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भूधरजनशतक
वो (अन्ध ) अन्य (चचन) आंख (चितवे) देखे (उर) हृदय (चौ वे )- बिचारे (बाई) चलावे ( बान ) तोर ( मसान धान ) मर्घट
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सरलार्थं टीका
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प्रथम जीवना हो थोड़ा है तिसमें से वदीत होकर कुछ काल अर्थात् थोड़ा वाकी रह गया फिर इस थोडेसे जीवन पर कैसे कैबे हेर फेर करे है आप को चतुर जानें औरोंको मूट मानें सांझ काल होनेपर भी मवेरा विचारे है सारो बस्तु नेवों से देखे है हृदेसे नहीं देखता धेर कर रक्खा है यमरोज अचानक ऐसा तोर तानकर चलावेगा कि मर्घट मैं हाडों का ढेर दिखाई देगा |
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केती वार खान सिंघ, सांबर सियाल साँप, सि.
घनाक्षरीकंद
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बुर सारङ्ग सूसा, सूरी उदर परो । केतौबार चौल
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मूढ
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१२ १३ १४.
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चम,गादर चकोर चिरा, चक्रमांक चात्रक चं, डूल १७ १८ १८. २० तन भी धरो । केतोबार कच्छ मच्छु, सैंडक गिंडोला २१ २२ २३ '२४
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मौन, शङ्ख सौंप कोडी हो न, लूका जल मैं तिरो । कोई कहै जायरे जि, नावर तो बुरोमानै, यों न
जाने मैं अनेक बोर हो मरो ॥ ७८ ॥