________________
सुधरजैनशतक . वैहै तहां गुरु पहरे वाला दयाकर ऐसे मुकार है कि भाई ऐसो भक स्था मैं गाफिज न इजिये जागरे वठेउ जहां चोरोंकाडर है।
चारोंकषायजोतनंउपासनयन
मत्तगयन्द छंद छम निवास किमाधुवनी विन; जोध पिशाव डरे न टरैगो । कोमल भाव उपाय बिना यह; मान महामद कीन हरैगो । श्रार्जव सार कुठार विना छल' देल निकन्दन कौन करेगो।तोष शिरोमणि मन्वपटेबिन लोसफणी विष क्यों उतरैगो ॥६६॥
शब्दार्थटीका (छैम ) उपवरहित (निदास ! वाह (विमा ) क्षमा प.ये हुवे दुःरू कासहमो ( श्रोध ) गुस्सा (पिशाच ) भूत प्रेत ( मान ) गरूर (हरैगो) दूरकरैगो (आर्जव ) छलरहितपन सुशीलता (सार) लोहा फौलाद (बुठार) कुहाड़ा (निकन्दन ] उखेड़ना (तोष ) सन्तोष सबर (फ चि) सर्प विष ] जहर।
सरलार्थ टीका