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भूवरजैनशतक
सरलार्थ टीका . पान्तिनाथ जनेखर जगतके ईश जैवन्ते रहो पापरूप गरमौंको चंद्रमा मो समॉन हरैहैं देवता और राक्षस आकरआप के पैरों को सेवाकरे है भौर धरती तक सिर निवाकर नकस्कार करें हैं आपके कटसे जोनीलम जवाहरचमक रहा है उस्काप्रतिबिम्ब जोचरणों परभलके है मानों पाप भी कमत रूप चरणों की सुगन्धीलेने को भीरोंको मण्डलीमाई है...
-~~ohtoश्री नेमिनाथ सामी को स्तुति
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घनाक्षरी छन्द . .. : शोभित प्रियंग अंग, देखे दुख होय भंग लाज त धनंग जैसे, दीप भानु भास तैं। बाल ब्रह्म चारी उग्र, सेन को कुमारी जादों, नाथ से नि कारौ कर्म, कादो दुखरास तैं। भीम भव का नन मैं, मानन सहाय खामी, अहो नेमिनामी तक, आयो तुम्हे तासते । जैसे कमाकन्द बन,. नौवन को बन्द छोडि, योहि दास को खला 'स, कौजे भव फांस ॥ ७ ॥
शब्दार्थ टीका