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भूधरजैनशतक - विधातासों वितर्ककथन । __. .. -~-08-0- .
घनाक्षरोछंद सज्जनजोर चेतो सु' धा रस सों कौन काज, दुष्ट जीव कौयो काल' कूटसों कहा रही। दाता निर मापे फिर' थापे क्यौं कलप वृक्ष' याचक बिचार लघु; तृण इ ते हैं सहो । इष्टके सम्योग तें न ' सौरो धनसार कुछ; जगत को ख्याल इन्द्र' नाल सम है महो। ऐसौ दीय बात दीखें, बिध एक ही सो तुम;काएको बनाईमेरे धोकोमन है यही॥८॥
शब्दार्थ टीका ( सज्जन ) भले पुरुष (रचे ) पैदाकरे ( सुधारस ) अमृत ( कालकूट ) विष-जहर निर्मापे ) पैदाकर ( कलपक्ष ) कल्पतरू ( याचक )मांग ने वाला (इष्ट ) प्यारा ( संयोग ) मिलाप ( मोरो) ठएढा (घनसार) कपूर जल चन्दन [विधि ] ब्रह्मा। __
सरलार्थ टौका कवि विधातासों तर्क अर्थात् शङ्खा कर है कि ई विधाता है. यदि स जन रचेथे तो फिर अमृतसों कौन काजथा भावार्थ सज्जन पुरुष के हो