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१०.
भूधर जैनशतंत्र
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सिंहावलोकन अलङ्कार छपैकन्द
जन्म जलधि जलयान, ज्ञान जन हंस मानसर । सर्व इन्द्र मिल आन, चान जिस धरें सौंस पर । पर उपकारौ वान, वान उत्थप्य कुनय गणं । गणसरोज वन भान, भान मम मोह तिमरघन । घन वर्ण देह दुख दाहहर, हर्षत हेत मयूरमन । मन मतमतंग हरि पास जिन जिन विसरहु छि
न जगत जन ॥ ८ ॥
शब्दार्थ टीका
(जन्म) उत्पत्ति (जल) समुद्र (जलवान) निहान ( जानजन) जान वान मानसर) तालाव विशेष नहंस रहते है (सर्व) सारे (इन्द्र) देवता वोकेराजा (आन) आनकर (आन) दुहाईसोमन्द आशा (पर) पराये (ठ पकारी) भलाकरने वाले (वान) जहनसुभाव (बान) तीर (उत्यपर) उ खेड़नेवाले ( कुनय) खोटायुक्ति (गण) समूह ( गण ) मुनियोंको मण्ड ली ( सरोज) कमल (भान) सूर्य (भान) तोड़ (मम) मेरा ( तिमिर) अन्धे रा (धन) समूह ( घन) बादल (वर्ण) रंग (देह) शरीर (दाह) जलन(हर) झरनेशले ( हरवतर्हेत ) चानन्दर्य ( मयूर ) मोर मनमघ) कामदेव [ मतंग ] हाथी ( हरि सिंह ( पास जन) पार्श्वनाथ जिनदेव (जि) जिसे ( भविसरड ) मभूलो ( छिन ) पल ( जगतजन) ससारोजीव
सरलार्थ टोका