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________________ भूधरजेनशतक लोहमई कोट कई, कोटन की ओट करो, कांग रनतोप रोप राखो पट भेरके । चारों दिश चेरा गण; चौकस होय चोंकोदे, चई रङ्ग च चहों, और रही घेरकै ॥ तहां एक भोहराब; नायबीच बैठो पुनि, बोलोमत कोउ जोबु, लावैनाम टेर के ॥ असौपरपञ्च पांति, रचो क्योंन भांति भांति, कैसे हूँ न छोड़ो हम, देखो यम हैर के ॥ ७३ ॥ . शब्दार्थ टीका है लोहमई ) लोहेकी बनी हुई ( कोट) सफीस ( कॉमरा) किलेका के गरा (पट) किवार (दिश ) भोर तरफ (चेरा ) चेला ( गए ) समूह ६. चीकी ] पहरा (पहरणचमू ) चार प्रकारकी सेना रथ १ घोड़ा २ हाथी ३ म्यादा ४ (चई भोर) चार तरफ [ भोहरा ] तहखाना (प अपञ्च) छल माया धोका (पांति ) पङ्गति (भांत ) सरह । सरलार्थ टीका सोहके बमे दुवै कैयक कोटको भोट करो और किवार भड़के कांगरन पर तोप राखी और चारों ओर चेनौका समूह चोकस होकर चौकी दे और चतुरङ्ग मैना चारों तरफ घेर रही है तिस स्थान मैं एक भोहराव • नायकर वैठगयो और यह कहदिया जो नामलेकर वुमावै तो मत बो लो हे भाई चाहे ऐसी छल वा मायाको पङ्गति क्यों न रची परन्तु समः मैं यह देखा कि यमराज मैं हेरकर किसीको भी नहीं छोड़ा।
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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