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মুখৰজলমন
घनाक्षरी छंद जोई दिन कटै सोई, आयु मैं अवश्य धटै, बूंद बूंद बीते जैसे, अञ्जलि को जल है। देह नित झोन होय, नेत्र वेज हौन होय, योबन मलौन होय, छीन होय बल है। आवै जरा नेरी ताके, भन्तक अहरौ पाय,परमोनजीक जाय,नरभोनि फल है। मिली मिलापौजन, पूछत कुशल मे रो,ऐसौहोदशा मैं मित्र; काहेकौकुशक्षहै।३७॥
शब्दार्थ टीका [हिन) पर (अवश्य ) निश्चय (झोन) दुवली (छीन ) कमती (ने री) नीक (अंतक ) मोत (अहेरो) शिकारी (कृयत) भलाई रियत -
सरक्षार्थ टोका
जो पन कठै है सो उमर में निश्चय घटे है वृन्द २ को तुल्य बदोत होय है जैसे अंजली को नल शरीर नित दुबला होय है आंखों का तेज हो महोय है योवन मैला होय है और बल कमती होय रे भब बुढ़ापा' मनोक पावेहै कासका शिकारी तेरे पर ताक लगा वे है परभव नमो कहोय है नर भव निषस नायब मिल ने वाले जीव मिलकर चैरियत