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भूधर जैनशतक
धूलको मूठी हैं परन्तु जैन मत अञ्जन समान है १ भूलरूप नदी के तिर नेके लिये और कछु जतन नहीं है सारे मत कुघाट हैं परन्तु जैन मत राज घाट है ५ तीन लोक में चराचर जीव भरे हुये हैं सारे मत भवक दीखें हैं परन्तु जैनमत सदीव रक्षक है ३ इस संसार रूप अपार समुद्र में और वाकु इलाज नहीं है. किस कारण जितने पर धर्म हैं पत्थर को नाव हैं केवल जैन धर्म जिहाज के समान है ।
दोहा छंद
मिथ्यामत केमदङ्घ्रियो' सभमतलिलोय । सभमतदातेजा निये' जिनमतमत्तनहोय ॥ १७ ॥ मतगुमानगिरपरचदै; वडेभयेजगमाह । लघुदेखें सभलोक का । क्यौंहों उतरत नांह ॥ ९८ ॥ चामचक्षुसोंसभमतो' चितवत करत नवेर । ज्ञाननेन सोज़ैनही : बोवतइतनोफेर ॥ ६६ | ज्यौंबभाज ; ढिगराखके' पटपरखैपरवीन । त्यौमत सेमतकोपरख' पा
वैपुरुषचमोन्द्र ॥ १०० ॥
शब्दार्थ टीका
[ भिष्या ] झूट (मद ) मदिरा (छिके) पेटभरके पिये ( सभमतवाले) सारमतों अर्थात् धरमों वलि (लोय ) लोग ( मतवाले ) मस्त (मत्त ) मस्ती १ ( गुमान ) मान (गिर) पहाड़ २ (च) आंख [चितवत ] देखकर ( नवेर ) नबेड़ [ जोवत ] टूडे (फेर ) फरक ३ ( बजाव ) क पंडावेचने वाला ( ढिग ) निकट (पट) कपड़ा ( परबीन) चतुर )