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भूधरजैनशतक उपद्रव रहित पर छिमारूप धुवनी बिना क्रोध रूप भूत डरैगान टरेगा और कोमल भाव उपाय बिना मानरूप महामद को कौन हरै गाभार्जवरूप सार कुहाडे बिना छलरूप वेलको कौन उखेडगा सन्तो • षरूप शिरोमणि मंत्र बिना पढे लोभरूप सर्पका जहर कैसे उतरेगा।
मिष्ट बचन बोलन उपदेश
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मत्तगयन्दछन्द काइकु बोलत बोल बुरै नर, नाहक क्यों यशधर्म गमावै । कोमल बैन चबै किन अनल, गै कछु है नसवैमनभावै ॥ तालु छिटै रसनान विधै नघ, है कुछ अङ्ग दरौद् नःआवै ॥ नौवक है जिया हान नहौं तुझ, जी सब नौवन को सुखपावै ॥ ७० ॥ .
शब्दार्थ टीका (काईकु) किसवारस (बैन ) बचन (च) बोले (किन ऐन ) क्यौन हौं (सगैकछु है न ) लगे कुछ नहीं (तालु ) तालवा ( रसना ) जीभ (अ) गोदी (जीव) मामा (जिया) जीवकी (जी) पामा जान
. दार।
सरलार्थ टीका