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भूधरजेनशतक
सरलार्थ टीका
जस्को बारे पदार्थ ममार के हथ लो मेरी दिखाई देते है और अंसारी जीवों को संसार समुद्र के पार उतारते हैं जिनके अविरोधी बचन आदि अन्त मत्रको सुख दाता है और जिस मांह अनन्त गुण है काऊप्रकार के दोष का चिह्न नहीं है ब्रह्मा विष्णु महेश महावीर वा बौद्ध कोई होय जिसमें लक्षण हों उस के चरणों को नमस्कार वारूह वह देवहे
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यच्च विषै जीव होम निषेध
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घनाक्षरी कन्द
कहें पशु दोन सुन, यज्ञ के करैया मोहे, होम तान में, कौनसी बडाई है । वर्गसुख में
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न च, देउ मु य न कह, घास खायरह मेरे, यही मन भाई है । जो तू यही जानत है बंद यों बखानत है, यज्ञ नलो जौव पाबै, खर्ग मुखदाई है । डारें क्यों न वौर जामैं, अपने कु टम्वही को, मोहे क्यों जारे, जगत, ईश कौ टु हाई है ॥ ४७ ॥
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