोल हर मारती है तिस पावन जिन बाणी गगा नदी के प्रतिको Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक मैं नेअंजली अपने सेस पर धरी है अर्थात् प्रथाम करते है मत्त गयन्द छंद या जग मन्दि• मै अनिबार अ' ज्ञान अन्धेर छ यो अविभारी । श्री जिनको धुनिदीप शिखाशु चि' जो नहिं होय प्रकाशनहारी। नौ किसमां ति पदारथ पांतिक' हा लहते रहते अविचारी । याविध सन्त कहैं धन है धन' हैं जिन बैन बड़े उपकारी ॥ १५ ॥ शब्दार्थ टीका (मन्दिर) घर (अनिवार) नहीं दूरहोने वाला (धुनि) शब्द (दो पशिखा) दियेको लौ (प्रकाशनहारो) उजाला करने वाली (भांति) राति (पदार्थ) बस्तु (पति) पङ्कति (लहते ) देखने (अधि चारो) बिना विचार वाला ( धन्यहै ) यह शब्द अति आनन्दमैं अद्भुत वस्तु देख कर दूसरे के प्रति गोलाकर ते है ( वैन) बचन (उपकारी) सहायक सरलार्थ टीका एससंसार रूप घरमें प्रति भारी अज्ञान रूप अन्धेर छा गया था योनि Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक २० न देव कोधुनि रूप दिये की पवित्र जोप्रकाश माननहीं होती तो किस प्रकार बस्तु की पांति की देखते अर्थात् वस्तु का स्वरूप किस तर " ह जानते अविचारी रहते इस कारण साधक है हैं धन्य है धन्य है जनधन वडे सहायक हैं ६० श्रीजिनवाणी और परवागी अन्तरदृष्टान्त 7 घनाक्षरी छंद कैसेकर केतकी क, नेर एक कहि जाय, आक दूध गायदूध' अन्तर घनेर है । पौरो होत रिरी पैन' रोस वरे कञ्चन को कहां काग वायौ कहां ; कोयलको टेर है । कहां भान भारी क हां' अगिया विचारो कहां' पूनीको उजारो क हां मावस अन्धेर है | पक्ष तज पारखी नि; हा रमेक नोक कर; जैनवैन और वैन' इतनो हो फेर है ॥ १६ ॥ शब्दार्थ टीका चैतको ) एक अति सुगंधित फूल का नाम है ( कनेर ) एक वृक्ष का . Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक नामहै जिस के फूलमें सुगन्धि नहीं होती और महादेव पर चढ़ा ते है (आक) अर्क (घनेर ) बहुत (रिरी) पोतल ( टेर) शष्ट अवाज़ (भारो भारी (अगिया ) पटवोजना ( पूनों )शुक्ल पक्ष की १५ (मा वस) कृष्णपक्ष को १५ (पन ) पछ (पारखी) परखनेवाले (नेक ) थोड़ीदेर जरा (नोकेकर) अलेकर सरलार्थ टोका केगी और कनेर केसे कर एक कही जाय आक दूध और गाय दूधमें बड़ा अंतर है यदि पीतलपीरी होतीहै पर कंचन की रोस नहींकरसक तो कहां काग को बान कहाँ कोयल की टेर कहां सूर्य अतिप्रका सामान कहाँविचारापटविनना कहांपूनोंकाउजियालाकहांमावशकाअ धेरा बड़ाअंतर है हेपरखनेवाले पक्ष छोड़कर थोड़ीवार ध्यान करदेख जन बचन औरपर मत के वचन मैं इतनी ही फेर है ज से जपरकहाहै -edito- घनाक्षरी छन्द कव ग्रह वाससौंउ' दासहोय वनमे उ बनि न रूपरोकू' गतिमन करौ को । रहिहौं अ 'डोल एक' असिन अचल अंग' सहौहों प रिषाशीत घाम मेघ झरी की। सारंगसमाज खाज' कवयों खुनावै पान; ध्यानदल नोर • जीतू सेनामोहि अरोकी । एकल बिहारीय' Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ भूधर जेनशतक था; जात्तलिंगधारीक होऊ इच्छाचारी बलहारी वाहघरौको ॥ १७ ॥ शब्दार्थ टीका (ग्रह) घर (बास ) बसना ( वेडं ) देखीं ( निजरूप ) अपनारूप ( गति) tara ( करी) हाथी ( घडोल) नहीं फिर ने वा ला (सहिहों उठा उ-स-परिखा कष्ट (शेन ) जाडा ( घाम ) गरमी (मेघ भरी) वरणा (सारंग समान ) हिरमोंकी डार (कबध्यों ) किससमय (धान) श्रान कर ( दल ) सेना ( जोर ) जोड़ कर ( सेना ) बल फौज ( एकल बिहा रो) अकेले चलनेवाले (यथाजाति लिंग धारो ) जन्म समय का चिह्न धारने वाला अर्थात् जैसा मनुष्य के पास जन्म कात में मस्त आदिप रिग्रहनथाकेवलनग्नथा (इच्छा चारी) मनोवत गामो बन्ध रहित (ब लिहारो ) सदकै कुरवान वार सरलार्थ टोका ज्ञानी पुरुष ऐसी भावना मनमें धारण करते हैं कि कब चैसा समय हो गा कि में घर के रहने से उदास होकरबनमें रहीं गा और अपने निजख रूपको देखोंगा बा बिचारू गा और मन रूप हाथी की चाल को कब रोकों गा भावार्थ मनस्थिर करु' गा औरकव ऐसा समय होगा के मैं अडोल एक आसन. अचल अंग होकर जाड़े गरमी बर्षाऋतु की परीषह के दुःख सहन करू गा और कबऐसा समय होगा किहिरणोंकीडारमेरे ए क आसन अचल अंगको लकड़ी का टूठ बा बोटा समझकर अपनाशरी Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक २३ र खुजावे गी और मैं ध्यान रूप सेना का संग्रह कर के मोह रूप बैरी की फ़ौज को जो तोंगा पौर काब ऐसा समय होय गा कि अकेला बिहा • र करों गा और जिन चिह्नों को ले को माताकेपेट से उत्पन्नहुबाया वही चिन्ह धारण करूगा अर्थात्नगनहगा औरकव इच्छा चारी होगा उस वरी बारो जाइये कब ऐसासमय भावे गा जैसा ऊपर कहा है 1002CREASE হষ বা অলৰ ৰূঘল घनाक्षरी छंद राग उदै भोग भाव, लागत सुहावने से, विना राग ऐसे लागे; जैसे नाग कार हैं। रागही से पागरहे; तनमें सदीबनीव' राग गए आब तमिलनि होतन्यारे हैं। रागहोस नगरीति; झूठो सव साज जाने, राग मिटै सूझत असार खेल सारे। रागी बीतरागी के विचार में बडो है भेद, जैसे महा पच काज, काज को ब यारे हैं ॥ १८॥ মন্দ । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरनेनशतक. ( राग ) मोह (उदै ] प्रकाश ( भोग ) बिलास मुख ( भाव ) चौच ला मनकी मौज ( सुहावने ) भले ( पाग ) सिलना (गिलानि ) नफर : ( न्यारे) जुदे कमजोर ( भसरा ) कच्चा दुरा ( रागी ) बातची (वीत रागो) राग द्वेष रहित स्वागो (भेद ) अंतर फरवा ( भट्टा ) बैंगन शाक [ पच ] हाजिल ( काऊ ) किसीको (बयारे) बाय कर नेवाले' ' 1 सरलार्थ टोका मोह के उत्पन्न होनेपर सारेभोग विलास चोचले प्यारे मालूम होते हैं और जबमोह नहीं रहा तो वही भोग विलास चोपले से बुरेलगते है कालसर्पमो कारण जीव शरीर में मिलकर रहता है और जमी P ह जाता रहा जीव को घर र से उलटी गिलानोभतो है औरशर र छ ड़ कर न्यारा हो जा ता है और राग के कारण संसारको झूठी रोति को साचीमाने हैं रागदूर होने पर संसार के सारखे सात मां शेकशेयेाव दिखाई देते हैं इस कारण रागी और बैरागी पुरुष के विचार में बड़ा ही अन्तर है जो से वैगन शाक किसो कोपछड़े और किसोकोबायल है कि सो कवि का वाक्य है ( किसीको बैगनवायला किसी को होवे पछ) 1 १० भोग निषेध कथन मत्तगयंद कंद Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधर जैनशतक तू नित चाहत भोग नऐ नर, पूरब पुन्य बिना किस पैहै । कर्म संजोग मिले कहिँ जोगग, है जब रोग न भोग सके है । जो दिन चारकाव्यों तव न्यो कहिं, तो पर दुर्गति में पछते है । यां हित या सलाह यह कि ग, ई कर जाहि नि 1 बाह न है है ॥ १६ ॥ ३५ शव्दार्थ टीका [मित मढीव (पूरब) पह से (किमये हैं) कैसे पाये (संजोग ) मेल (जोग) कारण ( ग ) पकर (व्योंत ) ढब ( पकते है ) पछतावे है ( यार ) सित्र ( सलाह ) मशवरा सम्मती ( गईकर जाह ) जोबस्तु हाथ से याती रही ( निवाहन है है ) साधन होय सरलार्थ टीका हेनर तू सदव नए नए भोग विलास की भावना करेंहैं परन्तु पहले पु एय बिना कैसे भोग भोग सकेगा यद्यपि को संजोग से कहीँ भोग लोग ने का जोग मिलभी ना वे तो रोग पकड़ ने पर फिर नहीं भोग सता यदि फिर भी कहीं प्यार दिन भोग भोग भी लिये तो दुर्गति मैं पड़ कर पकता वे गा इसकारण हेमित्र यही सलाह है कि जो बस्तुह थ से गई उस्कानिबाह अर्थात् साथ नहीं हो सका भावारथ भोग भोगं नां अपने बगका नहीं है को आनन्दको छोड़ तू नहीं निबाह सकेगा भावार्थ तेरा इका साथ नहीं बनेगा ' Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মূহলসন .५०NATRIC CASV - - - देहनिरूपणकथन अर्यालदह क्षतिगांव में - - मन्तगयन्द छंद मात पिता रज वोरजनों उप, जो स्मबहाद जा धात अरो है। माखिन की पर सानिया बादर, चास लि वेठन वैठ धरी है। नाता बार लरी अवही वगु, वायस जीव वचै न धरी है। दस दशा यहि दौखत धात, पिकात नहीं मिल बु वि हरी है ॥ २० ॥ স্লাই স্বা (रज) लहू (वीरज ) धातु सनो (उपजी) पेदा हुई मानभात) हाड १ मांस२ लहू ३ चाम ४ मजा चरबी ०५. नेट नस ०६ बर्थ ०७ (सापिन ) मखिया मशिका [ माफक तुल्य ( वेटन ) जस्ता पेटन बन्धेज (ठ) लपेट [नातर ) नहींतो (वगु) वगना पक्षी यस ) काग पक्षो (दशा) अवस्था [माता ] भाई सरलार्थ टीका माता कैलहू और पिता के वीर्य से पैदा हुई और सात धातसे भरो Mum . " - IA Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूधरजैनशतक .२७ है और सांखियों के पर के माफक पतले धाम के बस्ते से लपेटधरी है नहीं तो अभी बगुले और काक इस देहके आकर चिमट जाते हैं जीव घरी भरबी नहीं बचता हेभाई जव देह की यह दशा जो ऊपर कहाँ दिखाई देती है तो इस पर भी तू धिन नहीं मानता तेरी किसन वुद्धी हरी है -o - কাৰহ্মা লিবল घनाक्षरी छंद काउ घर पुत्र गायो, काउ के वियोग आयो, वीउ राग रङ्ग शाउ रोना रोई करौ है। जहां भान उगत उ, छाह गीत गान देखे, सांझ स मै वहां थान, हाय हाय परौ है। ऐसी जग रौ त को बि, लोक को न भौत होय, हा हा नर मृढ तेरी कौन मति हरी है। मानुष जनम पा य, सोवत बिहाना जाय, खोवत करो रन कि . एक एक घरी है ॥ २१ ॥ शब्दार्थ टीका [काउ ) किसी (जायो ) पैदा हुवा (बियोग ) बिछोया आपदा (उ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशरामा कानौ कौडी विधै सुख, भव दुख करज अपार । बिन दौये नहीं छूटते; ले शक दाम उधार ॥२४॥ शब्दार्थ टीका (विषय सुख) इन्द्रियों के सुख (करण) ऋण [अपार ] बहुत लोग का) किञ्चित मात्र थोड़े से मी सरलार्थ टीका इन्द्रियों के सुख कानी कोड़ी को तुल य तुन्छ है ऐसे सखों दो या सोन व दुख जो भारी धरज है अपने सिर कर लिया क्या तू नही जानतारें थोड़े से दाम उधार लियेभी नहीं घूट ते फिर तनां सारी काम करें सिर धरै है यह पयोंकर उतरे गा মিত্তলা - - হুক্ষ্ম স্থ दस दिन विषै बिनोद, फेर बहु विपत परग्यर । अशुच गेह यह देह, नेह जानत न आप जर । मित्र बधु सनवन्धि, और पर जन जै अङ्गौ । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक ३१ घरे अन्ध सनबन्धि, जान, खारथ के सड़ी । परहितकाजअपनीनकर, मूढराजअबसमझडरा तज लोका लाज निज काज को, पाज दावहै यक इत गुर ॥ २५ ॥.......... . ..शब्दार्थ टीका ... (विणे ) इन्द्रियों के भोग [ बिनोद) भानन्द (विपत ] दुःप ( पर म पर ] अति (अशुच) अशुद्ध [ गेह ] घर ( नेह) प्रीति (जर) मू एवं ( पन्धु ) भाई ( सन्बन्धि ) सनवन्धि । मुतअल सक (पर जन जे आज ]पर लोग जो अपने शरीर से मिलापं रखते है जैसे मात दार ( स्वारथं ) अपने प्रयोजन (संगी ] साधी ( पर ] पराये [हित) भले कारण [अकान ) काम निकम्मा काम [ मूराज.) बड़े मूर्ख [ दाव) काल समय और यह शब्द जुवारियों को संघामें बोलते - सरलार्थ टीका दशदिन अर्थात् छोड़े दिन इन् द्रियों के भोग का प्रानन्द है फिर व ही वड़ादुख है यहशरीर अशक्षीका घर है परन्तु मूर्ख मोहके कारण गह जानता मित्र बा भाई वा संवधी और पर जग जो अपने नाते दारहरअन्धसारसमंधो मितादिको अपने प्रयोजन का साथी समझते रे कोई काम नहो पानेका पराये भले के वास्तै अपना काम मत वि. गारे हेमूर्ख भव समभा कर पर अपने भलेले वाले लोगों की लाजको छोड़ दे आज,काल अर्थात् समय है ऐसा गुरू बाई वे है .. . . . . Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ S भूधरजैनशतक 132 ••• घनाक्षरी छन्द जौ लों देह तेरौ काउ, रोग नैं न घेरी नौलों; जरा नांह मेरी जासों, पराधीन परि है । जो लों जम नामा बैरौ; देय न दमामा जौलों, मा नैचान रामा बुद्धि, बाघ नर है । तौलों मित्र मेरे निज, कारज समार धोने; पौरुप थ केंगे फिर पाछै कहा करि है । अहो आग आ के खुदाये त 1 " वैजब झोंपरौ नरन लागे, ब, कौन कान सरि है ॥ २६ ॥ शव्दार्थ टोका ( जोलों ) जवतक (जरा) बुढ़ापा ( मेरो ) नजीक ( परा धन ) पर वश (दमामां ) नगारा ढोल (रामा) स्त्र । ( तौलों ) तबतक ( पौर घ) पराक्रम सरलार्थ टोका अवतक तेराशरीर किस रोग नेम हीं वे रावुढ़ापा निकट नहीं पाया जिस से परवश हो कर पड़े और जबतक यम राज आकर अपना ढोल नवजा बे अर्थात् मौत न घावे अथवा स्त्रो जब तक तेर। श्रन या काम नमाने पोर बुडोविगरे नहीं तव तक मित्र अने काम समार लानि से परा Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरने नशतक ३३. क्रम सिंघल हुवे पर पीछे क्या करि ये भाग जव झोंपड़ी नरम ला उस काल कूवा खदा येये क्या प्रयोजन सिद्ध होगा घनाक्षरी छंद सौ बरष आयु ताका, लेखा कर देखा सब, श्र धोतो अकारथ हि, सोवत विहाय रे । आधी मैं अनेक रोग, बाल वृद्ध दशा योग, और संजो ग केते, ऐसे बौत जय रे । बाकौ अब कहा र हो, ताही तूं विचार सही, कारन की बात य हो, नौको मन लाय रे । खातिर मैं आवैतो ख लासौ कर हाल नहीं, काल घाल परे है अचा 1 20 न कही आय रे ॥ २७ ॥ शब्दार्थ टीका (आयु ] उमर (लेखा) हिसाब ( अकारथ ] हथा ( विहाय रे ) व दोत [ अनेक ) वहुप्रकार ( बीत ] गुजर ( नोको ) भली ( खा तिर ) मन [ बलासी ) छुटकारा ( हाल ) अव (काल) मौत (घा ब) एक प्रकार की जांदू को मार सरलार्थ टोका म्रो बरस की उमर का साराहिसाब कर देखा जाधो तो हथा सोवते } Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ সুমন্দঘন बदीत होय है और राधा में वासका बुढापे कारण अनेक रोग होजों ते है इस्लो सिवाय और कितने संजोम ऐरे होते निस्से नाना प्रका र के रोग होना ते ६ वाकी भव का रहो तिस ही ने विचारले काम की बात यही पाठी थपने मन शान तेरे सनने शव तो तुरतहोप भीछुट कारा करने नहींतो कास की धाल अचानक पान पर गी फिर कुछ गहों को या घनाक्षरी छंद पाल पने बाल रच्यो, माझे पृष्ट दाज भयो, तो का लाज वाज बांधो, प्रायन को ढेर है। आप को अकान कीनो, पोलन में यश लौनो, पर भो विमार दीनो, विबै विष जे रहै। ऐसे गि ई विहाय, अलप सो रही नाय, नर पर खाय अह; पधे सो वढेर है। घायशत भैया अव,का ल है अवैया इम; जानौ रे, सियाले तेरे, अझों भी अन्वर है ॥ २८॥ शब्दार्थ टोला (बालपने ) बालक अवस्था में ( बाल ) वालक [ पर भौ) पर लोक (विसार) छोड़ना ( वश) वर (जेर ) नीचा (विहाय ) बदीत Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक - ३५ (अलए) थोड़ी ( परयाय ) अकार गन्धे कोषटेर) पन्धे कोबटेर प्र सिद्ध बाक्य है वटेर एक पक्षी का नाम है जो पति चंचल होता हैजो सुलाखे पुरुष के हाथ नहीं आता तो अधे के हाथ मानो प्रति कठिन है. ऐसेही मनुष्य शरीर कापानां कठिन है (शेत) सुपेद (पवैया )मा नेवाला (म) यह ( रेस्याने ) अरेबुद्धिमान (पी) पब तक सेरनाथ टीका .. - बच्चेपन में बातक रहा फिर घर के काम हो गये लोग लाग के प्रय यापों का देरबौधा अपना काम बिगारा लोगों में बाइ वाइ कराईपर मओ को विसार दिया और विपय वश होकर नौंवा हो गया ऐसेही बी तगई थोड़ी सी आ रहो नर देह यह अन्धेकेहाथकीवटेरो भावार्थ नरदे ह बड़ो कठिनतासे प्राप्त होती है भैया अब सुपेद बाल अागये कालमा ने वाला है यहबात हम जान गये किरेवुद्धिमान तेरे अझौं भी पन्धेरी अर्थात् कुछनहीं बिचारता . . . अत्तगयंद ई बाल पने नसँभाल सक्यो कछु, जानत नाहिष्टि ताहित हो को। योबन बैस बसौ बनिता उर, को-नित राग रहो लछमी को। यो पम दोयवि गोय दिये गर; डारत क्यों नरके निज नी को। आयहि शेत अकों सड़ चेत; गई सु गई अबरा Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুখৰঙীলমনগ্ধ ख रही को। २६॥ शब्दार्थ टोका (हित) प्यार भलाई (पहित ) वैर बुराई (योबन ) जवानों (वस) उमर (बनता) Rो (उर) दा (राग) मोह (नमो ) चमी ( पम ) समय (विगोदिये ) खोदिये .. . सरलार्थ टीका पालक प्रास्वामें तो कल संभाल नहीं सका और भलार पुराई को भी नहीं जाना जवानी समय में स्त्री हृदय में बसी या सदा द्रव्य का मोह रहा इस प्रकार दो पन एक बाल पन दुसरा योवन पन खोय करनिन सो को क्यों नरक मैं डाले है सुपेद बाल पागये अव भोमूर्खचेती गई सोगई अब रहो कोसभात घनाक्षरी छन्द सार मन्देह सब, कारन को बोग येह,यही तो . बिख्यात बात, बेदन मैं बचे है। ता मैं तरुणा ई धर्म, सेवन को समै भाई, सेये तूनै बिषे जै से, माखो मधुर में है। मोह मद भोरा धन' रामात जोरा अब योहि दिन खोयखाय, को ही जिम मचे है। अरे सुन बोरे अब, पामे सौ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरनयतक सधोरेअमों'सावधान होरेनर, नरकसों बचे है ॥ ३०॥ . शब्दार्थ टीका सार) गूदा (विख्यात ) प्रत्यक्ष ( तरुणाई ) जवानी (मधु ) सह त ( रसै है ) मनलगावेहे (मद ) फूल का रस [ भौरा ) अलि (रा मा) स्त्री ( कोदो) एकतरह का धान जिसके खानेसे कुछनशा होजा ता है (मचे हे ) माचे है ( वौर) बावले ( सावधाम ) एकचित्त हो शियार सरलार्थ टोका नर देह जगत में सार है किस कारण के सारे उत्तम काम इसनरदेहमें बनते हैं यह बात प्रत्यक्ष वेदों में वांचो आती है इस मांह जवानों की अवस्था धरम सेवन को समय है औरतेने इस अवस्था में विषय से ये ज मे मांखी सहत में राच रही है मोह रूपमद का भोंरा हुवा और स्रो हित धन जोड़ा इस प्रकार दिनों को खोय कर कोदों धान के समान माचे है रे बावले सुन अब सिर पर सुपेद बाल भागये अर्थात् का तका काल श्रागया अब सावधान हो हेनर नरकसों बचे है •**• मत्तगयन्द छन्द बायलगी किवलायलगीमद, मत्तभयो नर भूतलग्यो हो । वृद्देभयेनभनेभगवान 'वि' विषयात अन्धौतनको हो । Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ भूधर जैनशतक सौभयो बुगलासमशेवर होउर अन्तर श्याम, अभों ही मानुषभो मुक्ताफल,हारग' वारतमाहित तोरतयों ही ॥ ३१॥ . A, शब्दार्थ टीका : [वायः) धायु हवा (मदं ) मदरा ( मत ) मस्त (बंधात ) धाप ता (श्याम) काली ( मी ) अव छान्स ( मुक्ताफल ) मोती ( गंवार मूर्ख (तगा) तामा " ܡ ܀ ال सरलार्थ टोका हवा लगो या कोई बलाय लगी अर्थात् चिमट गई बा मदिरा पा म कर के मस्त हो गया याभूत चिमटगया जीतू ने बूढा होकर भी भ गवान नभजे और विषय भोग ता दुवा धोपता नहीं है सीस तैरायुग ले की समान सफेद हो गया परन्तु हृदय में कालश अब तक बाकी रही मानुष जन्म मोतियोका हार है है गबार तागे के वास्ते भावार्थ इन्द्रियों के मुख के लिये तूत्रधा इसमोतियो के हारको तोड़ता है f " ; संसारी जीव चितवन कथन मत्त गयन्द छंद. चाहत है धन होय, किसी बिव' तो सब काज सरेः Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक ३८ गहना कछु' व्याह सुतासुत य राजी । गेह चुनाव का वांटि भाजी । चिन्तत यो दिनजात चले यम, आय अ चानक देत धका जो । खेलत खेल खिलार गए रह जा य रूपी शत र किवोजी ॥ ३२ ॥ शव्दार्थ टोका (सरें ) पूरे हों (जियराजी ) जीवके (गेह ) घर ( सुता ) वेटी [सुत] पेटा ( चिन्तत ) सोचते हुवे ( यम ] यमराज ( खिलार ) खेलने वाले (रुपी ) ठहरी रही कायम रही ( बाज़ो खेल सरलार्थ टीका संसारी जीव ऐसा चितवनकरते हैं कि किसी बिव धन होय जो लोवके सारे काम पूरे हों जैसे घर चुनावों कुछ गहना बनावों बेटे और बेटो के विवाह को भाइयों में भाजी बांटों ऐसा सोचते दिन चले जाते हैं यम ब्रराज अचानक आनकर धक्कादेता है भावार्थ मोत श्राजातो हे खेल खेल तेहुवे ख्रिलारो उठ गये परन्तु शतर जको बाजी बदस्तूर कायम रहीमा घार्य समारी लोग चल ते हुवे परन्तु संसार के काम उसीप्रकार बने रहे 013010 मत्तगयन्द छन्द तेज तुरङ्ग सुरङ्ग मिले रय' मन्त मत उतन खरे ही । दासखवास अवास अटाधनं, जो करोरन कोशभरेही । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक समये तु कहाभयु हेनर, छोड चले जव भन्त छरही। धामखररहि काम पररहि'दामगरेरहि ठामधीहो॥३॥ शब्दार्थ टोका (तेज) चालाक (तुरंग ) घोड़ा ( दुरंग) भला रंगीन (मत्त )नस (मतंग) हाथी (उतंग] उंचा (दास ) से वग गुलाम (खवास) खासनौकर (प्रवास ] मकान [ अटा) अटारी ( कोश ) खजाना (छरे) अकेले ( धाम) मकान ( गरे) गढे (ठाम) स्थान सरलार्थ टोका निजघोड़े भले रग के रघरचे मस्त हाथो खड़े हैं दास अर्थात् वांदे खवा स अर्थात् खास नौकर मकान घटारी धन जोड़कर करोरों खजाने म र हेनर यद्यपि ऐसे भयेतो क्याहुवाजब अन्तकाल में सबको छोड़कर अकेले चल दिये मकानखरैरदिकाम सारे परेरहि दामइसो स्थानधरेर हिवा गडेरहि अभिमान निषेध वरान घनाक्षरी छन्द . . कञ्चन भण्डार भरे, मोतिन के पुञ्जपरे, धने Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधर मशतक ४१ लोग हार खरे, मारग निहारते । यान नढे डो लते हि; भीने खर बोलतेहि, काडको तो ओ रमेक नीके न चितारते । कौलों धन खांगे तेल, कहे तो न जांगे तेड, फिरें पाय नांगे कां " गे, पर पग भारते । एते पै अयानागर; भानार हा विभोपाय, धृग है समझ तेड, धना संभा रते ॥ ३४ ॥ शव्दार्थ टीका ( कंचन ) सोना (भंडार) कुठियार (पुंज) समूह ढेर ( द्वार) द रवाजा ( मारग ) रस्ता ( निहारते ] देखते ( यान ) सवारी [ भी मे) इतके मुलायम (नेक) तिनकभी ( नीके) भलेप्रकार ( चिता ते ] चितवनकरते ( कोलों ) कबतक [ तेच ) तेपुरुष (पायनांगे ) नांगे पाव [ कांगे ) कमले ( एतेपै ] इतने पर ( अयाना ] भोला अनजान ( गरभागा ) मानवाला ( विभो । संपत्ति सरलार्थ टोका Woh कुठियार भरे और मोतियों के ढेर पर बहुतसे मनुध दारे खरे र 'स्ता देखते सचारो पर चढे हुवे फिरते धीमे बोल बोलते किसीकी घोर farait raप्रकार न चितवन करते कब तक धनवांगे धन निवर ना गा फिर ऐसी गति होगी कि कोईनामभो उनका नलेगा और परायेपै दाड़ते फिरेंगे इतने पर अज्ञान संपत्ति पाकर मान वालारहा तिन Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ } ४२ भूधरजैमशतका मनुष्योंकी समपर धिकार है कि धन को नहीं समाते हैं ' Ge घनाक्षरी छंद " देखो भर योवन में, पुत्रको वियोग भयो, तैसे हि निहारी निज, नारी काल मग मैं । जेजे पु न्यवान जीव, दौखते थे यानही पै, रंङ्कभये फि हैं तेड, पनहि न पग मैं । एतेपै भाग धन, जौतवसों धरे राग, होय न वैराग जाने, रह 1 गो अलग मैं । आंखन सों देख अन्ध, सूसे को 1 अन्धेरौ धरै; ऐसे राज रोग को इ, बाज कहा जग मैं ॥ ३५ ॥ शब्दार्थ टोका ( भरयोवन ) ऐन जवानों ( बियोग ) सरना ( निहारी ) देखो ( ग) मारग (यान ) सवारो ( बंक ) मोहताज ( पनही ] जूतो [ अ -भाग ) बेनसीव ( सुसेकी अवेरोधर ) सूखे की अधेरों धरना यह प्रसिद सुसा, एक पशु का नाम है जोजत में रहता है उसका यह सुभावहै - कि जब अहेरी को अपने निकट आता हुवा देखता है मारे डरले अप नीषास मौच से ता है 'सरलाई टीका Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '४३ भूधरजनशतका देखी जैन जवानी में वेटामर गया तैसे ही अपनी स्त्री मौत मारग मैं देखो जो जो पुएय वान सवारी पर चढे दिखाई दे ते थे मोहताजा वे फिरेंहैं पैर में जूतो नहीं इतनी हो तुच्छ बात पर जीव धन और जीतवसे मोह करे' है बैराग नहीं होता और यह जानता है कि मैं पा प से अलग रहुंगा अपनी आंखों से यह अवस्था देख कर मूर्ख सूबे के सो अधेरी धरता है भावार्थ जान पूछ कर अन्धा वने है ऐसे बड़े रोग का जग में क्या इलाज है दोहा छन्द जैन बचन अञ्जन बटो, आज छु गुरू परबीन । रागतिमरतबहुनमिटै, बडोरोगलखलौन ॥ ३६ ॥ शब्दार्थटीका (वटी ) गोली ( परवीन ] चतुर ( तिमर ) अन्धेरा ( तवान ) तभी . सरलार्थ टीका जैन बचन अजन को गोली हैं जिस्को गुरू चतर भांज ते हैं तिस पर भी राग रुप तिमर दूर नहीं होतो वड़ो भारी रोग जानी मारास निज-व्यवहार नाथन Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুখৰজলমন घनाक्षरी छंद जोई दिन कटै सोई, आयु मैं अवश्य धटै, बूंद बूंद बीते जैसे, अञ्जलि को जल है। देह नित झोन होय, नेत्र वेज हौन होय, योबन मलौन होय, छीन होय बल है। आवै जरा नेरी ताके, भन्तक अहरौ पाय,परमोनजीक जाय,नरभोनि फल है। मिली मिलापौजन, पूछत कुशल मे रो,ऐसौहोदशा मैं मित्र; काहेकौकुशक्षहै।३७॥ शब्दार्थ टीका [हिन) पर (अवश्य ) निश्चय (झोन) दुवली (छीन ) कमती (ने री) नीक (अंतक ) मोत (अहेरो) शिकारी (कृयत) भलाई रियत - सरक्षार्थ टोका जो पन कठै है सो उमर में निश्चय घटे है वृन्द २ को तुल्य बदोत होय है जैसे अंजली को नल शरीर नित दुबला होय है आंखों का तेज हो महोय है योवन मैला होय है और बल कमती होय रे भब बुढ़ापा' मनोक पावेहै कासका शिकारी तेरे पर ताक लगा वे है परभव नमो कहोय है नर भव निषस नायब मिल ने वाले जीव मिलकर चैरियत Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ४५ पूर है सी हे मित्र ऐसी अवस्था में बोजपरवरणम करी काईकी चेरि मराह PRO बृद्ध दशा कथन मत्तगयंद छंद दृष्टि घटी पलटी तन की छवि, वसभई गतिल छनई है। रूस रहो परनौ धरनौअति रकभयो परयस लई है। कम्पत नार बहै मुख लार, म हामति सङ्गत छाड गई है। अङ्ग उपङ्ग पुरान भये तिश, ना उर और नबीन भई ॥३८॥ शब्दार्थ टीका (दृष्टि) नजर (वि) रूप (बङ्ग) बांकी (गति) पाल (E) कमर (नई) बाँको टेडो ( परनौं) व्याहीहुई (घरनी )त्री (पति ) बहुत (र) मोहताज ( परयच )! मेल खाट (भार) गरदन (नार ) रात ( महामत ) उत्तम बुधि ( संगत ) साथ (अंग) रके बड़े टुकड़े जेसे हाथ पैर (उपङ्ग ) भरीर के छोटे टुको वेष गुबी नच पादि (तिमना ) नष्णा चाहत (घर) दा ( मबीन )नई Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ egertrana सरलार्थ टोका नजर घटगई शरीर की छवि अर्थात् रोनक जाती रही चाल बांकीही गई कमर टेढी होगई घरको ब्याही स्त्रोरुसरहो हर तरह से मोहता होकर खाट ले लई नाड़ कांपने लगो, सुख से राल टपकने लगी तम बुद्धि ने साथ छोड़ दिया जितने शरीर के अंग उपांग थे सो वारेषु रा मे होगये परन्तु नष्णा और नवीन पैदा होगई ४६ ; - घनाक्षरी हन्द 1 रूपको न खोन रह्यो, तरुज्यों तुषार दह्यो' भ यो पतकर विधों, रहोडार सूनौ सौ । कृदरोभ ई है कटि; दूबरी भई है देह; उबर इतेक आ यु, सेर मांह मूनौसी । योवन नै बिदा लोनी, जरा नैं जुहार कोनी, हौन सई शुद्ध बुद्ध, सबौ बात ऊनौ सौ | तेज घट्यो तावघटयो, जीतब स चाब घटयो' और सब घटे एक तिला दिनदू नोसी ॥ ३६ ॥ . शब्दार्थ टीका (खोज] निशान (तरु) वृक्ष (सुधार) पाला (दो) मलाया (चार) डालो शाखा (खूनी ] खाली ( कूबरी ) कुबड़ी ( कदि ] I Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक कमर [टूबरी] दुवजो कम ( उबरो) बांको [क) इतनीव । पूनो) रुईकी बनती है सूत कातने की (बिदा ) रुखसत ( नरा] बुढ़ापा [ जुहार ) राम राम सलाम (उन्नीसी) उन्नीस कमती (दिन दूनोसो) दिनादन अधिक सरलाई टीका कप का न खोज रहो शरीर ऐसा होगया जैसा पाले माराहक्ष पतझर होकर सूना हो जावे कमर कुबड़ी होगई देह दुबलो हो गई इतनी बाकी रहगई जितनी सेर माह पूनी जवानों ने विदा लीनी बुडापे ने राम राम आकरो शुद्ध बुद्धो जातो रही सबी बात उन्नोसहोगई अ . र्थात् घट गई तेज घट गया ताब घट गया जीवन का चाव घट गया इसोप्रकार और सवबात घटी परन्तु त्रष्णा दिन दुगनो होगई घनाक्षरी छन्द अहो इन छापने अ; भाग उटै नांह जानी, बी तराग बानो सार, दयारस भीनी है। योबनके जोर थिर; मगम अनेक जौब, जानजे सताये' कहीं करुणा न कोनी है। तेई अब जीव रास आये पर लोक पास लेंगे बैर देंगे दुख, भईना नबौनी है। उनही के भयकाभ, रोसा जानकां पतयाहौउरडोकराने लाठीहायलौंनी है।४.॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरलैनशतक . शब्दार्थ टोका (भोनो) भरोहुई मिलो हुई ( थिर) स्थावर जीव पचर ( अगम ] चलनेवाले जोव चर (रास) समूह (भईना) ईना! नवोनी) न । घात (डोकरा) व ढा - सरलार्थ टोका इस मनुषने अपने प्रभाग के उदय दे यह नहीं जामो कि जिन बानी मार दया रस भरोहुई है योवन के जोर मैं चरा चर जीव जान कर म ताये दया करी नहीं सो जीव राम परशोक पास पाने पर तेरेसेवरले । गे और दुःख देगे यह यात नवीन नहीं है सदोव से चनो पाती है ससाया हुवा समय पाकर बदला लेता है उन सताये हुवे जीवों के भय का भरोसा जान कर भांपता है डरता है इस कारण बने लाठीहा घलई है प्रायः बूढ़े पुरुषलाठीहाथ में से ते है घनाक्षरी छन्द जाको इन्द्र चाहे अह' मिन्द्र से उमा है नासों नौव मोक्ष माहे जाय मोमल वहा है। ऐसो नर जन्म पाय' विजै बश शोयखाय' जैसे कांच साटै सूट' मानक गमावै है । सायानदि बूडी जा' कायावल तेज छौजा' यापन तौजा अब Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . भूधरजेनशतक .कहाबनावै है । तातै निज सौस ढोलें, नीचे नेन कीये डोले' कहाबड वोलें बध; बदन दुरा शब्दार्थ टोका [ इन्द्र) देवतावोंकाराना ( अहमिन्द्र ) में राजा नवदिश और पांच चोखरों के देवता अहमिन्द्र कहाते हैं यहांबड़ाई छुटाई नहीं हैं सबस मान हैं ( माहैं ) उमंग करे ( भो ] संसार ( मल ) मैल ( सांट ) बदले (मोणक ) चुन्नो मणि विशेष [ गमाव) खोवे [माया) मोह ( वूड़) डूब [ कहा ) क्या ( ताते ) तिस कारण (ढोले ) नौंचा करे (दुरावे है ) छुड़ावे है सरलार्थ टौका जिस नर जन्मको इन्द्र चाहैंऔरत्रहमिन्द्रवे जाकी उमंग करहै औरजि ससेज वमोक्ष मांह आकर ससार रूप मैल को बहाता है ऐसे नर न नमको विषय वश होकर खोय खाय दिया जैसे कांच के बदले मैं चुनी मणिको देता है भावार्थ नरजन्मको नो मसि के तुल्य है विषय बास नामैं जो काँच तुल्य है बदल कर खोवेहै मोह रूप नदा मैं डूव भी जा और कायाकाबल बा तेन घटगया तीसरा ससय बुढ़ा पेका पाग या अधक्या बनाव तिस बुडापेसे निज सीसझुके है और अखि नी ची करहै और क्यावड़ा बोल बोल सकते हैं बुढ़ापाशरीर को छिपा वे हैं ...-. ... Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুষলামন मत्त गयन्द छंद देखर जोर जरा भटको यम' राज महीपतिक अ गवानौ । उज्जल कोश निशान धरे बहु रोगनको सँग फौज पलानी । काय पुरौ तन भोग चलोजि स' आवत योवन भूप गुमानौ । लूट लई नगरी सगरी दिन; दोयमखोयहिनाम निशानी ॥ ४२ ॥. शब्दार्थ टीका ( देखा ] देखो (भट ) शूर वीर (महीपति ) राजा ( अगवानी) आगे चलने वाला (उज्जलकेश) सुपेद वाल (निशान ) भंडा(पन्ना नी) पेलदई ( काय) शरीर (पुरी) नगरी ( भूप) राजा (गुमा नी) मान वाला सरलार्थ टीका बुढापेके शूर बीर यम राजाकअगबानो केवल को देखो सुपेद यौली के. भडे लेकर बहुत मेरोगों की फौज अपने साथ में पेल दई योवनरू प राजा जी अभिमांनौं था तिस्त आने पर काय पुरो नगरी छोड़ कर भाग चला सारो नगरों दिन दोय में लूट कर नाम निशानी खोद ई भावार्थ शरीर जाता रहा दोहाछन्द . Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक ५१ सुमति छोर योवन समें' सेवत विषै विकार । खल साँटे नहिँ खोडूये' जन्म जवाहर सार ॥ ४३ ॥ शब्दार्थ टोका [ सुमति ) उतम बुद्धि ( विषय ) इन्द्रियों के सुख ( बिकार ) खोट (ख ल ] ग्वलो अर्थात् तिल वा सरसोंका फोक जो तेल निकालने के पीछे रह जाता है ( सांटे) बदले (सार) गूटा अर्थात् खली वा फोकका बिरुद्ध शब्द है सरलार्थ टोका योवन समय मैं सुमति को छोड़ कर विषय बिकार की सेवा मत कर खलिके बदले में जन्म रूपसार जवाहर अर्थात् मणिको मत खोवे कर्तव्य शिक्षा कथन घनाक्षरी छन्द देव गुरु साचे मान' साचो धर्म हिये आन' सा चोहि बखान सुन' साचे पन्थ आव रे । जीवन कौ दया पाल, झूट तज चोरौ टाल; देख न बिरानो बाल' तिना घटाव रे । अपनी बडा Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ भूधर जैनशतक ई पर' निन्दा मत करे भाई, यही चतुराई म द मास को बचाव रे । साध घट कर्म साधु, सङ्घत मैं बैठ जौव' जो है धर्म साधन को, तेरे चित चावरे ॥ ४४ ॥ शब्दार्थ टोका (हिये) हृदा ( बखान ) बचन ( पन्थ ) रस्ता (बाल) स्त्री (नि न्दा ) पीठ पीछे बुराई करनो ( सद) मद्रा (घटक ) छः कम्जो जैनो को कर ने योग्य है सिकाय अर्थात् सामा यक विशेष १तपर जि न देव की पूंजा ३ संयम अर्थात् ब्रत नेम कर इन्द्रियों का रोकना ४ गुरु भक्ति ५ दान ६ ( चाव ) उमंग सरलार्थ टोका देव और गुरू जो सो चेहैं तिनको मान और जो सोचा धम्मं है तिरको ' हृदय में धारण कर और साचोही वचन सुन और सच्चेही रस्तेनाव जीवों की दया पाल झूठ को तज चोरो को टाल परस्त्री को देखमत तृष्णा को घटा अपनी बड़ाई पराई बुराई मतकर यही चतुराई है कि मद मांस का बचाव कर और पूर्वोक्ता षट कम्मं जोज नी को करनेयो यहैं उनका साधन कर और जो धर्म साधन का तेरे चित में घाव है तो साधुसंगत ठ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृधरौनशतक .५३ घनाक्षरी छन्द साचो देब सोई ना मैं, दोश को न लेश कोई, बाहि गुरु साचे उर, काउ को न चाहहै । स हो धर्म वही जहाँ, करुणा प्रधान कहो, ग्रन्यते ई आदि अन्त, एकसी निवाह है। यही जग र न चार, दूनही को परख यार, साचे लेउ झूठ डार, नरमी का लाहा है। मनुष बिवेक बिना पशु की,समोन गिना, तातै यही ठीक बात, पारनी सलाह है ॥ ४५ ॥ शब्दार्थ टोका (लेश ) लगाव ( करणा) दया (प्रधान ) बड़ा (अन्य ) शास्त्र ( रत्नचार ) देव १ गुरु २ धध ३ शास्त्र ४ (लाहा ) लाभ (विवेक) बिचार [ सलाह ] भलाई सम्मति मशवरा सरलार्थ टीका वही देव साचे हैं जिन में कोई प्रकार के दोष का बगावनहीं है और गुरू वही सांचेहैंजिन के मन मैं किसीका मोह नहीं है और धम्म वही शुद्ध है जिस में दया प्रधान मानी है और शास्त्र वही ठीक है जहांपा दिसे ले कर अंत तक एक सानिवाह है कहीं विरोधीवधननहीं संसा बमैं यही चार रत्न हैं हेमिन इन हो की परिक्षा सञ्चा ग्रहण करमा Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ঘৰলীলঙ্গ ठे को छोड़ नरभो का यही लाभ है मनुष विचार विना यश को तुल्य माना गया है इस लिये यह बात ठीक पारनी अर्थात् भने प्रकारमा त करनी योग्य है देव लक्षण मत बिरोध निराकरण छष्प छन्द जो जग वस्तु समस्त, हस्त तल जम निहारें । जग जन को संसार, सिन्बु के पोर उतारें । आदि अन्त अविरोधि, बचन सबको सुखदानी । गुणअनन्त जिस महि, रोगको नहीं निशानौ । माधो महेश ब्रह्मा किधी, बर्धमान के बोरया । येचिहननाननाके चरण,नमोनमोमुभादेववहा४६। शब्दार्थ टीका वस्तु) पदार्थ (समस्त ) सर्व ( हस्त तल ) इथे लो (अम ) जि म बसे (निहारें) देखें (सिन्धु) समुद्र ( अविरोध ,बिरोधरहितमा धो ) विष्णु (महेश) शिव (थई मान ) महायोर (बौड ] बौहब तार ( नसो) नसतार सरलार्थ टौका Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक सरलार्थ टीका जस्को बारे पदार्थ ममार के हथ लो मेरी दिखाई देते है और अंसारी जीवों को संसार समुद्र के पार उतारते हैं जिनके अविरोधी बचन आदि अन्त मत्रको सुख दाता है और जिस मांह अनन्त गुण है काऊप्रकार के दोष का चिह्न नहीं है ब्रह्मा विष्णु महेश महावीर वा बौद्ध कोई होय जिसमें लक्षण हों उस के चरणों को नमस्कार वारूह वह देवहे . 6 €० यच्च विषै जीव होम निषेध ५५ घनाक्षरी कन्द कहें पशु दोन सुन, यज्ञ के करैया मोहे, होम तान में, कौनसी बडाई है । वर्गसुख में · न च, देउ मु य न कह, घास खायरह मेरे, यही मन भाई है । जो तू यही जानत है बंद यों बखानत है, यज्ञ नलो जौव पाबै, खर्ग मुखदाई है । डारें क्यों न वौर जामैं, अपने कु टम्वही को, मोहे क्यों जारे, जगत, ईश कौ टु हाई है ॥ ४७ ॥ 4 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक शब्दार्थ टीका (दोन) गरीब ( यज्ञ ) जोमन ( होमत ) आग मैं डालना ( कुटम्ब ( कुगवा ( जगतईश) परमेश्वर (दुहाई ) फरियाद सरलार्थ टौका गरीब पशु ऐसा कहते हैं कि हे यज्ञ के करता सुन मुझे अगनीमें डाल ने में कौनसोबडाई है स्वर्ग का सुख में नहीं चाहता कुछ मुझे दो ऐ भानहीं कहता घास खा कर रहताही यही मेरे मनमें आई है, जो तू ऐसा जानता है के वेद ऐसा कहै है कि यज्ञ जला जोव वर्गसुख ढा ता पाता है तौ है भाई जिस मैं अपने कुटम्ब ही को क्यों नहीं डान ता मुझे क्यों जलो वेहै दुहाई परमेश्वर की सातोबारगर्भितषटकर्मउपदेश ---- - छप्पै छन्द अध अन्धेर आदित्य, नित्य सिन्भाय करोजे । सोमायम संसार ताप, हर तप कर लो जै। जिन बर पूजा नेम, करो नित मङ्गल दायन । बुध संयम आदिरो' धरो चित श्रीगुरु पायन । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक ५७ निजबितसमानअभिमानबिन,सुकरमुपचहिदानकर। योसनिसुधर्मषटकर्मभण, नरभोलाहालेउ नर ॥४८॥ शब्दार्थ टोका (श्रादित्य )१सूर्य (नित ) सदीव (सिम्झाय ) सामायक विशेष ( सोमाय )२सोमंअयं अर्थात् येशीतल (ताप ) गरमो (हर ) हरने वाला (बर) ऋोष्ट ( मङ्गल )३आनन्द (दायन ) देनेवाला (बुद्ध)४ पति (संयम ) इन्द्रियों का रोकना ( आदरों ) आदर सनमान से ( गुरु ] ५शिक्षक (वित ) धन ( सुक)६ करने योग ( सुपच ) पचने योग ( सनि ) सुनले (षटकम) छ कम्म जो ऊपर कहे और श्रावक को कर ने योग्य है ( भण) कहे सातौ बार के नाम जन पर अङ्ग कर दिये हैं जान लेना सरलार्थ टीका पापरूप अन्धेरे के दूर करने को सूर्य के तुल्य की सिल्झाय मामा यक है सो नित करये और ससार रूप गरमों के दूर करने वाला जो शीत ल तर है सीकरये और जिन बर पूजा करने का नित्य नेम करो कसी है जिन वर पूजा मङ्गल की दाता है और भीवुद्ध आदर सनमान से सं यम धारणकरो और श्रीगुरु के चरणों मैं चितधरो और अपने धन समा न मान छोड़ कर कर ने बा पच ने योग्य जो दान है सो दो इसप्रकार मोसुधम्म छः कम कहे ते सन और नर भोलाभ ग्रहण कर Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुधर जनशतक दोहा कन्द येहो कह विधि कर्म भन, सात बिसन तज वर । इस हौ पैंडे पहुँ चिये, क्रमक्रम भवजन्ततीर ॥ ४६ ॥ शव्दार्थ टीका ५८ ( भज ) स्मरण कर ( विसन) पाप । बीर ] भाई ( पेंडे ) ते ( म क्रम) सहन [ तीर] किनारे सरलार्थ टोका ये छ: को को ऊपर कहे स्मरण कर और सात विसन अर्थात् पापो नोचे कड़े जाते हैं हेभाई छोड इम रसे सहज सहज ससार रूप जल के किनारे पर पहुच जायगा भावार्थ संमार रूप समुद्र को पार कर देगा अर्थात मोच गाम होगा न सतव्यसनाथन जूबाखेलन१ मांसर मदर, नेया बिसन शिकार५ । चोरौ६ पर रमणी रमण, सातों पाप निवार ॥ ५० ॥ शब्दार्थ टोका [म] मदिरा (बेश्या) देसमा रएडोक्सो ( परमयों) पर (रमण ) Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजे नशतक भोगकरना (निबार ) छोड़ ५.६ सरलार्थ टीका जूवाखेलना मांस खाना सदरा पोनो बेसबा रखनीं शिकार खेलनाची री करनां परस्त्रो से भोग करनां ये सातों बिसन छोड़ जूत्रानिषेध कथन कूप् छन्द सकल पाप संकेत, आपदा हेत कुलच्छण । कलहखेत दारिद्र' देत दौखत निज अच्छण | गुण समेत यशशेत, केत रवि रोक जैसे | श्रगुण निकर निकेत, लखलेत- दुधजन ऐमे । जूवासमान इसलोक मैं, और अन तनपेखिये । इसबिसनरायकेखेलको;कौतकहूं नहिँ देखिये ५१ शम्दार्थ टोका ( कल ) सब ( सकेत ) सैन इशारा अवधि ( आपदा ) विपत (कुलच्छन ) खोटे लक्षा ( कलह ) झगड़ा ( खेत । चिज गर ( दारिद्र ] कगला पन ( अच्छण ] ऋक्षण - आंख समेत सहित ' Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक [यग ) जस (शेत ) उज्वल ( केत) नवग्रह ( निकर ) समूह-बहुत (निकेत ) घर (बुधजन ) पण्डित ( लोक ) संसार ( अनीति ) अं. न्याय ( पेषये ] देखिये ( विसनराय ] पापोंका राजा ( कौतक) त मांशा सरलार्थ टीका सारे पापों को अवधौ विपत का कारण झगड़े कास्थान कंगले पनका देने वाला येसारी बात अपनी आँखों से दिखाई देती हैं जैसे केतु सूर्य को गुण और उज्जल यश समेत रोके है ऐसे इस जूवे को अवगुणों के स मूह का घर पण्डित लोग देखें हैं जूवे के तुल्य इस लोक में और कोई अन्याय न देखिये इस पापों के राजा के खेल का तमाशा भी देखना उचित नहीं है मांस निषेध कथन छप्प छन्द जङ्गम जी को नास, होय तब मांस कहावै । सपरश आक्रत नाम, गन्ध उर घिन उपजावै । नरक योग निरदई; खांह नर नोच अधरमौ । नामलेत तजदेत' अशन उत्तम कुल करमी । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक यहअशुबमूलसबबुरो'कमकुलरासनिवासनिता आमिषअभक्षइसकेसदा'वरजोदोषदयालचित५२ शब्दार्थ टीका (सपरश) छूना ( प्राकत ) रूप आकार ( गन्ध ) दुर्गन्ध ( उर] @ दा (धिन ) नफरत (पशन ) भोजन (अशुचमूल ) अशुद्धताकीजड़ (रूम) कोड़ा ( रास) समूह (निवास) स्थान (आमिष) मास (प्रभच ] नहीं खाने योग सरलार्थ टीका पर जीवों का नास होय जब मास कहाता है इस काछना और रूपी र नाम हद में गिन्तानी पैदा करता है नरक के योग निरदई नोच अ धम्मी लोग इमे खाते है और उत्तम कुल सुकम्मौं पुरुष जिस का नाम सुनकर भोजन खाना छोड़ देते हैं यह अभदता की जड़ सारो बस्तुवों से बुरी कोड़ों के कुल के समूह का घर सो मांस अभक्षहे हेदयालु चित इस के दोष सदीय बरजो रोको मदिरा निषेधकथन ------ मिला छन्द कमरासकुबाससरापद है; शुचितासब कूवत जात सही। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Precapm খভালমন্দ जिसशनकिये मुधिजायहिये; जननौजनजानतनारयही । मदाममऔर निषेधकहा; यहजान भले कुलमैं न गही। धिकहैडनकोबहजोदजलो जिनमृठनके मतलीनकहो।५३। शब्दार्थ टोका (सरापद ) सिरसे पैरतक ( शुचिता पवित्रता (पान) प.ना (म ननी ] माता [जन ) मनुष [नार) स्त्रो ( निबंध ) खोटा [गही) ग्रहण करो ( लौन) भलो . सरलार्थ टोका मदरा सिरसे पैर तक कीड़ोंकी रास और दुर्गन्ध हैं जिसके पीनेमेहदे की शुद्धिता जाती रहती है और मदरा पीने वाला पुरुष मत्त होकर माता को अपनी स्त्री जान लेता है सदरा वीतल्य और बायोटो बस्तु है ऐसा जान कर मदरा भले कुलमें ग्रहण नहीं करो उनदुरुषों कोधि कार है और वह नोव जलो जिन मूरों के मन में सोन मानो है। . बेश्यानिषेध कथन दुमिला छन्द धनकारणपापनिनौतकरै; नहि तोरत नेह यथातिनको । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक लवचाखतनोचनकमुहको; शुचितासबजायछये जिनको। सदमांसबजारनिखांयप्तदा; अन्धलेविसनोनकरधिनको । गणिकासंगजेसठलौनभये;धिक हैधिक हैधिक हैतिनको५४ शब्दार्थ टोका [पापनि ] कसबी-रण्डी ( यथा ) नैसा (तिन ) तिनका ( बजारनि ) वाजारो-रण्डी कोठेकी बैठने वानी ( अधले ) अन्धे ( बिमनो) पापो ( गणिका ) कसबो ( लीन ) अामना । सरलार्थ टौका धन के कारण रगड़ी प्रीति करतो है नहीं तो प्रोति को ऐसा तोड़ डा नती है जैसे ढग को तोड़त हैं और नीच पुरुषों के प्रोष्टों को चाखती है जिस कमवी के छने से मारो पवित्रता जाती रहतो है मटिरा मांस वजारनी नित्य खातो हैं फिरभा अन्धे पापो घिन नहीं करते गणिका सङ्ग मूर्ख आसक्त होगये उन को बार बार धिक्कार है। आखेटनिषेध कयन ঘনাদাৰী স্কুল कानन मैं बसै ऐसी, आनन गरीबजौव, प्राननसों Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ . भूधरजेनशतक प्यार प्राल, पूनो जित पास है । कायर अभावध रै, कासों दौन होह कारे, सहो सौं डरै दांत, लिये तिन रहेहै । बाउ सो न रोष पुनि, काउ म पोष चाहै, काउक परोष पर, दोष नाघरे है। नेक खाद सारवे को, ऐलो गोमारवेको, हाहां रे कठोर तेरो, कैसे कर बोहै ।। ५५ ॥ शब्दार्थ टोका ( कानन ) वन ( आनन) और न कोई (पान ) जीव ( पंजी) ना . सरमाया ( कायर ) डरपोक (द्रोह) वैर (दांत मैं तिन लेना) प्रति दौनता करनो आर्यखण्ड में रीति है कि अति दीनता समय हण दांत में लेते हैं (रोष ) रन गुस्सा ( पुनि ) फिर (पोप ) पालन (परोप) एव-कुवचन [ दोष ] अपराध (नेस) थोड़े (खाद ) मजे-जायचे (सर • रवैको) पूराधारने को [ मगी ] हिरनी (बहै ) चले । सरलार्थ टीका बन मैं बस्ती है और कोई ऐसा गरीब जीव नहीं है केवर अपने प्रां गौ से न्यार है और प्राणको बी जी जिस को पास है और कुछ पाय नहीं कर पोक सुभाव धरे है यिसी से गरीब रेप नहीं करती सवही से डर तीहै दांत मैं प लिये हुवे है बिचौर रजनहीं और किसी ने भयना पालन नहीं चाहती किसी के सोटे बचग पर दोष नहीं धरती घोड़े के बाद के वास्ते सोमगि ( मिली अवखा अपर कह पाये है भार प्ररथ हाहार कठोर तेरो से साथ रहते हैं Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक चोरीनिषेधकथन হু হু चिन्तातो न चोर, रहत चौंकायल सारै । पौड़ें धनी बिलोक, लोक नि मिल मारै । प्रजा पालकर कोप; तोप पर रोप उठावै । मरै महादुख देख, अन्त गौचौ गति पावै । बहुविषतमूलचोरीविसन,अघटवासायनबर। परवितमदत्तअङ्गारगिन,नौतनिपुणपरसैनकररा५६॥ शब्दार्थ टीका (चिन्ता ) शोच (चोंकायल) चुकवा झिझकना (पी.) दुखदै ( प्रजा पाल ) राजा ( कोप) कोध (रोप ) खड़ाकर (भास ) दुख ( पर बित) परायाधन (अदत्त ] विन दियाहुबा ( अंगार ) आगका पिएड (भीति निपुण ) नीति चातुर नोति माता ( परसे ) कुबे (क र] हाथ सरलार्थ टीका चोर के मन से कभी चिन्ता नहीं जाती सब जगह चोकमा राता है और धन वाले देव कर दुर दे ये हैं और निर्दई पुरुष सिख कर Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक मारे, प्रजा पालक कोधित होकर तोप पर खड़ा कर उडावे को र महा दुख देख कर मर ता है और अन्त मैं नीची गति पाता है घी री बिसनबहु आपतों को जड़ है जिस के दोष प्रगट दिखाई देते हैं प र धन चुराये हुवे धनको अङ्गार समान नीति निपुण पुरुष हाथ से न हीं छूते परस्त्रीनिषेधकथन AUR 8- 10 छप्प छन्द कुगति बहन गुण दहन, दहन दावानलमी है। मुयश चन्द्र घन घटा, देह कृशकरन छई है। धनसर सोखन धूप, धरम, दिन सांझ समानौ । विपत भुनङ्ग निकास, बाबई बेद बखानी । एहिबिधअनेकौगुणमरी, प्रानहरन फासोप्रबल । मतकरहुमित्रयहजानकर, परबनतासोप्रीतमल ५७॥ प्राब्दार्थ टीका ( कुर्गात ] खोटी गति ( बहन ) जोजो (गहन ) गहना (दहन ) अन्नाने वाली ( दब) वनको आग [ अनल ) आग (दवानल ) जो आर्गदुझाई नहीं बुझतो [ कश) दुबलो ( सर )तालाब (सोखन ) Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक सोषने वान्तो (भुजङ्ग) सरप (निवास) स्थान ( प्रवल बलवान (प रबनता) परस्त्री सरलार्थ टीका परस्त्रो कुति की बहन ओर गुणांकी हरने वाली और जलाने कोएं सी है जैसी बन को भाग सुयश रूप चन्द्र मां की देह लश करने वा स्ते घन घटा के तुल्य है धन रूप तलाव को सोखने के वास्ते धूप सम है धर्म रूपदिन के वास्ते सांझ काल को बरोबर है विपत रूप सरपको 'बांबई शास्त्र ने कही है इस प्रकार अनेक प्रकार की औगुण भरो प्राण हर ने वाली वल वान फांसी है हे मित्र ऐसा जान कर पर स्त्री से ए कपल भीत मत कर स्त्रोत्याग प्रशंसाकथन NROO LY दमिला छन्द दिव दीपक लोय बनी बनता, जड़ जीव पतङ्ग जहां परते। दुख पायत प्रान गमावत हैं; बर ने नर हैं इटसों जरते । ममान विचक्षणा अ क्षण के,बस होय अनीत नहीं करते। परती ल ख ने धरतों निरखें, धन हैं धन हैं धन हैं न '. र ते ॥ ५८ ॥ . Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুখৰজনঘন प्रदार्थ टोका दिव) प्रकाशित रोशन (बरजे ) रोके (विपक्षण ) चतुर ( अक्ष · ] आंख (अनीत) अन्याय (तो) स्त्रो (निरपे ) देखे सरलार्थ टीका परस्ती प्रकाश मान दिवले को लोय तु य है सूख जीथ जो पतन के तुत्य उभ पर पड़ते हैं और दुख पाते हैं प्राण खोते हैं हट कर के ज लवे हैं रोकने से नहीं रखते इस प्रकार चतुर मनुष्य प्रांखों के बराहो करअन्याय नहीं करते जे पुरुष पर तो अर्थात् पर स्त्रो देख कर धर ती निरखे है छन् पुरुषों को धन्ध है ३ दमिला छन्द दिठ शौख शिरोमणि कारज सै, जगमैं यश आ रख तेहि लहैं । तिन के युग लोचन बारिम हैं। इस भात भचारण भाप कहैं। पर कामनि को सुखचन्दचिरौं' मुदकाय सदा यह टेव गहै। ध न बोवन है तिन नौवन को,धनमांव उमैं उर मांझचहैं ॥५६॥ शब्दार्थ टीका [दिख) मजबूत (बोर) या धसन (पिरो मनि) उत्तम प्रधान Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूघरजेनशतक ६६ ( भारभ ) ष्ट उत्तम ( युग बोचन ] दोनों पांच [ बाfरण ] कम ल (अचरज ) प्राचार्य शास्त्र पक्का गुरू ( चितै ) देखे ( टेव ) सु भाव ( जीवन ) जीम ( जीवन ) गोंवों को ( माय ) भाता ( उ ) पेठ ( माझ ) मध्य सरलार्थ टोका बो पुरुष शौल मैं ( जो शिरोमणि कारन है ) मजबूत है ससार मैंने पुरुष उत्तम यश से ते है तिन पुर्पो को दोनों पॉष मांनों कम है सापाचा कहते हैं परसो का चन्द्र वत् मुख चितवन करने पर स दा सुन्द नांय हैं पैसा सुभाव है ऐसे जोवों का जीवन धन्य है भीरs न माता वों को धन्य है जो ऐसे पुरुषो को पेट रखने की इच्छा क कुशील निन्दाकथन ---. hotBesi. मस गयन्द छंद डी पर मार मिहोर मिला हूँ, से बिलसे दुध फोन वडेरे । कूटन को जिम पातल पेख खुशी वर कूदार होत घनेरे । जे जन की यह टेव न है तिन को इस भो अप कीरति है रे । ग ने र लोक विषे बिजली सुक' रे शतखण्ड सुखाच · Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ल के दे ॥ ६० ॥ सुधरनेन तक शव्दार्थ टीका निलज्ज ) वेशसे ( बिल रे ) आनन्द करे ( झूठन ) झूठ ( पातल ) पत्तल को पत्ते की बना ते है ( कूकर ) कुत्ता ( जे जन ) जिनमनु यों को (टेब) सुभाव होय (अप कोरतो ) अपयश ( है ) होय (शत) सौ १०० ( खएड) टुकड़े ( उखाचन ) सुख का पहाड़ . सरलार्थ टीका 4 जो पुरुष पर स्त्री को देख नलजा दें और इसे आनन्द करे सो पुरुष बड़े बुद्धिहीन है और ऐसे जाने जाते हैं जैसे झूठ को पत्तलों को देख कुत्त े अपने सनतैं आनन्दहोतेहैं जिन पुरुषों का ऐसा सहज है तिनको इस जन्म में अपयश है पर स्वो पर परलॉक में विजलो समान है सो सुखरूप पहार व सौ १०० टुकड़े करें है shsiz -- एकएक बिसन सेवनसों नष्टभये तिनके नाम ००००० O प्रथम पांडवा भूप' खेल जूना सव खोयो । मांस खाय बकराय' पाय बिपता बहु रोयो बिन जाने मदपान' योग नादगण दम | चारदा दुख सह; बेसवा बिसन अम । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक नृम ब्रह्मदत्त आखेटसों' टुज शिवभूत अदत्तरति । पररमणिराचरावणगयो'सातोंसेवतकोनगति ॥६॥ शब्दार्थ टोका [पॉडवा भूप) पांडव राजा [धकराय) राजा वक ( नादोंगण) जादोकुल के लोग ( द. ) जले ( चारदत्त ) नाम ( अरम.) प्रखझे (वह्मदत्त ) राज का नाम (आखेट ) शिकार ( दुज ) ब्राह्मण ( शिव भूत ) ब्राह्मण का नाम ( अदत्त ) चोरो का धन (रति ) रचाहुआ (प ररमणि ) परस्त्री ( रावण ) अशापुरी के राजा का नाम । सरलार्थ टीका पहले पौडव राजा मैं पूआ येलकर सारी संपति अपनी खोदई-मौसके कारण राजा वक दुख पाकर बहुतसा रोया जादोंकुलके लोग विनजाने मदिरा पोनेसे जले चारदसने वेसवा विसन अलझनेसे दुःख उठाये रा जा ब्रह्मदत्त शिकार खेलनेसों और शिवभूत ब्राह्मण चोरोके धन मैं रष नेसों और रावण लङ्का का राजा सौतानाम परस्त्री मैं रचनेरे नातभये अर्थात् नट भये और जो पुरुष सातों विसन सेवते हैं उनकी कौनगति होगी। दोहा छन्द पाप नाम नरपति करे, नरक नगर मैं राज । तिनपये पायकविसन, निजपुरबसतौकाज ॥१२॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक जिनके जिनके वचन को, बसो हिये परतीत । विसन प्रौत ते नर तजो, नरक वाप्तभयभौत ॥ ६३ ॥ शब्दार्थ टोका (नरपति) राजो ( पठये) मेत्रे ( पायक ) नौकर-अगवानी (जिनके ) जिनपुरुषों के (जिनके ) जिनदेव के (परतोस ) इंतवार ( भयभीत ] उरसे डराने वाला | ७२ सरलार्थ टोका , पोपनाम राजा नरक नगर में राज करता है तिसने अपने नौकर त्रिम नों अर्थात् पापों को अपनी नगरो के कार्य हेत भेजा है जिन लोगों मनमें जिनदेव के वचन की परतोत है ते नर विमन प्रोत तजो किसलि थे कि सिम नरक वास का देने वाला है जो भयभीत है । कुकवि निन्दा कथन मत्त गयन्द छंद राग उदै जग अभ्रभयो सङ्घ' जै सब लोगन लान गमाई | सौख बिना नर सौख रहा वन, ता सुख सेवन की चतुराई । तापर और रचे रस काव्य क, हा कहिये जिन को निठुराई । अन्य असून कौ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक ', अखियाँ मध, मेलत हैं रज राम दुहाई ॥ ६ ॥ शव्दार्थ टोका (सीख ] शिक्षा ( मोखरहा ) नरहा [ रस काव्य ] रस रूप काव्य (निठुराई ) कठोरता ( मेलम हैं ) डालत हैं ( रज ) मट्टा ( राम दुहा ई.) राम की दुहाई। सरलार्थ टौका रोग उदै जगत में अन्धा होकर महज ही लोर्गों में लार खोरक्खी है विना सिखाये ही नर स्त्र सेवन की चतुराई सीखरहा है तिरापर कुक बियोंने और रस काव्य वनादई जिन कवियों की कठोरताको देखो कि अन्धे विना सूझन वाले की आंखों में और मिट्ट. डालते है दुहाई है। म की। -~280 मत्तगयंद छंद कञ्चन कुम्मन का उपमा कहि, देत उरोजन को कवि वारं । अपर श्याम बिलीकत के मणि, नौल क को ढकनी ढक छारे । यो सत बैन कहै न कुं पण्डित' ये युग आमिष पिण्ड उघारे । साधनमा ' रदई मुहकार भ, ए इसहैत किधी कुचकारे॥६५॥ शब्दार्थ टीका Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक. ( कश्चन ) सौना ( कुम्भ) कलश-घट ( उपमा) तस्मता ( उरोजन) कु च-छातो [ बार ) बाले अनजान-मूख ( शाम ) काला ( मशिनोलक ) नीलम् जवाहर ( ढकनी ) चपनी सरपोश ( ठकारे) टकदिये (सत वैन ) सच्चेबचन (कुपण्डित ) खोटे पहित ( युग ) दो २ जोड़ा (श्रा मित्र) मांस ( पिण्ड) गोला ( उधारे) प्रत्यक्ष [ बार] राख । सरलार्थ टौका मूर्ख कवि कुचौकी सोनेके कलशों से उपमा देते हैं और जपर कालाप न देखकर नीलक मणिको ढकनी ढकीहुई कहते हैं ऐसे सत बचन कु पण्डित क्यों नहीं कहते कि ये दोनों कुच दो पिण्डे मांस के प्रत्यक्ष है और साधोंने जो मोह रूप राख इनपर भारदई है इस कारण कुच क छु काले होगये हैं। বিঘানাম্বীনদাৰ জুবিলিল্ডাল मत्तगयन्दछन्द हेबिधि भूल भई तुमः सम, मे न कहां कसरि बनाई। दौन कुरङ्गन के तनमै तिन, दन्त धर क रुणा नहि आई । क्यौंन करी तिन जीमन जेरस, काव्य करें परको दुखदाई। साथ अनुग्रह दुर्जन दण्ड दु, जसधते विसरी चतुराई. ॥ ६६ ॥ . Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक . ५ शब्दार्थ टीका (विध ) ब्रह्मा क म ( कसतूरि ) मुश्क (दोन ) गरीब (बुरङ्ग) हिर • न मृग ( अनुग्रह ) कपा (दुर्जन ) वैरी (बिसरी) जो वस्तु चित्तसेजा ती रही अर्थात् भूलना। सरलार्थ टीका हैकम वा ब्रह्मा तमसे बडो भूल भई तुम समझे नहीं तुमने कहा क स्तुरी वनाई गरीव हिरनों के शरीर में जो दांत में लण लिये दुवे हैं तु मको दया गहीं आई कि ऐसे दोन जी को पापोजन कस्तूरीके लाल च इतरी कस्तूरी तिनकी जीभ मैं क्यों न करी जो परको दुखदाई रसि क काव्य वनाते हैं यदि ऐसा करते तो दोनों वात साधुअनुग्रश्च और दु जनदंड सिद्ध होजाता तुम्हारी चतुराई काहांगई। सनरूपहस्तोवर्णन - -RRB -~ छप्पै छन्द ज्ञान महावत डार; सुमति सांकल गह खण्डै । गुरु अङ्कुश नहि गिनै, ब्रह्म छत वृक्ष बिहण्ड, । कर सिधान्त सर हानि, केल अधराज सो ठाने। कारण चपजता धरै, कुमति करणी रति माने । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - মৃধীনমন डोलतसुकन्दमदमत्त पति, गुणपथिक आवतहरै। वैरागखमाबांधनर, मनमतकविचरतबुरै ॥ ६७ ॥ शब्दार्थ टोका ( महावत हाथीदान [ सुमति ] उत्तममति (सांकल ) बजेर गह) रगड़कर [ घडै ) तोड़े ( अंकुश ) लोहे का औजार जिससे हाथी हांक तेहैं ( ब्रह्महत ) शोमवृत्त ( विइण्डै ) तोड़े ( सिद्धान्त ) आमज्ञानशास्त्र ( मर ) तलाव (बेल ) किलोल ( अघ ) पाप ( रज) मिट्टी [करण कान (कुमति ) खोटीमति ( करणी ) च्यना ( रति ) रचना (सुहन्द) वैरोक आजाद मनमौजी { मद ) मान डोर । मत्त ) मस्त (पथिक'. वटेज (खभ ) सतून टेक [ सतङ्ग) हाथो (विचरत ) चलत (दुरै) दुरा। सरलार्थ टोका ज्ञानरुप हाथीवान को डालकर सुमतिरुप सकिल की रगड़कर तोड़े है और गुरुरूप अशको नही मानकर उस हतरुप हक्ष को तो है और सिद्धान्तरूप ताबको हानि कर है पापरूप धूलमों किलोल कर है और चपलता रूप कान धरैहै और कुमतिरूप हथनीसों रोचे है और अ पने जोर में मस्त होकर रोक फिरहै गुणरु प बटेऊ जिसके सामने आ ताहुआ डर है ईनर ऐसे मनरूप हस्तीको वैराग्यरुप खम्भ से बांध किस कारण मनरूप हस्ती का विचरना बुरा है। गुरु उपकार कथन Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधर जैनशतक घनाक्षरो कन्द ढई सौ सराय काय, पान्य जोव बस्यो आय, रत्न वय निध जापै, मोक्ष जाको घर है । मिथ्या नि श कार्गे जहां, मोह अन्धकार भागे, कामादिकत सकर, समहु को थर है । सोबे जो अचेत सोई, खोत्रे निज सम्पदा को' तहां गुरु पाहरु; पुकार दया कर हैं । गाफिल न हजै भ्रात ऐसोही अम्बे री रात नागरे बटेऊ नहांचोरनकोडर है ॥ ६८ ॥ शब्दार्थ टीका 65 ( ढई ) टूटी फी ( सराय ) उतारेका स्थान ( पान्य) बटेक [ नत्रम) सीनरत्न सम्य दर्शन १ ज्ञान २ चारित्र ३ ( निध ) संपत्ति दौलत (मो ख) मोच (मिय्या) भूट (निश ) रात्रि (अन्धकार) अांधी ( तसकर ) चोर (थर) स्थान ( अचेत ) गाफिल ( संपदा ) दौलत ( पाहरू) पह रेवाला चौकीदार ( भ्रात) भाई । सरलार्थ टीका टूटी फूटीसो सराय काया में जीवरूप पटेड आवणा रत्नत्रय दौलत जिस के पास है और मोक्ष जिस का घर है मिथ्यारूप अन्धेरीरात है और मो ह रूप भारो आंधी चलरही है और कोमचादि चोरोंको मण्डलीकास्था न है ऐसो अवस्था मैं जो मनुष्य प्रचेत सोवै सो अपनो दौलत को खो Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुधरजैनशतक . वैहै तहां गुरु पहरे वाला दयाकर ऐसे मुकार है कि भाई ऐसो भक स्था मैं गाफिज न इजिये जागरे वठेउ जहां चोरोंकाडर है। चारोंकषायजोतनंउपासनयन मत्तगयन्द छंद छम निवास किमाधुवनी विन; जोध पिशाव डरे न टरैगो । कोमल भाव उपाय बिना यह; मान महामद कीन हरैगो । श्रार्जव सार कुठार विना छल' देल निकन्दन कौन करेगो।तोष शिरोमणि मन्वपटेबिन लोसफणी विष क्यों उतरैगो ॥६६॥ शब्दार्थटीका (छैम ) उपवरहित (निदास ! वाह (विमा ) क्षमा प.ये हुवे दुःरू कासहमो ( श्रोध ) गुस्सा (पिशाच ) भूत प्रेत ( मान ) गरूर (हरैगो) दूरकरैगो (आर्जव ) छलरहितपन सुशीलता (सार) लोहा फौलाद (बुठार) कुहाड़ा (निकन्दन ] उखेड़ना (तोष ) सन्तोष सबर (फ चि) सर्प विष ] जहर। सरलार्थ टीका Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक उपद्रव रहित पर छिमारूप धुवनी बिना क्रोध रूप भूत डरैगान टरेगा और कोमल भाव उपाय बिना मानरूप महामद को कौन हरै गाभार्जवरूप सार कुहाडे बिना छलरूप वेलको कौन उखेडगा सन्तो • षरूप शिरोमणि मंत्र बिना पढे लोभरूप सर्पका जहर कैसे उतरेगा। मिष्ट बचन बोलन उपदेश -- मत्तगयन्दछन्द काइकु बोलत बोल बुरै नर, नाहक क्यों यशधर्म गमावै । कोमल बैन चबै किन अनल, गै कछु है नसवैमनभावै ॥ तालु छिटै रसनान विधै नघ, है कुछ अङ्ग दरौद् नःआवै ॥ नौवक है जिया हान नहौं तुझ, जी सब नौवन को सुखपावै ॥ ७० ॥ . शब्दार्थ टीका (काईकु) किसवारस (बैन ) बचन (च) बोले (किन ऐन ) क्यौन हौं (सगैकछु है न ) लगे कुछ नहीं (तालु ) तालवा ( रसना ) जीभ (अ) गोदी (जीव) मामा (जिया) जीवकी (जी) पामा जान . दार। सरलार्थ टीका Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মূখতমন नर किस वास्तै वरे बोल बोल कर नाइक क्यों अपनो यश और ध म खोताहै कोमल वच्न क्यों नहीं बोलता जिसके बोलनेमैं कछु नहीं लगता और सवको प्यारा मालूम होता है जिस से तालवा छिदै नहीं · भोभ बिधे नहीं गोद से कछु नाय नहीं और नीवकी का हानि नहीं सब जीवों का जीव सुख पावै है। धीर्यधारण शिक्षावर्णन . घनाक्षरी छंद आयोहै अचानक भ, यानक असाता कर्म ॥ ताके दूर करकेको' बली कोउ है। ॥ जेजे मन भायेते क, माये पुन पाप आप ' तेर्दू अब भाये निज, उदै काल लहरी ॥ अरे मेरे वौर काए होत है अ धीर यामै, काउको नसीर तू अकेलो आप सहर भये दिलगीर कि घों,पौर न बिनश जाय, याहोते .. सयाने तू त, माशागौर रहरै ॥ ७१ ॥ शब्दार्थ टीका (असाता कम ) दुखका देने वाला कर्म (बीर ) भाई (अधीर) बे Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक ८१ करार-वेसबर-चलायमान ( सोर) साझा ( दिलगीर ) दुखमान [पर] दुख (बिनश ) नाश होना । सरलार्थ टोका 1 }' वाचक भय देने वाला दुखदाई कन्मं आगया जिस के दूर करने को कौन बलवान है जो जो मन में आये सो मैंने आप पुन्य पाप कमाये सो अव पुन्य पाप तेरे आगे आये देखते अरे मेरे भाई किस वास्तै अब चलायमान होता है इसमें किसीका साझा नहीं है दुख सुख सब आप उठा दिलगीर होने से दुख दूर नहीं होगा इस कारण हे बुद्धिमान् तू तमाशा देखने वाला रह । }' 1 O . 0 t; oft होनहार दुर्निवार कथन -1 घनाक्षरीकंद कुल कैसे कैसे बली भूप; भूपर बिख्यात भये, बैरी कांपै नेक, भोंहों के विकार सों || लंघेगिर सायर दि, वायर से. दिपैं जिन; कायर किये हैं भट, को रन हुँकार सों। ऐसे महा मानो मोत, आयेह नहा र मानी, उतरेन नेक कभो; मानके पहार सों ॥ देवसोनहारे पुनि' दानेसों नहारे और, काएसन י{ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घर মুঘলমন : हारे. एक, हारे होनहार सों ॥ ७२ ॥ शब्दार्थ टोका ( बली) बनवान (भूय) राजा (भू) पृथी ( विख्यात ) प्रत्यक्ष-यशो नामी [नेक ] शोडे (विकार) समावबदलना (सङ्के) उलांके (गिर) स्यहार (भायर ) समुद्-सागर (दिवायर ) सूर्य ( कोयर) डरपोकाभ '] शूरवीर (कोरन ) करोरन (इंकार) अवाम शब्द ( दाने) असुर दाचत । सरलार्थ टीका कैसे कै बलवान् राना धरती पर नामी और यशी भये निनकी मौके बदलनेसे वैरी कुल कां हैं और जिनों ने पहाड़ और समुद्र उतांके हैं और सूर्य जैसे चमके हैं और जिनौने करोरों शूरवीरों को अपनी ई. कारसे डरपोक बनादिया है और ऐसे बडे मानी हैं जिनौने मौत मा ने पर भी हार नहीं मानी और कभी मानरूप पर्वतसे थोड़ी बार भी नीचे नहीं उतरे देवसों हारे न दानेसों हार परन्तु एक होनहार सों पहार है। कालसामर्थ कथन घनाक्षरी छन्द Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक लोहमई कोट कई, कोटन की ओट करो, कांग रनतोप रोप राखो पट भेरके । चारों दिश चेरा गण; चौकस होय चोंकोदे, चई रङ्ग च चहों, और रही घेरकै ॥ तहां एक भोहराब; नायबीच बैठो पुनि, बोलोमत कोउ जोबु, लावैनाम टेर के ॥ असौपरपञ्च पांति, रचो क्योंन भांति भांति, कैसे हूँ न छोड़ो हम, देखो यम हैर के ॥ ७३ ॥ . शब्दार्थ टीका है लोहमई ) लोहेकी बनी हुई ( कोट) सफीस ( कॉमरा) किलेका के गरा (पट) किवार (दिश ) भोर तरफ (चेरा ) चेला ( गए ) समूह ६. चीकी ] पहरा (पहरणचमू ) चार प्रकारकी सेना रथ १ घोड़ा २ हाथी ३ म्यादा ४ (चई भोर) चार तरफ [ भोहरा ] तहखाना (प अपञ्च) छल माया धोका (पांति ) पङ्गति (भांत ) सरह । सरलार्थ टीका सोहके बमे दुवै कैयक कोटको भोट करो और किवार भड़के कांगरन पर तोप राखी और चारों ओर चेनौका समूह चोकस होकर चौकी दे और चतुरङ्ग मैना चारों तरफ घेर रही है तिस स्थान मैं एक भोहराव • नायकर वैठगयो और यह कहदिया जो नामलेकर वुमावै तो मत बो लो हे भाई चाहे ऐसी छल वा मायाको पङ्गति क्यों न रची परन्तु समः मैं यह देखा कि यमराज मैं हेरकर किसीको भी नहीं छोड़ा। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ . भूधरजैनशतक अज्ञानी जीव दुखी हैं ऐसा कथन मत्तगयंद छंद अन्तक सौन छुटैन हचैपर, मूरखीव निरन्तर धूजे। चाहत है चित मैं नित हो सुख,होयन लाभ मनो रथ पूजे । तू परमन्दसति जगमैं भाई; आस बंध्यो दुखपावक भूजे । छोड़ विचक्षण येजडलक्षण' धौ रज धार सुखी किन हजै ॥ ७४ ॥ . शब्दार्थ टीका (अन्तक ) यम मौत ( निरन्तर ) बराबर (धूजे ) कांप (मनोरथम तलब (पूजे ) मिल ( पावक ) भाग ( भूजै) नलै (विचक्षण) चतुर (नड़) मूर्ख। सरलार्थ टौका यह बात निश्चय है कि मौतसे कोई नहीं बचेगा परन्तु मूर्ख जीव दम परदम कांपता है और अपने मन मैं नित सुख चाहता है परन्तु लाभ और मनोरथ नहीं मिलता परन्तु हे भाई तू बुद्धिहीन आशाके बश हो. कर दुःसरप अगनी में जलै है है चतुर येमूर्खके लक्षण छोड धीरजधा रकर सुखी क्यों नहीं होता। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • গালমন । '८५ धीर्यधारणशिक्षा वर्णन मत्त गयन्द छंद जोधन लाभ ललाट लिख्यो लघु, दौरघ सुकृत के अनुसारै । सोइ मिलै कुछ फेरनहो मरु, देश कि टेरसुमेर सिधारै । कूम कियों भर सागर मैं नर' गागर मान मिलैनब सारै। घाटक बाध कहीं न हि होयक' हा करिये अब सोच विचारे।। ७५ ।। . शब्दार्थ टीका (सक्छत ) भलीकृत ( अनुसार ) अनुकूल मुवाफिक तुत्य (मर देशकि ढेर ) वागड़ देशके रेतके टीवे मरुस्थल भावार्थ काम पैदावा मुल्क (स मेर) सौनेका पहाड़ ( कूप ) कुवा [ सागर ] ममुद्र (गोगर ) घठ ध डा (मान) तुल्य (मार ) सबनगह। . सरलार्थ टीका जोधन लाभ कम बढ़ती भत्तो कत के अनुसार ललाट में लिखा गया सोई मिलेगा इसमें कछु फेर नहीं है चाहे वागड़ देशके टीबोंमें जिनमें कुछ पैदा नहीं होता चाहे सुमेर परक्तपर जो सोनेका है जाओ जैसे चाहे कूत्रा मैं चाहे सागर में भरो हेनर घड़े की तुष्य सारै नत मिलेगा Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहाँ घाट बाव नहीं होगा फिर क्या बोच विचार करिये। . — आशानाम नदी वर्णन -~~~ घनाक्षरीछंद मोह से महान उचे' पर्वत सों ठर आई तिहूँ जग भूतल को; पाय विसतरी है। विविध मनोर थ मैं भूरि जल भरी बहु, तिशना तरङ्गन सौंपा 'कलता धरी है। परचमभंवरजहां' राग से मगर तहां ' चिन्तो तट तुङ्ग इन' धर्म ढाय ढरौ है। असौ यह आसा नाम ' नदी है भागाध महा? धन्य साधु धौरयत' रणौ चढ़ तरौ है ॥ ६ ॥ शब्दार्थटीका (महान ) वडे ( भूतल ) पृथी धरातल ( विसतरी ) फैली (विविध नानामकार (भूरि) अधिक ( तरङ्ग) सहर (पाकुलता) व्याकुलता (तुङ्ग) उंचा ( अगाथ) अधाह गहीर (नरणि ) नौका। सरलार्थ टीका , . . मोहरूप बड़े जचे पहाड़ से डलकर आई तिइ नगमैं धरतोपर फैली है Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक और नानाप्रकार मनोरथरूप अधिक नल मे भरी है और तृष्णारूप लहरों से ज्याकुल होरही है और जिस नदी में नमरूप भवर रागरूप मगर हैं चिन्तोरूप तट हैंजचेवक्ष धरम के टायकर ढरी है ऐसो यह पोशा नाम नदी प्रथा है धन्य है उन साधीको जो आशानाम नदो को धोरज रूप नौकापर चढकर तिरगये हैं। महामूढ वर्णन घनाक्षरी छन्द नोवन कितेक तामैं, कहानीत वाकी रह्यो, तापे अन्ध कौन कौन, करै हेर फेर हौ । आप को च तुर नाने, औरनको मूढ माने, साँझ होन आई है कि, चारत सवेर हो । चामही के चक्षन सों, चितवै सकल चाल, उरसों न चौधकर, राखो है अबेरही। बाहै बान तानकै अ, चानक ही ऐसी यम, दौखैहै मसानथान हाडनको ढेरही ॥ ७७ ॥ शब्दार्थ टोका [ जोवन ] जोवना (कितेक ) कितनो अर्थात् बहुतथोड़ा ( कहा वोत वाकी रह्यो ) क्या बदौत होकर बाकीरह्यो अर्थात् कुछ बाकी नहीं र Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक वो (अन्ध ) अन्य (चचन) आंख (चितवे) देखे (उर) हृदय (चौ वे )- बिचारे (बाई) चलावे ( बान ) तोर ( मसान धान ) मर्घट 1 सरलार्थं टीका C प्रथम जीवना हो थोड़ा है तिसमें से वदीत होकर कुछ काल अर्थात् थोड़ा वाकी रह गया फिर इस थोडेसे जीवन पर कैसे कैबे हेर फेर करे है आप को चतुर जानें औरोंको मूट मानें सांझ काल होनेपर भी मवेरा विचारे है सारो बस्तु नेवों से देखे है हृदेसे नहीं देखता धेर कर रक्खा है यमरोज अचानक ऐसा तोर तानकर चलावेगा कि मर्घट मैं हाडों का ढेर दिखाई देगा | २ ३ ४ केती वार खान सिंघ, सांबर सियाल साँप, सि. घनाक्षरीकंद ८ १० बुर सारङ्ग सूसा, सूरी उदर परो । केतौबार चौल 6 मूढ , ११ १२ १३ १४. १.५ चम,गादर चकोर चिरा, चक्रमांक चात्रक चं, डूल १७ १८ १८. २० तन भी धरो । केतोबार कच्छ मच्छु, सैंडक गिंडोला २१ २२ २३ '२४ २५ मौन, शङ्ख सौंप कोडी हो न, लूका जल मैं तिरो । कोई कहै जायरे जि, नावर तो बुरोमानै, यों न जाने मैं अनेक बोर हो मरो ॥ ७८ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक शब्दार्थ टीका [खान ] कुत्ता (सिंघ) वाघ-शेर ( सावर) बारामौंगा (सियाल) गीदड़ (सिन्धुर) हाथो ( सारङ्गः ) मृग-हिरन (उदर) पेट [चक्रवाक] चकवा (चानक) पपहिया (कछ ) कछवा (मछ) मगर ( मीन) म छलो (जलूका ) जोक। सरलार्थ टीका कितनी बार मनुष्यने खान आदि जलूका पर्यन्त पर्थात् बहुतसी योनि धारण करी इसपर यदि कोई जिनावर का है तो मूर्ख पुरुष प्रति बुरा मानें है यह नहीं जानता कि में अनेक बार पशु पक्षी आदि नाना प्र कार जन्तुओंकी योनि में होकर मरगया है। दुष्टजनवर्णन - : छप्पै छन्द कर गुण अमृत पान; दोष बिष विषम समप्य । बङ्ग चलनं नहि तजै युगल जिह्वा मुख थप्य । तकै निरन्तर छिद्र' एदैपर दोपन रूच्यै । बिन कारण दुख कर रविश कबहूँ नहि मुच्चै । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० . . भूधरजैनशतक वर मौनमन्त्रसों होय वश सङ्गत कोये हान है। बहुमिलतवानयासही; दुर्जनसाँपसमान है॥ ७ ॥ शब्दार्थ टीका (पान) पोना (विष) नहर ( विषम ) भयानक ( समय ) उत्पन्न करें (वह) वाँको ( युगल ) जोड़ो दोय ( थप्पे ) थापै (छिद्र ) छेक (पर) पराया ( दीप) दिवला (रूय) आनन्दहोय (रविश ) चाल (मुच्च) छोडे ( वर ) उत्तम [ मौन ] चुप (हान) टोटा ( वान ) सुभाव (दु जन) खोटाजन । सरलार्थ टोका गुणरूप अमृत को पीकर दोषरूप भयानक जहर उगले है और अपनो वांको चालको नहीं छोड़े है और दीय जीभ मुखमैं थाय है भावार्थ ए को कुछ कहै है दूसरेसे कुछ कहै है और निरन्तर ऐक को ताकता है भावार्थ नाना प्रकार के छिद्र बातके देखता है और पराये दिवलेके उ दयपर आनन्द नहीं होता है भावार्थ पराई प्रभुता देखकर भानन्दन्हीं मान्ता है और बिन कारण दुख करता है और अपनी चाल को नहीं छोडता है ऐसा पुरुष उत्तम मौनमंत्रसों वशमैं आताहै जैसे किसीकवि ने कहा है। (दोहा) मूरखको मुख बम्बई, निकसै वचन भुजङ्ग । , ताकी दारू मोनहै, विष नहि व्याप अङ्ग ॥१॥ ऐसेको सङ्कतिसे टोटा है वहुत सुभाव जो मिले है इस कारण दुर्जनपु रुष सापके समान है। - to Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक - विधातासों वितर्ककथन । __. .. -~-08-0- . घनाक्षरोछंद सज्जनजोर चेतो सु' धा रस सों कौन काज, दुष्ट जीव कौयो काल' कूटसों कहा रही। दाता निर मापे फिर' थापे क्यौं कलप वृक्ष' याचक बिचार लघु; तृण इ ते हैं सहो । इष्टके सम्योग तें न ' सौरो धनसार कुछ; जगत को ख्याल इन्द्र' नाल सम है महो। ऐसौ दीय बात दीखें, बिध एक ही सो तुम;काएको बनाईमेरे धोकोमन है यही॥८॥ शब्दार्थ टीका ( सज्जन ) भले पुरुष (रचे ) पैदाकरे ( सुधारस ) अमृत ( कालकूट ) विष-जहर निर्मापे ) पैदाकर ( कलपक्ष ) कल्पतरू ( याचक )मांग ने वाला (इष्ट ) प्यारा ( संयोग ) मिलाप ( मोरो) ठएढा (घनसार) कपूर जल चन्दन [विधि ] ब्रह्मा। __ सरलार्थ टौका कवि विधातासों तर्क अर्थात् शङ्खा कर है कि ई विधाता है. यदि स जन रचेथे तो फिर अमृतसों कौन काजथा भावार्थ सज्जन पुरुष के हो Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ भूधर मतक नेपर अमृत को कोई लोड नहीं थेो दुष्टनम उत्पन करे फिर विष से क्या प्रयोजन रहा दाता बनाये फिर कल्पवृक्ष कयौं बनाये और जब या चक पुरुष पैदा करे तो फिर क्यों पैदाकरें इटके मिलने को वराव रघनसार शीतल नहीं है और जगतके ख्याल इन्द्रजाल को सम झूटे है ऐसो ये दो दो बात जो एकसों दिखाई देती हैं हे विधाता किस कार बनाई मेरे मन में इसका धोका है चौबीस तीर्थङ्करों के चिह्न वर्णन 20 ● LALIG छप्पे इन्द ४ गजपुत्र गजराज; बाणि बानर मन मोहे । S T ट कोक कमल साथिया' सोम सफरीपति मोहै । १२ १३ श्रीसम गैंडा महिष; कोण पुनि सेही जानों । १५ १६ १७ १८ १८ २० aa हिरन च मौन' कलश कच्छप उर मानों २१ २२ _२३ २४ शतपत्र म अहिराज हरि' ऋषभदेवजिनचादिले । श्रो बर्द्धमानलोंजानिये' चिन्हचारुचौबोसये ॥ ८१ ॥ शव्दार्थ टोका Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . मुघरजनशतक ६३ (गजपुत्र ) बैल (ग़जराज) हाथी ( वाज ) घोडा (वानर) वन्दर ( कोक ) मैंडक ( कमन ) फूल विशेष (साथिया ) चिह्न विशेष नी दे वपूजा मैं मङ्गलोक होता है ऐसा चिन्ह * (सोम ) चन्द्रमा (स * * फरो पति ) मगर मछ [ श्रीतरु ] कल्पहच्च ( गैंडा ) पशु विशेष (महिष ) भैसा ( कोल ) सूर ( कलश ) घट (.कच्छप ) कछुवा (शत पत्र ) कमल का फूल विशेष [ शङ्ख] उल उन्तु का घर जो वैष्णव म त के मन्दिरों में वजाते हैं ( अहिराज ) सर्प ( हरि) सिंह ( ऋषभटेव जिन ) आदिनाथ स्वामो पहले तीकर ( श्रीवईमान ) महावोर खा मो पिछले तीर्थकर (चिन्ह) निशान ( चार ) मले। सरलार्थ टौका श्रीपादिनाथ १ कै वैल श्रीअजिननाथ २ के हाथो श्रीसम्भवनाथ ३ के घोड़ा श्रीअभिनन्दननाथ जो ४ के वन्दर श्रीसमतनाथ मोपकैमेंडक श्री पद्मप्रभुनी ६ कै कमल श्रीपालनाथजी ७ कै सांथिया श्रीचन्द्रप्रभुजी ८ कै चन्द्रमा सविधिनाथजी के मच्छ श्रीशीतलनाथनी १० के क ल्पहक्ष श्रीश्रेयांसजी ११ को गैंडा श्रीवासपूज्य जी १२ के भैंसा श्री विम लनाथमो १३ के सूर श्रीअनन्तनाथजी १४ के बेहो श्री धर्मनाथ जी १५ के बच्च श्रीशान्तिनाथजी १६ के हिरन श्रीकुन्युनाथजी १७ के बक रा श्रीअरहनाथजी १८ के मछली श्रीमशिनाथ १८ के कलश श्रीमुनिक तनाथजी २० के कछवा अनमिनाथ जी २१ के शतपत्र थनिमिनाथजी के२२शङ्ख श्रीपार्खनाथजी २३के सर्प योमहाब रखामी २४ के सिंह श्री आदिनाघखामो पहले तीर्थंकर आदि श्रीमहावीर स्वामी पिछले तीर्थ कर पर्यन्त ये भले चौवीस चिन्ह हैं। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ক্ষুঘলীলমল श्रीऋषभदेवजोके पूर्वभव कथन 1 . घनाक्षरी छंद आदि जैबरमा टूजे महावल भूप तोच खर्गईशा न ललितांग देव भयो है। चौथे बचजङ्ग राथ पां चर्वे युगल देह सम्यक हो दूजे देवलोक फिरगयो है। सातवें सुबुधि देव आठवें अच्यु तइन्द्र नोमे भो नरिन्द्र बच नाभिनाम भयो है। दशमैं अहमिन्द्र जान ग्यारमैं ऋषभभान नाभि बंश भूधरक माथे जन्म लियो है ॥८॥ शब्दार्थटीका (ईशानस्वर्ग) सोलह वर्गों में से दूसरे स्वर्गका नाम ( युगलदेह ) जो ड़ या जोड़ा [ सम्यक ] श्रद्धा (अयत )सोलवे स्वर्गका नाम (भानु ) सूर्य (भूधर) पहाड़। सरलार्थ टीका Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक ६५ पाले भोमें आदिनाथस्वामी जैवरमा नाम भये दूसरे जन्म में महाबल नाम राजाहुये तीसरे भोमें ईशान नाम वर्गमें ललितांग नाम देवभये चौथे वनजंघ नाम राना कहाये पांचवें जन्म में जौड़िया स्त्री पुरुष भो ग भूमिया बने छठे भोमें सम्यक होकर दूसरे देव लोक अर्थात् ईशान नाम स्वर्ग में गये सातवें भोमैं सुबुद्दिदेव नाम भये आठवें भीमें अचुत खग में इन्द्रहुये नौमभोमैं यजमाभि नाम चक्रवर्ती भये दशमभो मैं अह मिन्द्र हुये ग्यारमभोमैं ऋषभरूप सूर्य- नाभिवंशरूप पर्वत के सिरपर म.मलियो है भावार्थ ग्यारमेभीमें नाभिनाम राजा के श्रीऋषभ देव उत्पन्न भये। श्रीचन्द्रप्रमुखामी के पूर्वभव कथन - - - . - - Xy गीता छन्द श्रीवर्म भूपति पाल युहमी, खर्ग पहले सुरभयो। सुनिअजितसेनछखण्ड नायक,इन्द्रअच्च तमैथयो। बर पदमनाभि नरेश निर्जर, बैजयन्त विमानमैं । चन्द्राभखामौ सातवें भव, भये पुरुषपुराणमैं ॥३॥ शब्दार्थटीका Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুঘলীম (बर्मभूपति ) राजाकानाम ( पालपुहमी ) पासनेमाला पृथीका (स र) देवता (पुनि ) फिर (भनितयेन ) रानाकानाम ( नायक ) सर दार बडा (वर) अष्ट [ पद्मनाभि ] राजा को नाम (निमर) देवता [बैजयन्त बिमान ] सोलह खौरे ऊपर एक विमान का नाम (45 ट्राभ) चन्द्रकैसी भाभा जिसको (पुरुषपुराग ) महान पुरुष। , सरलार्थ टौका पहले जन्म में देवता श्रीवर्मभूपति नाम राजा पृथिवी के पालने वाले हुये दूसरै भोमैं पहले स्वर्गसौ धन्म नाम मैं देवताभवे तीसरेभोमें पनि तसेन नाम राना चमावर्ती भये फिर चौधभीमें अच्यु तनाम सोसवें स्वर्ग में इन्द्र भये फिर पांचय भीमें पदमनाभ नाम राना हुये फिर छठेभो में वैजयन्त नाम विमानमें निर्जर प्रयत् देवता भये फिर सातवें भोमै अन्द्राम नाम अर्थात् चन्द्रप्रभु स्वामी नाम महान् पुरुष तोहार भये । श्रीशान्तिनाथस्वामीके पूर्वभवकथन T TRA सर्वया इकतीसा सिरीसेन औरज पुनि स्वगौं, अमित तेज खेचर पद पाय । सुर रवि चू गधा । मैं, अपरा जित वलभद्र कहाय । अच्चु त इन्द्र बच्चायुध चक्री Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवरकेनशतक १७ · · फिर घडमिन्द्र प्ररथ राय । सरकारव सिवेव शा - मत बिन, ये प्रभुको वारह पर्याय ॥ ८ ॥ मान्दार्थ टोका (बीसेन ) नाम ( प्रारज ) भोगंभूमिया (पुनि ) फिर (खौ) स्वर्ग का रहने वाला अर्थात् देवता ( अमित तेश) नाम विद्याधर (सेचर) पाकाश गामो ( रविचूल ) नाम देवता ( आना ) तर में वर्गका नाम (अपराजित ) जो जीता न जाये ( बलभद्र ) नाम ( बनायुध ) नाम (चनी ) चक्रवतों ( मेघरधराय ) रामा का नाम [ सरबारध] वर्गो 'के जपर स्थान का नाम ( सिद्देश ) सिबीका ईग (पर्याय यौनी। सरलार्थ टोका पाले भव में ओमेन माम हुये २ भोग भूमिया ३ वर्ग बासी ४ अमित বিল লাল ৰিঘৰ গান্ধায় মালী নিমূল নাম না জানায় तरवें वर्ग, ६ अपराजित नाम बरभद्र १ अच्युत मोलवें वर्ग में देशना बच्चायुभ नाम चक्रवर्ती 2 ग्रहमिन्द्र १० मेघरथ नाम राजा ११ मा वारंथ थिोश १२-शान्तिनाथ स्वामी बिनदेय ये बारह भा थी यान्ति गाय सामोरे हैं जो जपर कई। ... - श्रोनेमिनाथ जी के भव वर्णन .. 102RUAGOK Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুঘলন छप्प छन्दः .. पहले भवन मील 'दुतिय अलिकेतु सेठघर। तीजै सुर सौधर्म ‘चौम चिन्ता गतिनभचर । ५ चम चौथे स्वर्ग' छटै अपराजित राजा । अच्चत इन्द्र सातवें 'अमर बुल तिलक विराजा । मप्र तिष्टराय आठम न ' जन्म नबन्त विमान धर। फिर अये नमि हरिवंश शशि 'ये दश भव मुधि करहुनर ८५॥ शब्दार्थ टीका (भील) जातिविशेष ( अभिकेत ) नाम ( बोधम ) पहले.वर्गकानाम [चौम चौथे (चिन्तागति ) नाम विद्याधर ( नभचर ) आकाशगामी (अमर) देवता (तिलक ) शिरोमणि ( समतष्ट ) नामराजा (जयन्स) एक विमान का नाम (पशि) चन्द्रमा । - सरलार्थ टौका . १ धनमें मील हुये २ अभिकेतु नाम हुये जो पेठ के घर में पैदा हुये ३ सौधम्म नाम खर्गमें देवता हुये ४ चिन्तागति नाम आकाश गामी वियाधर भये ५ चौथे वर्गमें देवता हुये ह अपराजित नाम राजा हुये ७ अग्युत स्वर्ग में इन्द्र होकर देवताकुक्ष में शिरोमणि हुये ८ सुप्रतिष्ठनाम, गला हुये ८ जयन्त बिमानधारी इये १० हरिवंश कुल के चन्द्रमा श्री. नेमिनाथ स्वामी तीर्थ पर हुये ये दश जन्म हे नर विचारले । । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ भूधरजेनशतक श्रीपार्श्वनाथ जी के भवान्तर नाम ' सवैयाङ्ककतीसा विन यूत मक भूत विच क्षण' बज घोष गज ग इन संकार । सुरपुनिसहसरश्मि विद्याधर; अच्युत वर्ग अमरौ भरतार । मझुग इन्द्र सहम ग्रेवयक' राजयुव आनंद कुमार । आनतेन्द्र दश मै भव जि . नवर , भये पास प्रभु के अवतार ॥ ८६ ॥ शब्दार्थ टीका (विप्र ) ब्राह्मण (पूत ) बेटा (मरुभूत ) नाम (विचक्षण ) चतुर ( वधोपगा) हाथी का नाम ( गहन ) बन ( मझार ) बीच (कर) , देवता ( सहारश्मि ) नाम विद्याधर (अमरी) देवअङ्गाना ( भरत.र) पति [ मनुज ] मनुष्य ( अवयक) सौमे उ.पर स्थान है जो गिन्तोमें । सरलार्थ टौका १ भव में ब्राह्मण के पुत्र मरभूत नाम हुये २ जन्म में बबधोष नाम ह सी इये ३ भवमें देवता ४ जन्ममें सहनरश्मि नाम विद्याधर हुये ५ पचत नाम मोलवें स्वर्गमें देव अङ्गना पति भये ६ जन्म में राजा भये . मध्यम ग्रेवयकों में देवता इये ८ भानन्द कुमार राजपुत्र हुये Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মুখলিয়ন पानत स्वर्ग में इन्द्रहुये १० भव में जिनवर पार्शप्रभु ने अवतारहुये। राजा यशोधर के भवों का कथन . मत्तगयंद छंद राय यशोधर चन्द्रमतो पह' ले भव मण्डल मोर कहायै । जाहक सर्प नदी मधमच्छ अनाअन मैंस अना फिर जाये । फेर भये कुकडा कुकडी इस' सात भवान्तर मैं दुख पायै । चून मईचरणाय ध मारक' था मुन सन्त हिये नरमाये ॥ ८७ ॥ शब्दार्थ टोका ( यशीधर ) राजा का नाम ( चन्द्रमति ) राणो का नाम ( मण्डल ) देश ( मोर) पक्षीविशेष (जाइक सर्प) सर्प विशेष (अजा) बकरी (पन ) बकरा (क्षाकहा-इकड़ी) मुरगा-मुरगी (चूनमई) जून अर्था व भाटिया (परमायुध) मुरगा-कुकड़ा ।। सरलार्थ टौंका Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुपरजनशतक १.१ *ष राना यशोधरं पोर जिस की चन्द्रमति राणी मरकर महल में मोर और मोरनी पर्थात राजा यशोधर मोर हुये और चन्द्रमति राणी मोरनी इसी प्रकार पुरुष पुरुष स्त्री स्त्र २ बाइक म ३ मच्छ महतो ४ बकरा बकरी ५ भैसा भैस ६ बकरा वकरी ७ मुर्गा मुर्गी इस प्रकार सोत भव में दुख पाये रामा यशोधर के चुनका गुर्गा बना कर मारने का कथन सुन सन्त मम अपने हमें नरमाये । ___ - - सुबुद्धि सखी प्रति वचनोत्र घनाक्षरोछंद क है एक सखौ स्थानी; सुनरौ सुबुद्धि रानी, तेरो पति दुखी देख, लागै नर आर है। महा अपरा धी एक, पुग्गल है छहों माह, मोई दुख देत दो खे, नाना प्रकार है। कहत संबुध आलो, कहा दोष पुग्गल को, अपनीहि भूल लाल, होत आप खार है। खोटोदाम आपनो स, राफ कहो लगै और, काऊको न दोष मेरोभोंटू भरतार है ॥८८॥ ... शब्दार्थ टीका (सणी ) स्त्री [ स्थानी ] चतुर ( सुबुधि) भली बुद्धि वाली (पति) Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.२ ঘনঘন 'मालिक भर्तार ( भार ) कांटा (अपराधी ) पापो ( पुग्गल ) पुदगल द्रव्य छओं द्रव्यमें से एक द्रव्य का नाम है ( पालो ) सखी (सान ) प्यारो ( खार) खराब ( भोंदू) मूर्ख [ भरतार ] पति । - । . . . सरपथ टोका । एक स्यानो सखी बुद्धि रानीसे कह है कि हे सुवृद्धि रानी तेगे पति दुखो देखकर मेरे उरमें कांटासा सगै है षट् द्रव्यों में से एक पुदगल ट्रव्य महा पापी है सो मानौ प्रकार दुखदेता दिखाई देता है फिर स धुधि सखी ऐसा उत्तर देती है कि हेलाल पुदगलको क्या दोष अपनो भूलसे पाप जीव पराव होरहा है अपना खोटा पैसा सराफे बाजारमै क्योंकर चलै भावार्य किसो का दोष नहीं मेरा ही पति मूर्ख है। गुजराती भाषा में शिक्षा कड़का छन्द ज्ञानमय रूप रू, डो वनो जेह न, लखै क्यौं नं रे सुख, पिण्ड भोला । बंगलौ देहयो, नेह तोसों करै, एहनी टेब जो, मेह बोला । मेरनै मानभव, दुक्ख पाम्या पर्छ, चैन लाधो नथो, एक तोला। बलौ दुख वचन, बौज बावै तुमैं, पापयो आपने, Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजैनशतक आप बोला॥८६॥ शब्दार्थटीका (जानमय) ज्ञान का बना हुया (रूप) मूरति ( रूडो ) सुन्दर (जेइन ) जिसको ( लखें ) देखें (न) नहीं ( २ ) अरे ( पिण्ड ) गोला (भोला ) सीधा सादा (बेगलो) जुदी (नेह) प्यार ( एहनो) इस को ( टेव ) स्वभाष ( मेह) हमने ( बोला ) कही ( मेरनै मान ) अप नो मत माग [ पाम्या ] पाकर ( पर्छ ) पछतावै (लाधो पायोनिथी] नहीं ( तोला ) तोल का नाम (बली ) बलवान् (बावै ) वोवे ( तमैं आपथी ) तम पापही (पापने ) आपसे ( आपबोला ) हमनें कहा । सरलार्थ टौका परे सुख पिण्ड सीधे सादे तू पाप ज्ञान मूति सुन्दर बना है सी अपने ज्ञानमय स्वरूप को किस वासौ नहीं देखता देह तेरे से अर्थात् आमा से न्यारीथी तेरेसे नेह कर लिया इसका यही स्वभाव है जो हमने कहा इस देहको अपनी मत मानै भव दुःख पाकर पछतावैगा एकतोला भर भी चैन नहीं मिलेगा बड़े दुःखके पक्षका वीज तू भापही मतबोवै अ.पसे हमने कहा। द्रव्यलिङ्गो मुनि निरूपण कथन -- - मत्तगयंद छंद Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है १०४ মুঘৰজননী । शीत सहैं तन धूप दहैं तर, हैटर हैं करुणा उर आने । अटका हैं न अदत्तगह बन, तान घहैं लछिनोभनजाने । मौन बहैं पढ़भेद आहे नहि, नेम जहैं व्रतरोत पिछार्ने । योनिब हैं परमोखनाडौंबिन, ज्ञानपहेंजिनवोरबखानै 1601 शब्दार्थ टीका (हे। ) नोचै ( लछि ) लक्ष्मी ( मौन ) चुप ( ब ) रहैं ( भेद ) अन्तर (जहैं ) तोड़ें ( निषहैं ) गुजारे ( मोख ) मोच (पो) हुये। सरलार्थ टोका शीतकाल की बाधा सहैं और तनको धूपमैं जलावै वर्षा ऋतु मैं आपके नोचे खडे रहैं और दया मनमें लावै भूट बोल न बिन दिया माल लें न स्त्री चाहैं न लक्ष्मीका लोभ जाने चुप रहैं शास्त्र पढ़कर मैद सई ने म को तोड़ें नहीं और वतकी रीति पिछाने हैं मुनिकन ऐसे निवाहै है परन्तु विन ज्ञान हुये मोक्ष नहीं होती ऐसा वीर जिग वखाने है। . ~optioअनुभव प्रशंसा कथन घनाक्षरोछंद जौवनअलपआज,बुद्धिबलहीनतामैं, आगमअगाधसिन्धु, Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजेनशतक कैसेतहाडाकहै। हादशा मूलएक्ष, अनभीअभासकला, जन्मदाबहारौधन, सारकौसलाकई। यहांएकसौखलौंजे ,याहौकोअभासकीजै, याहीरसपोजैऐसा, बौरजिन बाक है। इतनोंहौसारयही, बातमको हितकार, यहौलोसँभा रफिर, आगेटूकढाकाहै ॥ ६१ ॥ शब्दार्थ टीका ( अलप) थोड़ा (आगम ) शान (अगाध ) गहरा (सिन्धु) समुद्र (डाक ) उछखना फलांगमारना (हादशा ) बारहभाग [मूल] जड़ ( अनुभव ) शुद्ध विचारना [ अभास ] छाया ( कला) पल (दाघ )ग रमो (घनसार) वादयका जल (सलाक) डण्डा (टूक ढाक) कुछनहौं । सरलार्थ टोका • प्रथम अम जीवना थोड़ा तिसयर बुद्धि बल करके होन शास्त्र गहरा स मुद्गहै फिर कैसे फलांगा नाय हादशाङ्ग वाणीकामूल क्या है उत्तम बि चार करने की सामर्थ सो जन्मरूप गरमीक दूर करनेको मेधी जलकी धार है यही अर्थात् अनुभव प्रभास सीख लीजिये और इसको का अ भास कीजिये और सही रस की पीनिये इस प्रकार बीर जिन का ब चनहै इतनीही बात सार और आत्माको हितकारी है सहीको संभा ललो आगे फिर कुछ नहीं है। श्रीभगवानसों बीनती Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ भूधरजनयतका -- -- घनाक्षरोछंद आगमभासहोय, सेवासरमजतेरी, सङ्गतसदीवमिलो , साधरमीजनको । सन्तनकेगुणको व, खान यह बानपर, मेटोटेवदेवपर, भौगुणकयनको । समहीसोंऐनसुख; दैन सुखबैनभाखो' भावना चकालराखो, आतमीकथनकी । जोल कर्मकाटखोल' मोक्षकेकाटतौल.' यहोवातहजो प्रभु, पूजोआसमनको ॥ ६२॥ . शब्दार्थ टौका ( सरवज्ञ ) सभ वस्तुका जानने वाला अर्थात् जिनदेव ( साधरमो ) ध रमामा पुरुष (टेव ) सुभाव ( ऐन) इबह (बैन ) वचन (भाखो ) बोलो (भावना ) इच्छा (नकाल ) तीनकाल (भातमीक ) अपनो पामा (कपाट ) किवाड़ ( पूनो) पूरो। सरलाई टीका . शास्त्रका अभ्यास होय और सर्वत्र देवको पूजा करू' और सदीव साधर मो जनोंको सङ्गत मिलयो और सन्तोंके गुणों के कान की बान परयो और परोये अवगुण के कथन का सुभाव भोदेव दूर करो और सब ही सौं अति सुखदेनेवाले बचन बोलो और तीनोंकान पातमीक धन की भावना राखो और भोप्रभु जबतक कर्म काटकर मोक्ष किवार खोलं, तबलग यही वात हली कि मेरे मनकी आशा पूरण करो। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মূলমন जैनमत प्रशंसा कथन दोहा छन्द छयेअनादिअज्ञानते' जगजीबनकैनैन । सभमत मूठौधूल को, अञ्जनजगभैजैन ॥ ६३ ॥ मूलनौकतिरनको' और जतनकछु हैन । सभमतघाटकुघाट हैं; राजघाट हैजैन ॥ ६४ ॥ तीनभवनमैंभररहे' थावरजङ्गमजीव । सभमतभक्ष कदेखिये' रक्षकजैनसदीव ॥ ८५ ॥ इस अपारभवजलधि मैं' ननिहिं औरइलाज । पाहनवाहनधर्मसभ; जिनबर धर्म जिहाज ॥ ६ ॥ शब्दाथे टीका (अनादिकाल ) वह काल जिसका आदि न हो १ हैनहैनहो [राजघाट ] बडाघाट २ (तीन भवन) तोन लोक ( भचक) खाने वाले (रक्षक) रक्षा करने वाले ३ (भव ) संसार ( जलधि ) समुद्र (पाहन) पत्थर (वाहन सवारी-नौका ४ । . सरलार्थ टीका संसारी जीवींकी पांख पनादिकालये अचानये छाई हुई हैं सार मत Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ भूधर जैनशतक धूलको मूठी हैं परन्तु जैन मत अञ्जन समान है १ भूलरूप नदी के तिर नेके लिये और कछु जतन नहीं है सारे मत कुघाट हैं परन्तु जैन मत राज घाट है ५ तीन लोक में चराचर जीव भरे हुये हैं सारे मत भवक दीखें हैं परन्तु जैनमत सदीव रक्षक है ३ इस संसार रूप अपार समुद्र में और वाकु इलाज नहीं है. किस कारण जितने पर धर्म हैं पत्थर को नाव हैं केवल जैन धर्म जिहाज के समान है । दोहा छंद मिथ्यामत केमदङ्घ्रियो' सभमतलिलोय । सभमतदातेजा निये' जिनमतमत्तनहोय ॥ १७ ॥ मतगुमानगिरपरचदै; वडेभयेजगमाह । लघुदेखें सभलोक का । क्यौंहों उतरत नांह ॥ ९८ ॥ चामचक्षुसोंसभमतो' चितवत करत नवेर । ज्ञाननेन सोज़ैनही : बोवतइतनोफेर ॥ ६६ | ज्यौंबभाज ; ढिगराखके' पटपरखैपरवीन । त्यौमत सेमतकोपरख' पा वैपुरुषचमोन्द्र ॥ १०० ॥ शब्दार्थ टीका [ भिष्या ] झूट (मद ) मदिरा (छिके) पेटभरके पिये ( सभमतवाले) सारमतों अर्थात् धरमों वलि (लोय ) लोग ( मतवाले ) मस्त (मत्त ) मस्ती १ ( गुमान ) मान (गिर) पहाड़ २ (च) आंख [चितवत ] देखकर ( नवेर ) नबेड़ [ जोवत ] टूडे (फेर ) फरक ३ ( बजाव ) क पंडावेचने वाला ( ढिग ) निकट (पट) कपड़ा ( परबीन) चतुर ) Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतको मौन ) पण्डित ।। सरलार्थ टीका भोर मत वाले लोग मिथ्या मतरूप मदिरासौं पेट भरे हुये हैं सभी को मस्त जानों परन्तु जिनमतमें मस्ती नहीं है १ मत मानरूप पहाड़ पर पढकर समारमें बडे भये हैं सारे लोकको तुच्छ देखेंहैं नीचे क्यों नहीं उत्तरते सारे मतवाले चामके नेत्रोंसे देखकर नबेड़ा करें हैं और जैनमत वाले ज्ञान के नवोंसे देखें हैं इतनीही फेरहै ३ जैसे चतुर बजाज दी कपड़ोंको अपने पास रखकर एक दूसरे को परखै है तैसे अमीन पुरुष मत को मतसे परख पावै है ४ । दोहा छन्द • दोबपक्षजिनमतबिध; निश्चैअरव्योहार । तिनपिनल है न । हंसयह शिवसरबरकोपार ।। १०१ सौम सौभै सोझहो; तौनलोंकेतिहु काल । जिनमतको उपकारसभा मतभ्रम करहुदयाल ॥ १०२ ।। महिमानिनबरबचनकौ' नहींबच नवजहोय । भुवबलसौं सागर अगम; तिरैम तारैकोय ॥ १०३ ॥ अपने अपनेपन्थको' पोखैसकलजहान । तैसेयह मतपोखना' मत समझे मतवान ।। १०४ ॥ इस असार संसारमैं, औरनसरणउपाय । जम्ममन्म. हूनो हमैं लिन बरधर्मसहाय ॥ १०५॥ . शब्दार्थ टीका Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ... भूधरजनशतक ( पक्ष ) तफंदारी (निश्चे) विखास निर्णय (ब्योहार) संसारी रीत ' ( लहै ) देखे ( हंस ) जीव ( सरवर ) तलाव (पार) पाल १ (सोझ) पक चुके ( सोमें ) पकेंगे ( सीमहि ) पकते हैं २ (महिमा) बडाई (जि नवर ) श्रोजिन ( अगम ) अयाह जहां ना न सके ( पोखे .) पाल (म तवान) मतवाले ४ (असार) पोला थोथा ( सरण ) सहारा [उपाय] यत्न ५। . . सरलार्थ टौका जिनमत विषे दो पक्ष मानीगई हैं निश्चनय १ व्योहारनय २ इन दोनी पक्ष मानेबिन जीव मोक्ष नहीं होगा १ जोपुरुष तीनलोक तीनकाल में पक जाचुके अर्थात् मोक्ष जाचुके वा जायगे वा जाते हैं यह सब जि नमतका उपकार है भीदयाल इस बात में मेरा वित्तमम मत कर २ जिनवर धर्म की बडाई कथनके वलसे नहीं होसकती जैसे भुज के बल सो अगम्य सागर को कोई भापतिरसके और न दूसरे को तिरा सके । अपने अपने पन्थको सारा जहान पालता है तैसे जैन मत पालना भो मतवान मत समझ ४ इस थोथे संसार में और कोई सहायक नहीं है। जन्मजन्म जिनदेव का धर्म हमें सहायक इजो ५। घनाक्षरी छन्द . आगर,धर्मबुद्धि' भूधरखंडेरवाल; बालककैख्यालसोंक' वित्तकरजानहै। ऐसे होकहतभयो' सिंघसवाई सूबा; हाकिमगुलावचन्द; रहैतिहिथान है। हरौसिंघसाहकसु' बंशधर्मरागौनर' तिनकैकईसे जोड़कौनौएकहानैहै। फि Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूधरजनशतक १११ रिफिरिप्रेरैमेरे आलसकोअन्तभयो' जिनकी सहाय यह मेरेमनमाने है ॥ १०६ ॥ शब्दार्थ टोका (आगरा) नगरका नाम ( भूधर ) कविकानाम ( खंडेर वार ) जिन का खंडेला वस्ती निकास है (थाने ) स्थान (मेरै) समझाना ताकीद । सरलार्थ टीका प्रागरे नगरमें वालक वुद्धि भूधरदास खंडेलवाल बालकपने से कवित्त जोड़ना जाने है ऐसेही गुलाबचन्द नाम जो सवाई जैसिघ सूवाके हाकिम इस स्थानमें रहैं हैं और हरीसिंध साहके वंश में धर्मरागी नर है तिनके कहने से मैंने यह कवित्त जोड़े हैं उनके समझानसे मेरे पालस्य का अन्त भया जिनकी सहायता मेरे मन माने है। दोहा छन्द सतरहसै इक्यासिया पोह पाख तम लोन । तिथतेरसरविबारको, शतकसपूरणकौन ॥ १०७॥ शब्दार्थ टीका (पाखतमलीन ) सष्णपक्ष का पखवारा। सरलार्थ टोका सम्वत् सत्रह सौ इक्यासी १७८१ पोष महोना कष्णपक्ष को तरस १३ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ भूधरजैनशतक रविवार को मैनशतक संपूर्ण करा। इति भूधरदास कृत मूलछन्दोबद्ध तथा च अमनसिंह कत शब्दार्थ। सरलार्थ टीकाभ्यामलङ्कृतश्च जैन शतकः संपूर्णः । फाल्गुणे शुक्लपक्षे विक्रमान्दै ॥ १६४७ ॥ MEENA Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ cccc अशुद्ध . शुद्ध पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध पृष्ट पंक्ति अन्य अल्प . १० खाय याय ३४ १२ ठक ठोक . ४ सावधाम सावधान ३७६ दर्मिला मिला . ७ ली लगो ३८८ खामा खामी ३ ५ धको धरेही ४० २ तातं तात ४ ४ कौलों कोनो ४१ ३ नककार नमस्कार ८ ४ उवर उवरी ४६ १० शनवान शीलवान ४ न नई ४८ ३ जश सहज १० १३ मेजा मैराजा ४८ महमा महिमा १२ १५ पचोखरों पंचोली ४८ करपत सुरपन १२ १६ छुडावहै छुपावहै ४८ १० अप श्राप १३ ४ सेवत सेमत ५१ १ कील केवल १४ ३ की जो ५२ १६ मी सो १४ १२ के के ५४ १. शात गीत १६ २ जेले नसे ५५ २ मौसस मौसम १६ १० कुगवा कुणबा ५६ ३ वाज भवाज २१ ८ जिसौं जिसमें ५६ असरा असार २४ ३ हि ही ५७ भरर शरीर २४ ११ सोमाय सोमाय ५७ ५ होवे बैंगन २४ १६ पति पण्डित ५७ देहक देहसे २७ २ मामा सामा ५७ प्रङ्ग अङ्गी ३१८ ससार संसार ५७ १४ भई भाई ३१ १६ . दोहा ५८ १३ सगै लागे ३२ ८ लखलेत तलख ५८ १० स्वा स्त्री १२ १२ कड़ा कोड़ा ६१ . सिवयं सिवाय ३६ २ अघले अन्धले ६३ ६ BEEEEEEEEEEEEEEEEEEE Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद 'शुद्ध निन नित्य पिरमा फिरभी पास है पयेहै अघट प्रघट दहन गहन त तुय ब O 4 1 प्रोत तुख रखने छप्पै छन्द पृष्ट पंक्ति अशुद्ध ६३ १२ राज १२ न नि ६४ ६६.७ ६७. १० ६८ ५ ईट ६८.१५ • का, धराज ववन धर्म शुद्ध , राजा, जिन जिन r! "पृष्ट अंखियां ७३ की " १७ १ १२ अधरज', ७५ १६ बरबचन '१०८' १४. बाल ११० १८ पक्ति ܕG ह Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . .. . . . . के नामंकिताव की नामकिताव की नामकिलाब नामाका नामकिताब श्रीमन्दागवतसमभा। काशीनरेसगोकल भीष्मपर्व-दोणपर्व वित्तरामायणमुलक पायकाळा बंवई नाथजीकृत . . . गदापर्व-शल्यपर्व कवित्तरमाय सदी श्रीमहाभारतसंसका ७ देवीभागवतभाषा-- स्त्रीपर्व रोमायणंगीतावलीमा "पावंबई . बार्तिकचारहस्संदा मानमवासिकमूस . रामा गीतावलीस • वालमीकरामायणसी। मोदेहरफ़ नपर्व "विनयपत्रिकामला : श्रीमन्दागवतश्रीधरीटी मुखसागरानी की सगारधनपवे: जाविनयपत्रिकासटी. कादिम्पनसहितमोटे-श) मन्दागवतभाशरमा तुलसीक्वतरामायण रामाय-पालको . , अमर मोटाकागन सुखसागरवारको मोटेशतरलेषकसहि भाषावार्तिक सरोश श्रीमहागवतनीधरौटी रहदनारदपुराण तुम्हारामा-कोड तसेहरेफश्लोकका काटिप्पनसहितछोटे / श्रीचारोहपुसणमा , नु छ रामायण रानतर्जुमाहा सक्षर-कागजमोटा । धापूर्वार्द्ध · . काडमयकोश : रामायणमानसमचार नीभन्दागवतसचर्णि-) श्रीवाराहपुराणमा, तुम्हारामायणका । रका सीमन्दावनसर्णि- . घाउवाई ... अचंबईवहतमोटाम विन्यपत्रिकामदा काटिम्पनभहितनईटी । शिवपुराणभाषा शासर-मोटाकागजा सकता भारतमारसंन्सलमाया अवतारकथानमन दिग्पनसहित, रामायणअध्यात्मवि • काळापासंबई गरुडपुराणभान्टी तुम्हा-रामायण चारसात्तोकाडजमना EM अध्यात्मरामायण : गरुड़ पुराणमान्टी कोडछापावंबई: संकरकात : 'वैद्यरत्नाकरसमूल : गर्गसंहितादोहाची तुम्छन्रामा काड बालकांड:- is भामाठीकायहपुस्तक ) उपदेशकमा टीकासुरवदेवकत अयोध्याकांड३७ अतिउत्तम हैं .. ब्रह्मोत्तरखंडभाषा ७ तुक-रामा सटीक भारुण्यकांडा । भागवतर्णिकामल ) विष्णुपुराणमावानिशा पं.रामचरनदासब-किष्किंधाकार्ड . सांबुशरण : * . भविष्यपुराणः ॥ १॥ कितावनुमा सुन्दरकांड - हरिवंशपुराण": गनेशपुराणभावाति-३) तुम्ही रामायणस लंकाकांड 00 • गर्गसंहिता " स्कंदपुराणसेतुन-दीकरामचनकात उत्तरकांड: MAY रामाश्वमेधसम्म भारी) हात्मखंड खुलेपत्रोंकी: " अदुतरामायण दशमस्कंदभागवतसं महाभारतसवासिं तुक-रामायणसः पदरामायण ॥ मूलभाषाटीकामथुरा, हौदहपर्वछपेहैं. सुखदेवकतरंबुलेप सीताबनोवास विष्णुसहस्त्रनाममानी । भादिपर्व : तुकारामायणसा: रामविवाहउत्सव अनंतकथामाषाटीका सभापर्व छापामेरतबड़ीसांची राजविलासलापदि . टत्तारक भोपाटीका ७ बनपर्वः अवहतमोटारेटजविलासला मेर) मार्कडेयपुराण 105 विराटपर्व सीरामायणाजतको रामावसेंधमा होचाया · महामारतहोंहाचौपाई :उद्योगपर्व महिंदुस्तानमैनहींछपी) रजविलाससारावली Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामकिताव की नामकिनाव की नामकित्ताव की नामकिनाव की सहजनकाश विजयमुक्तावली भुजरियाकीलाई ७ वैद्यमनोत्सव ज्यानसरोधा : छन्दार्णवपिंगल माडोकीलड़ाई 5 वैद्यकप्रिया' - 19 शिवसरोदा कविहृदयविनोद मलिवानकीला दिळूलगन 3 याग्यवल्क्यस्मृति ) अनुरागलतिका मालामनुभाकील - निघंटरनाकरमाचा वीजककबीरदास माविलास . औरसवलड़ाइयां संपूर्णम् :: ग्रंथचरनदासमाषा सदावहारभनेकराम अलहदा मिलती है. : औषधिसारयूनानी। 'पारसभाग : २१ रामपंचाध्यायी ७ औरसरोवर वैद्यकसार': विचारसागररत्नाव रुक्मिनीचरित्रदोजी सुधबुधसालिंगा 5. व्यंजनप्रकार:: 5 जीसहितयीतावरक रामायणकीमें 5 सालंगासालेराव वैद्यरत्न : वेदांतविचार · ७ हीरांझामूलनों में डाचारभाग . . " पुष्टिविधान अति ५. निगरपतीप्रकाश, हरदिलमनोज ३ बालकांड: । उत्तमनवीनरंथहै स्वामीब्रह्मानंदनी रामविलासइसमें , अयोध्याकांड ७ स्त्रीचिकित्सा विदुरमजागरभाषा रसधारियोंकीली. भारुपकाड. ॥ वालचिकित्सामा ॥ प्रश्नोत्तरी : ७ रागचमन । • किष्किंधाकांड : 7 सालोबछोटो विचारमालासटीका राजविहारचा भाग सुन्दरकांड अौषधिसुधातरंगि- आत्मपुराणभाषा शुमन्नतिका ७लकाकांड : 'ॐ सालोबण्डातर्जुमा ग्यानकटारीग्यान होलीदिलचमनक्षेपककाड • •जिन्नतठलखेलना प्रकाशगिरधरकुंड: "करनफाग - ::. उत्तरकांड : सवीरदार ... राधवपंचरत्नइस- वसंतवहार : रामाश्वमेध आभावप्रकाशसरल मैंमबोधचंद्रोदयना) [चरागकामयमभा-5 रामकलेवा : भाषारविदतकृत न्यायमकाश · ७ तथादूसराभाग 5 रागरनाकरकाका वैद्यजीवनसठीक ७ कविषिया • • गुंचेरागमाला . ७ रागमालाप्रथममा-चालचिकित्सास-3 कविमियासदीक. 5 दिलदारपचीसी. उत्थाइसराभाग सारंगधरसटीक ... सूरसागरमोटेअसर, गुलशनरागहिस्से मौसलमसितार छापालखनम: । सवालासपूर्ण मालवंड ५२लड़ाई. वीनाप्रकाश .:. माधवनिदानसटी ॥ सूरसागरकोटामस र छापामेरट" नगमै दिलकशष योगचिंतामनिवड़ी सरसागरसारइसमें आलरखंडालड़ाई, यमभाग छायामधुरा ११ भी हजारभजन कापामेस्तनयाापा अमृतकोबूंद भावप्रकाशसंन्मू, रसिकग्निया : आलस्वड लड़ा: प्रेमलतिका भाषादीका : B :: विनामसागर. ० ईछापाआगरा '.. पावसकेलच्छे १. वैद्यरत्नाकरकापा.. ... प्रेमसागर : 15 झालखंडकीमलः - दुसरा भाग:". मथुराइंसमेंचरक । , कश्नमिया हदारलडाईभी औषधिसंग्रहकर :" सुश्रुतवाग्भहभाव मसरोबर, 5 मिलती हैं: . . . पवल्ली - .:: 5" प्रकाशमादिग्रंथो.' पत्ता इनकितावोंकेमिलनेका लालानारायणदासजंगलीमल (देहली) दरीवाकलं Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाड़ीप्रकाश हंसराज निदान चित्र सहित वैद्यक केलं घों में परीक्षाके लिये अतिउत्तम है संस्कृत मूलभाषाटीका रसराजसुंदर प्रथा .... 5 ॥ शरीररतन धातुप्रकाण्ड कपी हैं हातौं हाथ-: लघुतिव्वनिर्घट 5 विकतीचली जाती तिव्बरतन डाकरी | हैज़रूर मंगाकर दे मुज़रवादबशीर पाक रत्नावली अर्थ खनी चाहिये... महूर्तचिंतामणि सारणीमहूर्तचिंतांमं मानसागरी रत्नपरीक्षा · नारदसंहिता रिसाले सतरंजइसमें सतरंज कापूराश्खे 5 · ''''' तथा दूसरा भाग ७) निवासी कृतं छपता है अनुपानचिंतामनस-ॐ वाग्भट्टभाषा टीका चिकित्साकल्पद्रुम 15 छापा बंबई : वैद्यक कल्पद्रुमछा• रसायन प्रकाश बबई भाषाटीका..: रिसालैगिलटप्रभा माधौनिदान मूल 1 दूसरा भाग इसमें हर श्रीरणवीर प्रकाश ७) तरहके मुलम्मेचढ़ा व्यगुण वाग्भटका नेकीरात लिखी है एकभागापाकल मुजरवानसंनतकारी २) कत्ता इसपुस्तक में तरह वकसैन कापा कलक. १०) के मुलम्मे चढ़ाने की *आतमप्रकाशभाषा ॥ रीतिपौर मातिशवा इलाजुलगुरुवा• जी रंगरंगकी बनाना इंलाजिसमानी ) औौरसवतरहकेरन रिसालै आतिशक- हीरामोतीपुखराज सौनाक - ॐ नीलम ग़ैरहवनाना अर्क प्रकाश रिसाने और हरएक चीज़ को तिव्वप्रभाकर तर्जु साफ करना और धो मात्तिन्वषफी " ना पुरानेकोनयाक - तिलस्थानः प्रजायव | रना-गरजैं किकुल निव्वहसांनी हिंदुस्तान की कारी जरीही प्रकाशप्रभा गरी लिखी है मान तथा दूसरा भाग 3 तक ऐसी पुस्तकनथानीसरा भाग 3 | हिन्दुस्तान में नागरी मीना तिव्व नागरी - 10) में नहींछपी पूरा करावादीन सफाई 12 हाल पुस्तककेंदेख 'तिब्बराकर तर्जुमानेसे मालूम होगाये करावादीनऐहसानी पुस्तक बहुत थोड़ी व्यंजन प्रकार बड़ा पंडतदत्तराम मथुरा • + 1 ७ लहै .. क्रीड़ा कौशिल्याइ के उत्तर लिखे हैं ये पुस्तक नवीन कपी है, साठासाई इसमें हर 3) संबत कानाम और उसका फलविस्ता रपूर्वक लिखा है... चकावली प्रश्नका 15 अतिउत्तमगंथ है जिसमें सब प्रकार भवन दीपक भाघाटी ) के प्रश्न मिलते हैंगृहमुहूर्तसिंधुका दोभाग हैं. पाबंबई रमल जोतिषसार- : मुहूर्तसिंधूकापा -,,, भाषा अर्थात् मळ ) "चाहौर: नवरतन बृहत्पारासरीनोति०६) रमल नौरतनभाषा पल्लीपतन टीकासमूलकापा -15 सामुद्रिक मथुरा भडलीकृतशकुंनाव ग्रहणावली 5 भडलीकृत बडीका... जोतिषविचारभा.." प्रतिउत्तम पाबंबई : भृगुसंहिता कापामे : गृहज्योतिषार्णव ) कुंडलियों सहित महूर्तचिंतामन संग मूल भाषा ठीका , ७ ७ enews रमनजोतिषनन्म र प्रश्न वगैरह जोतिषसार बड़ा में) से मूल भाषाटीका :.. पत्ता इन किताबों के मिलने का लाला नारायण दास जंगलीमल कुतुब फर्राश (देहली) जोतिषसारका भाग: राबड़ा संग्रह शिरोमणिका.. समें तरह के खेल गंजफा सतरंज- ची सर औरसवप्रकार के है छापाबंबई पियूषधारा महूर्तचिं नामणि 1. '७ का फड़कने की परी सावरको ईप्रका की परिक्षा प्रश्नों i) लखनऊ बहुत उत्तमः भाषाटीका २) रमलसिंधुभा मे 1) 1) तिलपरीक्षा 5 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वागमहलाहबड़ा रख-छोटार्कथ:- " तथातीसराभाम...39:भाषापढ़नाअच्छा : 'स्वांग रूपबसंतःः ७ ख रिसालू :: :जा तथाचौंशभाग: जाता है : : स्वान्सपलसंतबड़ा खसींगीवाला । फ़रतअफ़ज़ा' डा ख़ुशरंगवहार 'स्वा पूरतःख छैलापनिहारी-m भार्या हित: गणिताभ्यासहि.. वो पूरन वड़ायाखलासुलतान स्वीदर्पण सियाचे ऊ सावकीपुस्तक-. लकराम कृत :: काबड़ा, "द्विका इसपुस्तक त अच्छी है ... . स्वा बदरैमुनीर: २ ख गादी के पढ़नेसेमावाप चितचंद्रिका ः . तोतामैना इसकि, ख बेला : दनालड़कियों को : 'इम्दादलीगणित । नावके आठहिस्से; व जेमलता अच्छीतरह सासका. अमरकोशसंहैंइसमें तोतामेला... खःमतसिंह: हैइसमें अच्छीरक भाषाटीका-: " काकिस्सानाविले:- खबालइनकेसि : हानी हैं एक पुस्तक : भमरकोशमल दीद है कीमत फ़ी: वायौरवहुत हैं. ज़रूरहीमगानीचा भाषारीका हिस्सादोभाने हैं। वर्णमाला: जज हिये कसत्ता दुर्गापानभाषाटीका वांगसुलोचनाला संस्कृत प्रवेशनी लक्ष्मीसरखनीसंवा.सारस्वतचंद्रकीर्तित खयाल राजाभरतरी गणितमकाशम भागदप्रथमभाग, सटीककापावंबई खबाजौहरीबच्चा , तथादूसराभाग हा स्त्रीहेतुपरोक्षात७. : मदनपारजातनि खु बीरविक्रमाजी विद्यासारइसके मामुलीदुबइंन्सा, "समें चारोवर्णके ख. गोपीचंद पढ़नेसें हिन्दीका स्वीअनुशासनमय धर्मकर्ममेंचा '.. खपनावीरमदे ॐ वहीरवातावहुत : मभागः मामामालिखे हैं : एक राजा हरिश्चन्द्र-छ अच्छी तरह से भार मिताक्षरासपूर्णपय मनुस्मृतिसं माल : ख-राजा अमरसिंहाडी सकता है. भाषाटीकासहित तर्जुमाई रख-राजानला गणितकामधेन-डत दुसमसाल्या . यजुर्वेदसंहिताको .. रख दयारामधाहनी म सेठलक्ष्मीचंदन, गरादिवासीसारही नसनेही) सर्वानुः । ख-पिंगलासती: ७ इसमें तरह-की- कारचाभया: ::. भन्मणिकायाग्यय. ख-डूंगरसिंहजवाहप सिलावदजवाहराः तर्जुमाझज्ञायबुल अल्पशिक्षासहितः । रख बनजारा 5 तकी है • भरवन्नुकात: मंत्रसंहिता रख होररांझा विद्यार्थीको मापुस्ता भजनप्रभासी: ५ रुद्री vi ख-मोरध्वज हितोपदेशसंस्कृतः सुदामाजीकेभजन दंडकयंजुवेदी ii खणहजादा मूलभाटी मिनप्रभा गंगाजीकेभजन 5 वेदस्तुनीटीकामा ख-महदीवाला शब्दार्थभानुकोश महलादजीकेभजनः परपुराणकालमी": . ख.नागौरी महाजनीसारभा-5 जियालालहतो हाथकालिखाया रख प्रहलाद : ॥ तथादूसराभाग : दयारामगूजरगडा आदिसेअंततका १०७) खरंगीलीमालन- ॥ तथा तीसरामांगदोहावलीरामायण. पूर्णमोगलसरमोटेका : र मनियारी बहारवजाममा तुलसीकता : राजपथ्यधुरसका रखमाबेटा.:: ॥ तयाइसराभागाः जा सुगमा पुस्तकइससे दिखाया । Page #127 --------------------------------------------------------------------------  Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PR बिज्ञापन । E समस्त सज्जनोंको बिदितहो कि वर्तमान में डा तरी हकौमीके इलाजोंसे एतद्देशीय धर्मात्माओं का धर्म चौड़ेमे लुट रहा है, अतस्तट्रक्षार्थ दिल्ली नई सड़क घण्टाघर के समीप भारद्वाज,,औषधा लय खोलागया है इसमें अपनो देशोय औषधा वै द्यक विद्याके अनुसार और प्रत्येकरोग को हुकमी কি লাঘব্দাত্তী অভী মুজি কাফ নার্জী স্বৰীৰ কি रोगियोंको वेदाम और तालेवरोंको थोड़ासादाम लेकर दईजाती हैं। और "भारतोत्यापन,, पुस्तका लय मैं 'चतुरसखी, ललित उपन्यासबादि अनेक र भाषा वा सँस्कृत के पुस्तक तयार हैं, जिन महाशा यों को औषध वा पुस्तकों के विषय पत्र भेजना होवे निम्नमुद्रित पवेसे भेजें यहाँस कागजात भेजे जावेंगे । और एक मारवाड़ीमित्र नामका मासिक पव देवनागरी भाषा में प्रकाश होता है बे मू ल्य केवल डाकव्यय 10 पर यहभी देखनेही जान यक है। पण्डित काशीनाथ विश्वनाथ व . महोला पामिलौ चौराहा (दिल्ली) . Aamya Page #129 -------------------------------------------------------------------------- _