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पूर है सी हे मित्र ऐसी अवस्था में बोजपरवरणम करी काईकी चेरि मराह
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बृद्ध दशा कथन
मत्तगयंद छंद दृष्टि घटी पलटी तन की छवि, वसभई गतिल छनई है। रूस रहो परनौ धरनौअति रकभयो परयस लई है। कम्पत नार बहै मुख लार, म हामति सङ्गत छाड गई है। अङ्ग उपङ्ग पुरान भये तिश, ना उर और नबीन भई ॥३८॥
शब्दार्थ टीका (दृष्टि) नजर (वि) रूप (बङ्ग) बांकी (गति) पाल (E) कमर (नई) बाँको टेडो ( परनौं) व्याहीहुई (घरनी )त्री (पति ) बहुत (र) मोहताज ( परयच )! मेल खाट (भार) गरदन (नार ) रात ( महामत ) उत्तम बुधि ( संगत ) साथ (अंग)
रके बड़े टुकड़े जेसे हाथ पैर (उपङ्ग ) भरीर के छोटे टुको वेष गुबी नच पादि (तिमना ) नष्णा चाहत (घर) दा ( मबीन )नई