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भूधरजैनशतक
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घनाक्षरी छन्द
जौ लों देह तेरौ काउ, रोग नैं न घेरी नौलों; जरा नांह मेरी जासों, पराधीन परि है । जो लों जम नामा बैरौ; देय न दमामा जौलों, मा नैचान रामा बुद्धि, बाघ नर है । तौलों मित्र मेरे निज, कारज समार धोने; पौरुप थ केंगे फिर पाछै कहा करि है । अहो आग आ के खुदाये त
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वैजब झोंपरौ नरन लागे,
ब, कौन कान सरि है ॥ २६ ॥ शव्दार्थ टोका
( जोलों ) जवतक (जरा) बुढ़ापा ( मेरो ) नजीक ( परा धन ) पर वश (दमामां ) नगारा ढोल (रामा) स्त्र । ( तौलों ) तबतक ( पौर घ) पराक्रम
सरलार्थ टोका
अवतक तेराशरीर किस रोग नेम हीं वे रावुढ़ापा निकट नहीं पाया जिस से परवश हो कर पड़े और जबतक यम राज आकर अपना ढोल नवजा बे अर्थात् मौत न घावे अथवा स्त्रो जब तक तेर। श्रन या काम नमाने पोर बुडोविगरे नहीं तव तक मित्र अने काम समार लानि से परा