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भूधरजेनशतक
शब्दार्थ टीका [खान ] कुत्ता (सिंघ) वाघ-शेर ( सावर) बारामौंगा (सियाल) गीदड़ (सिन्धुर) हाथो ( सारङ्गः ) मृग-हिरन (उदर) पेट [चक्रवाक] चकवा (चानक) पपहिया (कछ ) कछवा (मछ) मगर ( मीन) म छलो (जलूका ) जोक।
सरलार्थ टीका
कितनी बार मनुष्यने खान आदि जलूका पर्यन्त पर्थात् बहुतसी योनि धारण करी इसपर यदि कोई जिनावर का है तो मूर्ख पुरुष प्रति बुरा मानें है यह नहीं जानता कि में अनेक बार पशु पक्षी आदि नाना प्र कार जन्तुओंकी योनि में होकर मरगया है।
दुष्टजनवर्णन
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छप्पै छन्द
कर गुण अमृत पान; दोष बिष विषम समप्य । बङ्ग चलनं नहि तजै युगल जिह्वा मुख थप्य । तकै निरन्तर छिद्र' एदैपर दोपन रूच्यै । बिन कारण दुख कर रविश कबहूँ नहि मुच्चै ।