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१० . . भूधरजैनशतक
वर मौनमन्त्रसों होय वश सङ्गत कोये हान है। बहुमिलतवानयासही; दुर्जनसाँपसमान है॥ ७ ॥
शब्दार्थ टीका (पान) पोना (विष) नहर ( विषम ) भयानक ( समय ) उत्पन्न करें (वह) वाँको ( युगल ) जोड़ो दोय ( थप्पे ) थापै (छिद्र ) छेक (पर) पराया ( दीप) दिवला (रूय) आनन्दहोय (रविश ) चाल (मुच्च) छोडे ( वर ) उत्तम [ मौन ] चुप (हान) टोटा ( वान ) सुभाव (दु जन) खोटाजन ।
सरलार्थ टोका गुणरूप अमृत को पीकर दोषरूप भयानक जहर उगले है और अपनो वांको चालको नहीं छोड़े है और दीय जीभ मुखमैं थाय है भावार्थ ए को कुछ कहै है दूसरेसे कुछ कहै है और निरन्तर ऐक को ताकता है भावार्थ नाना प्रकार के छिद्र बातके देखता है और पराये दिवलेके उ दयपर आनन्द नहीं होता है भावार्थ पराई प्रभुता देखकर भानन्दन्हीं मान्ता है और बिन कारण दुख करता है और अपनी चाल को नहीं छोडता है ऐसा पुरुष उत्तम मौनमंत्रसों वशमैं आताहै जैसे किसीकवि ने कहा है। (दोहा) मूरखको मुख बम्बई, निकसै वचन भुजङ्ग । ,
ताकी दारू मोनहै, विष नहि व्याप अङ्ग ॥१॥ ऐसेको सङ्कतिसे टोटा है वहुत सुभाव जो मिले है इस कारण दुर्जनपु रुष सापके समान है।
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