________________
है
१०४ মুঘৰজননী । शीत सहैं तन धूप दहैं तर, हैटर हैं करुणा उर आने । अटका हैं न अदत्तगह बन, तान घहैं लछिनोभनजाने । मौन बहैं पढ़भेद आहे नहि, नेम जहैं व्रतरोत पिछार्ने । योनिब हैं परमोखनाडौंबिन, ज्ञानपहेंजिनवोरबखानै 1601
शब्दार्थ टीका (हे। ) नोचै ( लछि ) लक्ष्मी ( मौन ) चुप ( ब ) रहैं ( भेद ) अन्तर (जहैं ) तोड़ें ( निषहैं ) गुजारे ( मोख ) मोच (पो) हुये।
सरलार्थ टोका शीतकाल की बाधा सहैं और तनको धूपमैं जलावै वर्षा ऋतु मैं आपके नोचे खडे रहैं और दया मनमें लावै भूट बोल न बिन दिया माल लें न स्त्री चाहैं न लक्ष्मीका लोभ जाने चुप रहैं शास्त्र पढ़कर मैद सई ने म को तोड़ें नहीं और वतकी रीति पिछाने हैं मुनिकन ऐसे निवाहै है परन्तु विन ज्ञान हुये मोक्ष नहीं होती ऐसा वीर जिग वखाने है। .
~optioअनुभव प्रशंसा कथन
घनाक्षरोछंद जौवनअलपआज,बुद्धिबलहीनतामैं, आगमअगाधसिन्धु,