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________________ মূলমন जैनमत प्रशंसा कथन दोहा छन्द छयेअनादिअज्ञानते' जगजीबनकैनैन । सभमत मूठौधूल को, अञ्जनजगभैजैन ॥ ६३ ॥ मूलनौकतिरनको' और जतनकछु हैन । सभमतघाटकुघाट हैं; राजघाट हैजैन ॥ ६४ ॥ तीनभवनमैंभररहे' थावरजङ्गमजीव । सभमतभक्ष कदेखिये' रक्षकजैनसदीव ॥ ८५ ॥ इस अपारभवजलधि मैं' ननिहिं औरइलाज । पाहनवाहनधर्मसभ; जिनबर धर्म जिहाज ॥ ६ ॥ शब्दाथे टीका (अनादिकाल ) वह काल जिसका आदि न हो १ हैनहैनहो [राजघाट ] बडाघाट २ (तीन भवन) तोन लोक ( भचक) खाने वाले (रक्षक) रक्षा करने वाले ३ (भव ) संसार ( जलधि ) समुद्र (पाहन) पत्थर (वाहन सवारी-नौका ४ । . सरलार्थ टीका संसारी जीवींकी पांख पनादिकालये अचानये छाई हुई हैं सार मत
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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