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भूधरजेनशतक कैसेतहाडाकहै। हादशा मूलएक्ष, अनभीअभासकला, जन्मदाबहारौधन, सारकौसलाकई। यहांएकसौखलौंजे ,याहौकोअभासकीजै, याहीरसपोजैऐसा, बौरजिन बाक है। इतनोंहौसारयही, बातमको हितकार, यहौलोसँभा रफिर, आगेटूकढाकाहै ॥ ६१ ॥
शब्दार्थ टीका ( अलप) थोड़ा (आगम ) शान (अगाध ) गहरा (सिन्धु) समुद्र (डाक ) उछखना फलांगमारना (हादशा ) बारहभाग [मूल] जड़ ( अनुभव ) शुद्ध विचारना [ अभास ] छाया ( कला) पल (दाघ )ग रमो (घनसार) वादयका जल (सलाक) डण्डा (टूक ढाक) कुछनहौं ।
सरलार्थ टोका • प्रथम अम जीवना थोड़ा तिसयर बुद्धि बल करके होन शास्त्र गहरा स मुद्गहै फिर कैसे फलांगा नाय हादशाङ्ग वाणीकामूल क्या है उत्तम बि चार करने की सामर्थ सो जन्मरूप गरमीक दूर करनेको मेधी जलकी धार है यही अर्थात् अनुभव प्रभास सीख लीजिये और इसको का अ भास कीजिये और सही रस की पीनिये इस प्रकार बीर जिन का ब चनहै इतनीही बात सार और आत्माको हितकारी है सहीको संभा ललो आगे फिर कुछ नहीं है।
श्रीभगवानसों बीनती