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१६ भूधरजैनशतक
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घनाक्षरी छन्द शोत क्तु जोरै तहाँ, सबही सकोरे अङ्ग, तन को नमोरै नदि, धोरै धौर जे खरे । जेठ की भकोरे जहाँ, अण्डा चौर छोरै पशु, पचौ छ। हलोरें गिर, कोरै तप ये धरे । घोर धन घो रै घटा, चहीं ओर डोरे ज्यौं व्यौं, चलत हि लोरें लौं त्यौ, फोरें वल वे अरे । देह नेह तो पर, मारथ से प्रीत जोरे, ऐसे गुरु गोरें हम, ाथ अञ्जलि करे ॥ १३ ॥
. शब्दार्थ टीका रशीत ) जाडा (ऋतु ) फासल मौसस समय (जोरै) जोरपर (सको है) समेटें (धीर) साहस संतोष (जे) साधू (जेठ) गरीपम 'महीनेकानाम (भाकोरे) लू - झकड़ (भण्डाचीलछोरे) यह बातप्रसिद्ध है के अति गरसीमैं चीलअण्डा छोड़ती है (पशू)चतुष्पदजीव (पक्षी) पर उड़ने वाले जीव (लोरै) चाहैं (गिर) पहाड़ (कोर.) सिरा प हाड़ को चोटी (धोर) वड़ा-भयानक (धन) बादल मेघ (धोरै) गरज (चहुओर डोरे) च्यारों तरफ चलें ( हिलोर) बादल की ल हर ( फोरे बल) बल खोले अर्थात प्रगट करे (ये ) साध । अरे )