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भूधर मशतक
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लोग हार खरे, मारग निहारते । यान नढे डो लते हि; भीने खर बोलतेहि, काडको तो ओ रमेक नीके न चितारते । कौलों धन खांगे तेल, कहे तो न जांगे तेड, फिरें पाय नांगे कां
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गे, पर पग भारते । एते पै अयानागर; भानार हा विभोपाय, धृग है समझ तेड, धना संभा रते ॥ ३४ ॥
शव्दार्थ टीका
( कंचन ) सोना (भंडार) कुठियार (पुंज) समूह ढेर ( द्वार) द रवाजा ( मारग ) रस्ता ( निहारते ] देखते ( यान ) सवारी [ भी मे) इतके मुलायम (नेक) तिनकभी ( नीके) भलेप्रकार ( चिता ते ] चितवनकरते ( कोलों ) कबतक [ तेच ) तेपुरुष (पायनांगे ) नांगे पाव [ कांगे ) कमले ( एतेपै ] इतने पर ( अयाना ] भोला अनजान ( गरभागा ) मानवाला ( विभो । संपत्ति
सरलार्थ टोका
Woh कुठियार भरे और मोतियों के ढेर पर बहुतसे मनुध दारे खरे र 'स्ता देखते सचारो पर चढे हुवे फिरते धीमे बोल बोलते किसीकी घोर farait raप्रकार न चितवन करते कब तक धनवांगे धन निवर ना गा फिर ऐसी गति होगी कि कोईनामभो उनका नलेगा और परायेपै दाड़ते फिरेंगे इतने पर अज्ञान संपत्ति पाकर मान वालारहा तिन