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________________ भूधरजैनशतक सब याते, नेत्र नासिका अनी धरे हैं। कहासुने काननकाननयों, जोग लौन जिन राज खरे हैं । ३ शब्दार्थ टोना (कर) हाथ ( कार्य) मास (तातं तिमयर्थ (पाणि ) हाथ ( प्रलंच लंबे (पैबो) चलनो (पद) पैर (निरख) देख (नैन) नेत्र (नेत्र ) श्राद (नोसिका) नांक (अनो) नोक ( कोमन) कानो मे ( कहा ) क्या (क नन) बन (लीन) डुबाहुवा अशक्तों (जिन राज ) त्रादि नाथ स्वामी सरलार्थ टीका हाथ से कछु काम करनो बाकी न था इस कारण हाथ न्तं वे कर दि पायों से चलना न था इस कारण पांय नहीं डिगे आंखों से सब कुछ देर चुके थे इस कारण प्रांखों को पाक को नौक पर लगादई ( नाक की नोट पर दृष्टि डोलकर ध्यान लगाना एक रीति जोग को है ) कोनों से क्या सुन कुछ सुन्ना बाकी न था इस कारण आदिनाथ खाली जोग मैं लीन होक बन मैं ध्यान लगाये खर है छप्प छंद जयो नाभि भूपाल बाल, सुकुमाल सुलक्षण । जयो खर्ग पीताल, पाल गुमामाल प्रतिक्षण । हगविशाल बराल, लालनखचरणबिरजहि । रूप रसाल मराल, चाल सुन्दर लख लज्जहि । रिपुजालकालरिसद्देशहम,फसेजन्मजबालदह । यातनिकाल बेहालअति,भोदयालदुखटालयह४
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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