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कहाँ घाट बाव नहीं होगा फिर क्या बोच विचार करिये।
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— आशानाम नदी वर्णन
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घनाक्षरीछंद मोह से महान उचे' पर्वत सों ठर आई तिहूँ जग भूतल को; पाय विसतरी है। विविध मनोर थ मैं भूरि जल भरी बहु, तिशना तरङ्गन सौंपा 'कलता धरी है। परचमभंवरजहां' राग से मगर तहां ' चिन्तो तट तुङ्ग इन' धर्म ढाय ढरौ है। असौ यह आसा नाम ' नदी है भागाध महा? धन्य साधु धौरयत' रणौ चढ़ तरौ है ॥ ६ ॥
शब्दार्थटीका (महान ) वडे ( भूतल ) पृथी धरातल ( विसतरी ) फैली (विविध नानामकार (भूरि) अधिक ( तरङ्ग) सहर (पाकुलता) व्याकुलता (तुङ्ग) उंचा ( अगाथ) अधाह गहीर (नरणि ) नौका।
सरलार्थ टीका , . . मोहरूप बड़े जचे पहाड़ से डलकर आई तिइ नगमैं धरतोपर फैली है