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भूधरजैनशतक (पवि) व बिजली(भवि) भलेपुरुषारविराय] सूर्य कंचन सोना [छवि] । शोभा(कवि) कवित्त कर्ता बीरजिना महावीरखामी
भरलार्थ टीका
कम्मरूप टूढ पहाड़ के तोड़ने के वास्ते आप वजहो और कमसरूप भले पुरुषों के लियेसूर्य हो सौने कोसोभापकीशोभा है मैं कवि हाव जोड़ कर महाबीरखाभी के पायों को नमस्कार करू हो
पोमावति छन्द रहो दूर अन्तर को महिमां, वाहय गुण वर्णन बल कापै । एक्ष हजार आठ लक्षण तन; तेज कोट रबि किर्ण न तापै । सुरपति सहप्त आंख प्रचलि सौं, रूपामृत पौवत नहिँ धापै। तुमति न कौन समर्थ दौर जिन, जगसौं काढ मोख मैं थापै ॥ १० ॥
. शब्दार्थ टोका .. (अन्तर) अंदर (म हमा) वड़ाई (बाहय) शहर (का)किसपै(लक्षणचि नह(तेज) चमक (कोट).करोड़ (तापै). तिसपर (कुरपति) इंद्र (सहस) हजारअनलौदोनोहायोंकेपंजों को आपस में मिलाना ऐसी तरह जिसमैपानी भादि बस्तुलेते है. [मोख) मोक्ष [चाय स्थापन करे।