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सरलार्थ टोका
नजर घटगई शरीर की छवि अर्थात् रोनक जाती रही चाल बांकीही गई कमर टेढी होगई घरको ब्याही स्त्रोरुसरहो हर तरह से मोहता होकर खाट ले लई नाड़ कांपने लगो, सुख से राल टपकने लगी तम बुद्धि ने साथ छोड़ दिया जितने शरीर के अंग उपांग थे सो वारेषु रा मे होगये परन्तु नष्णा और नवीन पैदा होगई
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घनाक्षरी हन्द
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रूपको न खोन रह्यो, तरुज्यों तुषार दह्यो' भ यो पतकर विधों, रहोडार सूनौ सौ । कृदरोभ ई है कटि; दूबरी भई है देह; उबर इतेक आ यु, सेर मांह मूनौसी । योवन नै बिदा लोनी, जरा नैं जुहार कोनी, हौन सई शुद्ध बुद्ध, सबौ बात ऊनौ सौ | तेज घट्यो तावघटयो, जीतब स चाब घटयो' और सब घटे एक तिला दिनदू नोसी ॥ ३६ ॥ .
शब्दार्थ टीका
(खोज] निशान (तरु) वृक्ष (सुधार) पाला (दो) मलाया (चार) डालो शाखा (खूनी ] खाली ( कूबरी ) कुबड़ी ( कदि ]
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